"एन. गोपालस्‍वामी अयंगर": अवतरणों में अंतर

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1904 में, थोड़े समय के लिए, उन्होंने चेन्नई के पचयप्पा कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में भी काम किया। 1905 में मद्रास सिविल सेवा में भर्ती हुए। सन् 1919 तक वे डिप्टी कलेक्टर रहे । 1920 से जिला कलेक्टर के रूप में काम किया। 1932 में उन्हें लोक सेवा विभाग के सचिव के पद पर पदोन्नति मिली। 1937 में वे राजस्व बोर्ड के सदस्य बने।
 
सन् 1937 में ही आयंगर को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बना दिया गया। तब जम्मू-कश्मीर के अपने प्रधानमंत्री और सदर-ए-रियासत होते थे। सदर-ए-रियासत की भूमिका राज्यपाल के समकक्ष होती थी। लेकिन प्रधानमंत्री की शक्तियांशक्तियाँ और उत्तरदायित्व समय के अनुसार बदलते रहते थे। गोपालस्वामी आयंगर के कार्यकाल के दौरान उनके पास सीमित शक्तियां ही थीं। अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी उन्होंने कश्मीर के लिए काम करना जारी रखा।
 
जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ तब प्रधानमंत्री [[जवाहरलाल नेहरू]] कश्मीर मामले को देख रहे थे। परन्तु वो सीधे तौर पर खुद इससे नहीं जुड़े थे बल्कि इसकी जिम्मेदारी आयंगर को ही सौंप दी थी जो उस समय बिना विभाग के मंत्री थे।
 
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले [[अनुच्छेद 370]] का मसौदा तैयार किए जाने के बाद गोपालस्वामी आयंगर के ऊपर उस मसौदे को संसद में पारित कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। जब [[बल्लभवल्लभ भाई पटेल]] ने इस पर सवाल उठाया तो नेहरू ने जवाब दिया, "गोपालस्वामी आयंगर को विशेष रूप से कश्मीर मसले पर मदद करने के लिए कहा गया है क्योंकि वे कश्मीर पर बहुत गहरा ज्ञान रखते हैं और उनके पास वहां का अनुभव है। नेहरू ने यह भी कहा कि अयांगर को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए। नेहरू ने कहा था- "मुझे यह नहीं समझ आता कि इसमें आपका (गृह) मंत्रालयमन्त्रालय कहां आता है, सिवाए इसके कि आपके मंत्रालय को इस बारे में सूचित किया जाए.जाए। यह सब मेरे निर्देश पर किया गया है और मैं अपने उन कामों को रोकने पर विचार नहीं करता जिसे मैं अपनी ज़िम्मेदारी मानता हूं। आयंगर मेरे सहकर्मी हैं.हैं।"
 
इसके बाद, आयंगर ने कश्मीर विवाद पर संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडलप्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को बताया कि भारतीय सेना राज्य के लोगों की सुरक्षा के लिए वहां गई है और एक बार घाटी में शांति स्थापित हो जाए तो वहां जनमत संग्रह कराया जाएगा। गोपालस्वामी आयंगर और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रतिनिधि ज़फ़रुल्लाह ख़ान के बीच कश्मीर मुद्दे पर जुबानी जंग चली। गोपालस्वामी ने तर्क दिया कि "कबायली अपने-आप भारत में नहीं घुसे, उनके हाथों में जो हथियार थे वो पाकिस्तानी सेना के थे।"
 
बाद में गोपालस्वामी भारत के रेल और परिवहन मंत्री भी बने। 71 साल की आयु में फरवरी 1953 में [[चेन्नई]] में उनका निधन हो गया।
 
== इन्हें भी देखें==