"कुमारजीव": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[[मध्य एशिया]] के [[कुची प्रदेश]] के निवासी। इनके पिता कुमारायण नाम के भारतीय थे। कुछ अज्ञात कारणवश ये भारत छोड़कर [[पामीर]] के दुर्गम मार्ग से होते [[कूचा राज्य|कुची]] पहुँचे। वहाँ के राजा ने इनका हार्दिक स्वागत किया और शीघ्र राजगुरु का पद प्रदान किया। उन्होंने जीवा नाम की एक राजकुमारी से [[विवाह]] किया। कुमारजीव इन्हीं के पुत्र थे। कुची में कुमारजीव की प्रारंभिक शिक्षा हुई। जब वे नौ वर्ष के हुए तो उनकी माँ उन्हें उच्च शिक्षा के लिए [[कश्मीर]] ले आई। कश्मीर में कुमारजीव ने बौद्ध साहित्य और दर्शन का विधिवत अध्ययन किया। बौद्ध साहित्य का अध्ययन कर अपनी माता के साथ मध्य एशिया के प्रसिद्ध बौद्ध केंद्रों का भ्रमण करते हुए ये कुची पहुँचे। वहाँ विद्वान के रूप में उनकी ख्याति फैली। वे भारतीय ज्ञान के महान कोष माने जाने लगे। ये पहले [[हीनयान]] के [[सर्वास्तिवाद|सर्वास्तिवादी संप्रदाय]] के समर्थक थे, किन्तु कुची लौटने पर इन्होंने [[महायान]] मत स्वीकार कर लिया।
 
कुची में कुमारजीव अधिक दिनों तक नहीं रह सके। कुची का चीन से राजनीतिक सम्बन्ध बिगड़ गया। 373 ई. में चीन से घोर युद्ध के बाद कुची की पराजय हुई और कुमारजीव बन्दी बनाकर चीन ले जाए गए। उनकी ख्याति चीन में पहले से ही फैल चुकी थी। वहाँ वे लींग-चाऊ के विशेष आमंत्रण पर वे राजधानी गए। यहाँ ये अपने जीवन के अंतिम काल तक रहे। पश्चात्‌ चीन के सम्राट के विशेष आमंत्रण पर वे राजधानी गए। यहाँ ये अपने जीवन के अंतिम काल तक रहे। 413 ई. में उनकी मृत्यु हुई।