"बौद्ध धर्म": अवतरणों में अंतर
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'''बौद्ध धर्म''' [[भारत]] की [[श्रमण परम्परा]] से निकला [[धर्म]] और महान [[दर्शन]] है। ईसा पूर्व 6 वीं शताब्धी में [[गौतम बुद्ध]] द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में [[लुंबिनी]], [[नेपाल]] और [[महापरिनिर्वाण]] 483 ईसा पूर्व [[कुशीनगर]], [[भारत]] में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया।
बौद्ध धर्म में प्रमुख सम्प्रदाय हैं: [[हीनयान]], [[थेरवाद]], [[महायान]], [[वज्रयान]] और [[नवयान]], परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है एवं सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। ईसाई धर्म के बाद बौद्ध धर्म दुनिया का
== गौतम बुद्ध ==
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* मिलिंद:- मिलिंदा यूनानी राजा थे। ईसा की दूसरी सदी में इनका अफगानिस्तान और उत्तरी भारत पर राज था। बौद्ध भिक्षु नागसेना ने इन्हें बौद्ध धर्म की दीक्षा दी और इन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया था।
* सम्राट अशोक:- [[सम्राट अशोक]] बौद्ध धर्म के अनुयायी और अखंड भारत के सम्राट थे। इन्होंने ईसा पूर्व 207 ईस्वी में मौर्य वंश की नींव को मजबूत किया था। अशोक ने कई वर्षों
* सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को धर्मप्रचार के लिए श्रीलंका भेजा। इनके द्वारा श्रीलंका के राजा तिष्य ने बौद्ध धर्म अपनाया और देवानामप्रिय की उपाधि धारण की, वहां 'महाविहार' नामक बौद्ध मठ की स्थापना की। यह देश आधुनिक युग में भी थेरवाद बौद्ध धर्म का गढ़ है।
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=== चार आर्य सत्य ===
तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था। बुद्ध ने चार
;१. दुःख
इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है। ▼
▲इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।
;२. दुःख कारण :▼
तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है। ▼
▲तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।
▲;३. दुःख निरोध :
तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।
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;४. दुःख निरोध का मार्ग : ▼
तृष्णा से मुक्ति [[अष्टांगिक मार्ग]] के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।
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=== अष्टांगिक मार्ग ===
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