"चिंतन": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
hahhahahahahaahaa टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
चिंतन मुख्य रूप से 2 प्रकार का होता है । 1-स्वली चिंतन 2-यथार्थवादी चिंतन स्वली चिंतन को हम काल्पनिक चिंतन और यथार्थवादी को वास्तविक चिंतन कहते है यथार्यवादी चिंतन 3 प्रकार के होते है 1-अपसारी 2-अभिसारी 3-आलोचनात्मक 1-अपसारी चिंतन -जो पूर्णतः स्वतंत्रत हो या गैर परम्परागत हो या जिसमे हम अपनी मनोभावना को व्यक्त कर सके उसे अपसारी चिंतन कहते है। 2-अभिसारी चिंतन-इस चिंतन के अंतर्गत हम एक नियम में बधे रहते है और हम इसमे अपनी मनोभावना को स्वतंत्रता पूर्वक व्यक्त नही कर सकते है उसे अभिसारी चिंतन कहते टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 1:
'''चिंतन''' अवधारणाओं, संकल्पनाओं, निर्णयों तथा सिद्धांतो आदि में वस्तुगत जगत को परावर्तित करने वाली संक्रिया है जो विभिन्न समस्याओं के समाधान से जुड़ी हुई है। चिंतन विशेष रूप से संगठित [[भूतद्रव्य]]-[[मस्तिष्क]]- की उच्चतम उपज है। चिंतन का संबंध केवल [[जैविक]] विकासक्रम से ही नहीं अपितु सामाजिक विकास से भी हैhhah। चिंतन का उद्भव लोगों के उत्पादन कार्यकलाप की प्रक्रिया के दौरान होता है और वह [[यथार्थ]] का व्यवहृत परावर्तन सुनिश्चित करता है। अपने विशिष्ट मूल, क्रियाकलाप के ढंग और परिणामों की दृष्टि से उसका स्वरूप सामाजिक होता है। इसकी पुष्टि इस बात में है कि चिंतन [[श्रम]] तथा [[वाणी]] के कार्यकलाप से, जो केवल मानव समाज की अभिलाक्षणकताएं हैं, अविच्छेद्य रूप में जुड़ा हुआ है। इसी कारण मनुष्य का चिंतन वाणी के साथ घनिष्ठ रखते हुए मूर्त रूप ग्रहण करता है और उसका परिणाम [[भाषा]] के रूप में व्यक्त होता है।<ref>दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-१९४, ISBN: ५-0१000९0७-२</ref>
{{आधार|चिंतन=|चिन्तन=चिंतन मुख्य रूप से 2 प्रकार का होता है ।
1-स्वली चिंतन 2-यथार्थवादी चिंतन
स्वली चिंतन को हम काल्पनिक चिंतन और यथार्थवादी को वास्तविक चिंतन कहते है
यथार्यवादी चिंतन 3 प्रकार के होते है
1-अपसारी 2-अभिसारी 3-आलोचनात्मक
1-अपसारी चिंतन -जो पूर्णतः स्वतंत्रत हो या गैर परम्परागत हो या जिसमे हम अपनी मनोभावना को व्यक्त कर सके उसे अपसारी चिंतन कहते है।
2-अभिसारी चिंतन-इस चिंतन के अंतर्गत हम एक नियम में बधे रहते है और हम इसमे अपनी मनोभावना को स्वतंत्रता पूर्वक व्यक्त नही कर सकते है उसे अभिसारी चिंतन कहते है।
3-आलोचनात्मक चिंतन- इस चिंतन के अंतर्गत हम गुणो और दोषो का अध्ययन करते है}}
== सन्दर्भ ==
|