"मऊ, उत्तर प्रदेश": अवतरणों में अंतर

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इस जगह पर आये थे।। . . बचन कहे अभिमान के पारथ पेखत सेतु।
 
प्रभु तिय लूटत नीच भर जय न मीचु तेहिं हेतु।
 
भरों ने अर्जुन जैसे वीर को धूल चटाया।
 
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पूर्वी उत्तर प्रदेश का सुप्रसिद्ध एवं औद्योगिक दृष्टि से समुन्नत जनपद मऊ का इतिहास काफी पुराना है। 1500 वर्ष पुराना है, जब यह समूचा इलाका घोर घना जंगल था। यहाँ बहने वाली नदी के आस-पास जंगली व आदिवासी जातियाँ निवास करती थीं। यहाँ के सबसे पुराने निवासी नट माने जाते है। इस इलाके पर उन्हीं का शासन भी था। परन्तु यहां नट और ताण्डव के संदर्भ में हम भरत शब्द का स्मरण करें। भरत का अर्थ नट है। इससे साफ है भरत का अर्थ भर है। भरों के कोट किले इस क्षेत्र में बहुत है।तमसा तट पर हजारों वर्ष पूर्व बसे इस इलाके में सन् 1028 के आस-पास बाबा मलिक ताहिर का आगमन हुआ। वे एक सूफी संत थे और अपने भाई मलिक कासिम के साथ फौज की एक टुकड़ी के साथ यहाँ आये थे। इन लोगों का तत्कालीन हुक्मरा सैय्यद शालार मउऊद गाजी ने यहाँ इस इलाके पर कब्जा करने के लिये भेजा था। गाजी उस समय देश के अन्य हिस्सों पर कब्जा करता हुआ बाराबंकी में सतरिक तक आया था और वहाँ से उसने विभिन्न हिस्सों में कब्जे के लिये फौजी टुकडि़याँ भेजी थी।।
 
उन दिनों इस क्षेत्र में मऊ नट का शासन था। कब्जे को लेकर मऊ नट एवं मलिक बंधुओं के बीज भीषण युद्ध हुआ,जिसमें मऊ नट का भंजन(मारा गया) हुआ और इस क्षेत्र को मऊ नट भंजन कहा गया जो कालान्तर में मऊनाथ भंजन हो गया। मऊनाथ भंजन के इस नामकरण को लेकर भी कई विचार है। कुछ विद्वान इसे संस्कृत शब्द ‘‘मयूर’’ का अपभ्रंश मानते ह, तो कुछ इसे टर्की भाषा का शब्द मानते हैं। टर्की में ‘‘मऊ’’ शब्द का अर्थ है पड़ाव या छावनी। मऊ नाम की कई जगहें ह, लेकिन उनके साथ कुछ न कुछ स्थानीय विशेषण लगे हुए हैं जैसे- फाफामऊ, मऊ आईमा, जाज मऊ, मऊनाथ भंजन आदि है। ऊ भगवान शिव का नाम है।
 
== पर्यटन ==