"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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1930 और 1940 के दशकों में आंबेडकर ने गांधी की तीखी आलोचना की। उनका विचार था कि सफाई कर्मचारियों के उत्थान का गांधीवादी रास्ता कृपादृष्टि और नीचा दिखाने वाला है। गांधी अश्पृश्यता के दाग को हटाकर हिंदुत्व को शुद्ध करना चाहते थे। दूसरी ओर आंबेडकर ने हिंदुत्व को ही खारिज कर दिया था। उनका विचार था कि यदि दलित समान नागरिक की हैसियत पाना चाहते हैं, तो उन्हें किसी दूसरी आस्था को अपनाना पडेगा। आंबेडकर को गिला था कि कांग्रेस ने दलितों के लिए कुछ भी नहीं किया। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार गांधी थे, क्योंकि वे अपने अंतिम दिनों के पहले, वर्ण व्यवस्था और जाति प्रथा का विरोध करने के लिए तैयार नहीं थे, बल्कि अपने सनातनी हिंदू होने को लेकर संतुष्ट थे। हालांकि गांधी और आम्बेडकर जिंदगी भर एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी बने रहे, लेकिन दोनों ने अपमानजनक सामाजिक व्यवस्था को कमजोर करने में पूरक भूमिका निभाई। कानूनन छुआछूत खत्म हो गया है, लेकिन भारत के कई हिस्सों में आज भी दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है।<ref>https://www.amarujala.com/columns/opinion/ramchandra-guha-on-gandhi-and-ambedkar-hindi-rk</ref><ref>https://m.thewirehindi.com/article/baba-saheb-ambedkar-and-his-relevance-in-current-politics/78133</ref>
 
26 फ़रवरी 1955 को आंबेडकर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में महात्मा गांधी पर अपने विचार प्रकट किये। आंबेडकर ने कहा कि वो गांधी से हमेशा एक प्रतिद्वंद्वी की हैसियत से मिलते थे। इसलिए वो गांधी को अन्य लोगों की तुलना में बेहतर जानते थे। आंबेडकर के मुताबिक, "गांधी भारत के इतिहास में एक प्रकरण थे, वो कभी एक युग-निर्माता नहीं थे। ..." उन्होंने गांधी पर ये भी आरोप लगाया है की, गांधी हर समय दोहरी भूमिका निभाते थे। उन्होंने दो अख़बार निकाले, पहला [[हरिजन]], इस अंग्रेज़ी समाचार पत्र में गांधी ने ख़ुद को [[हिन्दू वर्ण व्यवस्था|जाति व्यवस्था]] और [[अस्पृश्यता]] का विरोधी बताया। और उनके दुसरे एक गुजराती अख़बार में वो अधिक रूढ़िवादी व्यक्ति के रूप में दिखते हैं। जिसमें वो जाति व्यवस्था, वर्णाश्रम धर्म या सभी रूढ़िवादी सिद्धांतों के समर्थक थे।" जबकि इन लेखों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि गांधी ने अपने अंग्रेज़ी लेखों में जाति-व्यवस्था का समर्थन किया और गुजराती लेखों में छूआछूत का विरोध किया है। आंबेडकर ने छूआछूत के उन्मूलन के साथ समान अवसर और गरिमा पर जोर दिया था और दावा किया कि गांधी इसके विरोधी थे। उनके मुताबिक गांधी छूआछूत की बात सिर्फ़ इसलिए करते थे ताकि अस्पृश्यों को कांग्रेस के साथ जोड़ सकें। वो चाहते थे कि अस्पृश्य स्वराज की उनकी अवधारणा का विरोध न करें। गांधी एक कट्टरपंथी सुधारक नहीं थे और उन्होंने [[ज्योतिराव फूलेगोविंदराव फुले|ज्योतिराव फुले]] या फिर आंबेडकर के तरीके से जाति व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास नहीं किया।<ref>https://www.bbc.com/hindi/india-46471954</ref> गांधी का दलितो के लिए ‘हरिजन’ संबोधन का आंबेडकर व उनके संमर्थको ने विरोध किया था और दलित उसे ‘गाली’ के समान मानते थे। गांधी द्वारा शुरू किया गया 'हरिजन सेवक संघ' भी दलितों को नापसंद था क्योंकि, "वो एक शीर्ष जाति की मदद से दलितों के उत्थान की सोच दर्शाता था ना कि दलितों के जीवन पर उनके अपने नियंत्रण की।"<ref>https://www.bbc.com/hindi/india/2012/10/120927_gandhi_dalit_da</ref>
 
गांधी और आंबेडकर ने अनेक मुद्दों पर एक जैसे विचार रखे, जबकि कई मुद्दों पर उनके विचार बिलकुल अलग या विपरीत थे। ग्रामीण भारत, जाति प्रथा और छुआ-छूत के मुद्दों पर दोनो के विचार एक दूसरे का विरोधी थे। हालांकि दोनों की कोशिश देश को सामाजिक न्याय और एकता पर आधारित करने की थी और दोनों ने इन उद्देश्यों के लिए अलग-अलग रास्ता दिखाया। गांधी के मुताबिक यदि हिंदू जाति व्यवस्था से छुआछूत को निकाल दिया जाए तो पूरी व्यवस्था समाज के हित में काम कर सकती है। इसकी तार्किक अवधारणा के लिए गांधी ने गांव को एक पूर्ण समाज बोलते हुए विकास और उन्नति के केन्द्र में रखा। गांधी के उलट आंबेडकर ने जाति व्यवस्था को पूरी तरह से नष्ट करने का मत सामने रखा। आंबेडकर के मुताबिक जबतक समाज में जाति व्यवस्था मौजूद रहेगी, छुआछूत नए-नए रूप में समाज में पनपती रहेंगी। गांधी ने लोगों को गांव का रुख करने की वकालत की, जबकि आंबेडकर ने लोगों से गांव छोड़कर शहरों का रुख करने की अपील की। गांव व शहर के बारे में गांधी व आंबेडकर के कुछ भिन्न विचार थे। गांधी सत्याग्रह में भरोसा करते थे। आंबेडकर के मुताबिक सत्याग्रह के रास्ते ऊंची जाति के हिंदुओं का हृदय परिवर्तन नहीं किया जा सकता क्योंकि जाति प्रथा से उन्हें भौतिक लाभ होता है। गांधी राज्य में अधिक शक्तियों को निहित करने के विरोधी थे। उनकी प्रयास अधिक से अधिक शक्तियों को समाज में निहित किया जाए और इसके लिए वह गांव को सत्ता का प्रमुख इकाई बनाने के पक्षधर थे। इसके उलट आंबेडकर समाज के बजाए अधिक को अधिक से ज्यादा ताकतवर बनाने की पैरवी करते थे।<ref>https://m.aajtak.in/news/national/story/what-differentiates-bhimrao-ambedkar-from-mahatma-gandhi-923344-2017-04-14</ref><ref>https://books.google.co.in/books?id=3LCyOqW-FvkC&pg=PT149&lpg=PT149&dq=%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%95%E0%A4%B0+%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80+%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9&source=bl&ots=1HuINPLLdM&sig=ACfU3U2WnuTANemwrhWLiTAk8UyFicV2oA&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwi1-M7zxqLjAhWE6XMBHY5iCng4ChDoATADegQICRAB</ref><ref>https://hindi.theprint.in/opinion/ambedkar-mahad-march-vs-gandhi-dandi-march/56363/</ref>