"अहिल्याबाई होल्कर": अवतरणों में अंतर
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| caption = मालवा साम्राज्य, इंदौर की महाराणी
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== जीवन परिचय ==
दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं। पति का स्वभाव चंचल और उग्र था। वह सब उन्होंने सहा। फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहांत हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवंतराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई [[सती]] हो गई। दूर के संबंधी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव पर उनका स्नेह था; सोचती थीं कि आगे चलकर यही शासन, व्यवस्था, न्याय औऱ प्रजारंजन की डोर सँभालेगा; पर वह अंत-अंत तक उन्हें दुःख देता रहा।
== योगदान ==
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अंधविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया।-वह चिरस्मरणीय है।
[[इंदौर]] में प्रति वर्ष [[भाद्रपद]] कृष्णा [[चतुर्दशी]] के दिन [[अहिल्योत्सव]] होता चला आता है। अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम [[उबदी]] के पास स्थित कस्बे अकावल्या के [[पाटीदार]] को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि [[महेश्वर]] में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।
== मतभेद ==
उनके मंदिर-निर्माण और अन्य धर्म-कार्यों के महत्त्व के विषय में मतभेद है।<ref>श्री सरदेसाई ने अपने ग्रंथ ‘New History of the Marathas’, Vol.।।। p. 211 पर लिखा है कि इन कार्यों में अहिल्याबाई ने अंधाधुंध खर्च किया और सेना नए ढंग पर संगठित नहीं की। तुकोजी होलकर की सेना को उत्तरी अभियानों में अर्थसंकट सहना पड़ा</ref> इन कार्यों में अहिल्याबाई ने अंधाधुंध खर्च किया और सेना नए ढंग पर संगठित नहीं की। तुकोजी होलकर की सेना को उत्तरी अभियानों में अर्थसंकट सहना पड़ा, कहीं-कहीं यह आरोप भी
== विचारधाराएं ==
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== देश में स्थान ==
स्वतंत्र भारत में अहिल्याबाई होल्कर का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। इनके बारे में अलग अलग राज्यों की
चूंकि अहिल्याबाई होल्कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्होंनें भारत के अलग अलग राज्यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्न राज्यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमायें बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।
ऐसी ही एक योजना उत्तराखंड सरकार की ओर से भी चलाई जा रही है। जो अहिल्याबाई होल्कर को पूर्णं सम्मान देती है। इस योजना का नाम [https://www.kanafusi.com/ahilyabai-holkar-bakri-palan-yojana/ ‘अहिल्याबाई होल्कर भेड़ बकरी विकास योजना] है। अहिल्याबाई होल्कर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्तराखंड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थि<ref>{{Cite web|url=https://www.kanafusi.com/ahilyabai-holkar-bakri-palan-yojana/|title=भेड़ बकरी पालन उत्तराखंड|last=आजमी|first=जमशेद|date=11 नवम्बर 2018|website=Kanafusi| language = hi|archive-url=https://www.kanafusi.com/ahilyabai-holkar-bakri-palan-yojana/|archive-date=11 नवम्बर 2018|dead-url=}}</ref> के रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्मांण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 100000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्याबाई होल्कर के लाभार्थी को प्राप्त होते हैं।
==टिप्पणियाँ==
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== इन्हें भी देखें ==
* [[देवी अहिल्या विश्वविद्यालय]]
* [[धनगर]]
{{मराठा साम्राज्य}}
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