"भक्ति काल": अवतरणों में अंतर

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{{अनेक समस्याएँ|अस्पष्ट=जनवरी 2017|काल्पनिक परिप्रेक्ष्य=जनवरी 2017|निबंध=जनवरी 2017|लहजा=जनवरी 2017|स्रोतहीन=जनवरी 2017}}
{{वैश्वीकरण|date=जनवरी 2017}}
[[हिंदी साहित्य]] में '''भक्ति काल''' अपना एक अहम और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। [[आदिकाल]] के बाद आये इस युग को पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। जिसकी समयावधि संवत् 1375 से संवत् 17351700 तक की मानी जाती है। यह [[हिंदी साहित्य]] का श्रेष्ठ युग है। जिसको [[जार्ज ग्रियर्सन|जॉर्ज ग्रियर्सन]] ने '''स्वर्णकाल,''' श्यामसुन्दर दास ने '''स्वर्णयुग,''' [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य राम चंद्र शुक्ल]] ने '''[[भक्तिकाल के कवि|भक्ति काल]]''' एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने '''लोक जागरण''' कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी युग में प्राप्त होती हैं।
 
दक्षिण में [[आलवार बंधु]] नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें [[रामानुजाचार्य]] प्रमुख थे।