"नेपाल-अंग्रेज युद्ध (१८१४–१६)": अवतरणों में अंतर
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[[नेपाल]] र अङ्ग्रेज [[ब्रिटिस इस्ट इण्डिया कम्पनि]] सरकार बिच १८१४ देखी १८१६ तक हुवा युद्धको '''एङ्गलो-नेपाल युद्ध''' (१८१४–१६) काहाजाताहै, यह युद्धमे नेपालउपर ब्रिटिस इस्ट इण्डिया कम्पनि सरकारने [[मोरङ्ग]], [[मकवानपुर]], [[बुटवल]], [[अल्मोडा]], कुमाउ, नाहान, जैथक, मलाउँ, देउथल तथा नालापनीमे आक्रमण किया था । अभिअभि सुदृढ होराह व छोटा सा जनसंख्यायुक्त नेपालने तालिम प्राप्त सैन्य नही होतेहुवे भि बहादुरी पुर्वक डटेक लडाइ किया था । नेपाली गोर्खालीकी बहादुरीके बारेमे अङ्ग्रेज [[जनरल अक्टरलोनी]], [[जनरल गिलेस्पी]], [[जनरल मार्ले]] तथा [[जनरल वुड]]ने बहुत शब्दसे प्रशंसा करचुकेहै । इस युद्धमे नेपालकेसाथ लडके जितनेसे फायदा नेपालके साथ सन्धी करे जदा फायदा का संकेत देखकर अंग्रजोने सन्धी कि प्रश्ताब रखी । अंग्रजोको तुलनेमे नागन्य सैन्यशक्ती व सैन्य संसाधनसे लडराह नेपालने सुदुर पश्चिममे बहादुरी पुर्वक लड्तेहुवे युद्ध हार्ना पडा फिर भि [[पाल्पा]] व मकवानपुरमे नेपाल ने अङ्ग्रेजी सेनाको हार चखा दियाथा । इस युद्धकी समाप्ती सुगौली सन्धि मार्फत हुवा इस युद्धमे नेपालकी तर्फसे लड्नेवाले [[काजी अमर सिंह थापा]], [[काजी बलभद्र कुंवर]], [[सरदार भक्ती थापा]], [[रामकृष्ण कुंवर]], [[काजी उजीर सिंह थापा]], [[काजी बंसराज गुरूङ]] लगायतकी वीरताका तारिफ अङ्ग्रेज सरकारभि करता रहता है, इस युद्धकी समाप्ती बाद अङ्ग्रेजोने बहादुर गोर्खालीयोको अपनी सेना (शिरमोर बटालियनसे शुरू किया था) मे भर्ती करना लहौर से शुरू किया जिसके कारण नेपाली समाजमे लाहुरे शब्दले प्रवेश पाया । गोर्खालीयोको भर्ती करनेके बाट अङ्ग्रेजोने उसके बादके प्राय हर युद्धमे गोरखाली सेनाका कम या बेसी प्रयोग कर राहहै ।
उक्त युद्धमे नेपालने अपनी सार्वभौमिकता बचाया फिरभी बहुत बडा [[
[[category:नेपाल]]
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