"कुमारजीव": अवतरणों में अंतर

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कुची में कुमारजीव अधिक दिनों तक नहीं रह सके। कुची का चीन से राजनीतिक सम्बन्ध बिगड़ गया। 373 ई. में चीन से घोर युद्ध के बाद कुची की पराजय हुई और कुमारजीव बन्दी बनाकर चीन ले जाए गए। उनकी ख्याति चीन में पहले से ही फैल चुकी थी। वहाँ वे लींग-चाऊ के विशेष आमंत्रण पर वे राजधानी गए। यहाँ ये अपने जीवन के अंतिम काल तक रहे। पश्चात्‌ चीन के सम्राट के विशेष आमंत्रण पर वे राजधानी गए। यहाँ ये अपने जीवन के अंतिम काल तक रहे। 413 ई. में उनकी मृत्यु हुई।
 
चीन में रहकर उन्होंने अनेक भारतीय बौद्ध ग्रथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। ये भारतीय बौद्ध ग्रंथों का चीनी में अनुवाद करनेवालों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। पुण्यत्रात के साथ मिलकर 404 में [[विनयपिटक]] का [[नागार्जुन]] के [[महाप्रज्ञापारमिता]]-सूत्रशास्त्र तथा दशभूमि-विभाषा शास्त्र, जो [[दशभूमिसूत्रदशभूमिकासूत्र]] का [[भाष्य]] है, 405 ई. में चीनी में अनुवाद किया। वे भारतीय बौद्ध साहित्य के लगभग 50 ग्रंथों के चीनी भाषा में अनुवादक माने जाते है।
 
कुमारजीव की बौद्ध ग्रंथों के चीनी भाषा के अनुवादक के रूप में ही नहीं प्रत्युत [[बौद्ध दर्शन]] के शिक्षक रूप में भी ख्याति है। चीन के विभिन्न भागों से विद्यार्थी और विद्वान्‌ इनके पास आते थे। उनमे से अनेक शिष्य बने। कहा जाता है, उनके 3,000 शिष्य थे।