"पंचगव्य": अवतरणों में अंतर

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== पंचगव्य निर्माण ==
सूर्य नाड़ी वाली गायें ही पंचगव्य के निर्माण के लिए उपयुक्त होती हैं। देसी गायें इसी श्रेणी में आती हैं। इनके उत्पादों में मानव के लिए जरूरी सभी तत्त्व पाये जाते हैं। महर्षि चरक के अनुसार गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता, राष्युकता, अग्निदीपक प्रमुख हैं। गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फुर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट, सोडियम, पोटेसियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सिअम, नमक, विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल, कृएतिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते हैं। यूरिया मूत्रल, कीटाणु नाशक है। पोटैसियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमननिर्माण करता है। मेगनीसियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमननिर्माण करतेकरता हैं।
 
तीन भाग देसी गांय का शकृत (गोबर) , तीन ही भाग देसी गांय का कच्चा दूध, दो भाग देसी गांय के दूध की दधिदहि, एक भाग देसी गांय का घृत इन्हें मिश्रित कर लें विष्णु धर्म में कहा गया है जितना पंचगव्य बनाना हो उसका आधा अंश गौमूत्र का होना चाहिए। अर्थात उक्त मिश्रण जितनी मात्र में हो उतने ही मात्र में गौमूत्र होना चाहिए, शेष कुशाजल होना चाहिए।
 
गोमूत्रं गोमय क्षीरं दधि सर्पि कुशोदकम्।