"संगीत": अवतरणों में अंतर

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{{main|संगीत का इतिहास}}
[[Image:Raja Ravi Varma, Galaxy of Musicians.jpg|thumb|400px|अपने-अपने क्षेत्रीय परिधानों में सजी हुई भारतीय महिलाएँ भारत के विभिन्न भागों में प्रचलित वाद्य बजा रही हैं। ([[राजा रवि वर्मा]] द्वारा चित्रित)]]
[[युद्ध]], [[उत्सव]] और [[प्रार्थना]] या [[भजन]] के समय मानव गाने बजाने का उपयोग करता चला आया है। संसार में सभी जातियों में [[बाँसुरी]] इत्यादि फूँक के वाद्य (सुषिर), कुछ तार या ताँत के [[वाद्य]] (तत), कुछ चमड़े से मढ़े हुए वाद्य (अवनद्ध या आनद्ध), कुछ ठोंककर बजाने के वाद्य (घन) मिलते हैं।<ref name="perseus.tufts.edu">{{cite web |url=http://www.perseus.tufts.edu/cgi-bin/ptext?doc=Perseus%3Atext%3A1999.04.0057%3Aentry%3D%2368891 |title=Mousike, Henry George Liddell, Robert Scott, ''A Greek–English Lexicon'', at Perseus |publisher=perseus.tufts.edu |accessdate=27 October 2015}}</ref>
 
ऐसा जान पड़ता है कि भारत में [[भरतमुनि|भरत]] के समय तक गान को पहले केवल 'गीत' कहते थे। वाद्य में जहाँ गीत नहीं होता था, केवल दाड़ा, दिड़दिड़ जैसे शुष्क अक्षर होते थे, वहाँ उसे 'निर्गीत' या 'बहिर्गीत' कहते थे और नृत्त अथवा [[नृत्य]] की एक अलग कला थी। किंतु धीरे-धीरे गान, वाद्य और नृत्य तीनों का "संगीत" में अंतर्भाव हो गया - '''गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगतमुच्यते'''।
पंक्ति 136:
* [[भारतीय संगीत का इतिहास]]
* [[पाश्चात्य संगीत]]
 
== सन्दर्भ ==
 
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/संगीत" से प्राप्त