"राजतन्त्र": अवतरणों में अंतर

राजतंत्र के उल्लेख मे ब्राह्मणों एवं राजा कि स्थिति
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राजा समाज और धर्म का रक्षक था। तथा गणराज्यों में यह समझा जाता था कि मुखिया को जनसाधारण से चुना जा सकता है।
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यहाँ प्राचीन भारत में राजतंत्र होने के बावजूद प्रजा पर अत्याचार नहीं था। [[उमेश शर्मा]] दार्शनिक का मानना है कि वैदिक साहित्य में राजतंत्र में कल्याणकारी राजा का विचार निहित था।
 
600BC से 400BC तक राजतंत्र के मामले में ब्राह्मणों का कहना था कि राजा कोई सामान्य मनुष्य न होकर देवता के समान है। वे उनके सलाहकार थे और उनके बिना राजा न तो शासन कर सकता था, न ही यज्ञ-अनुष्ठान। राजा समाज और धर्म का रक्षक था। तथा गणराज्यों में यह समझा जाता था कि मुखिया को जनसाधारण से चुना जा सकता है।
 
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