"समुच्चय अलंकार": अवतरणों में अंतर

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'''समुच्चय अलंकार''', एक प्रकार का [[अलंकार]] है। जहाँ काम का बनाने वाला एक हेतु मौजूद हो, तो भी, उसी काम के साधक अन्य हेतु भी यदि इकट्ठे हो जायँ, तो '''समुच्चय अलंकार''' कहलाता है। उदाहरण-
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[[अलंकार चन्द्रोदय]] के अनुसार हिन्दी कविता में प्रयुक्त एक अलंकार
: ''धोखे से धन, धाम, धरा, उसने छीना सब!
: ''अन्न वस्त्र भी कर अधीन मोहताज किया अब!
: ''सजग हुए हम, आज हमारी निद्रा टूटी,
: ''छोड़ेंगे अब नहीं शत्रु ढिग कौड़ी फूटी ॥
 
मोहताज बनाने का एक हेतु ‘धन छीन लेना' होने पर भी धाम-धरा आदि का उपहरण हेत्वन्तर के रूप में उपस्थित है।
 
==भेद==
समुच्चय अलंकार के दो भेद माने गए हैं। एक तो वह जहाँ आश्चर्य, हर्ष, विषाद आदि बहुत से भावों के एक साथ उदित होने का वर्णन हो । जैसे,
: ''हे हरि तुम बिनु राधिका सेज परी अकुलाति ।
: ''तरफराति, तमकति, तचति, सुसकति, सुखी जाति ॥
 
दूसरा वह जहाँ किसी एक ही कार्य के लिये बहुत से कारणों का वर्णन हो । जैसे,
: ''गंगा गीता गायत्री गनपति गरुड़ गोपाल ।
: '' प्रातःकाल जे नर भजैं ते न परैं भव- जाल ॥
 
{{रस छन्द अलंकार}}