"वेदांग": अवतरणों में अंतर

शिक्षा को नाक तथा निरुक्त को कान कहा गया है, जो कि पहले उल्टा लिखा था ।
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'''वेदाङ्ग''' [[हिन्दू धर्म ग्रन्थ]] हैं। वेदार्थ ज्ञान में सहायक शास्त्र को ही '''वेदांग''' कहा जाता है। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छः वेदांग है।
 
# '''[[शिक्षा (वेदांग)|शिक्षा]]''' - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण(Oratory) करने की विधि बताई गई है। स्वर एवं वर्ण आदि के उच्चारण-प्रकार की जहाँ शिक्षा दी जाती हो, उसे शिक्षा कहाजाता है। इसका मुख्य उद्येश्य वेदमन्त्रों के अविकल यथास्थिति विशुद्ध उच्चारण किये जाने का है। शिक्षा का उद्भव और विकास वैदिक मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण और उनके द्वारा उनकी रक्षा के उदेश्य से हुआ है।
# '''[[कल्प (वेदांग)|कल्प]]''' - वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी तीन शाखायें हैं- [[श्रौतसूत्र]], [[गृह्यसूत्र]] और [[धर्मसूत्र]]। कल्प वेद-प्रतिपादित कर्मों का भलीभाँति विचार प्रस्तुत करने वाला शास्त्र है। इसमें यज्ञ सम्बन्धी नियम दिये गये हैं।
# '''[[व्याकरण]]''' - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है। वेद-शास्त्रों का प्रयोजन जानने तथा शब्दों का यथार्थ ज्ञान हो सके अतः इसका अध्ययन आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध में पाणिनीय व्याकरण ही वेदांग का प्रतिनिधित्व करता है। व्याकरण वेदों का मुख भी कहा जाता है।