"उधम सिंह": अवतरणों में अंतर
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▲|name=उधम सिंह
|alias = राम मोहम्मद सिंह आजाद▼
शहीद उधम सिंह का प्रारंभिक इतिहास उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है जिसका एकमात्र लक्ष्य जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेना था। लेकिन इस धारणा के तहत, उनके व्यक्तित्व और कार्यक्षेत्र के बारे में कुछ सवाल उठते हैं, जिनका जबाब यह धारणा ऐतिहासिक रूप से देने में विफल रही हैं। बाद के स्रोतों पर गहन शोध के आधार पर, उनके व्यक्तित्व के एक नये बिंब का पता चलता है। इस थीसिस की रचना मैंने अपनी पुस्तक 'चैलेंज टू इंपीरियल हेजमनी: द लाइफ स्टोरी ऑफ ए ग्रेट इंडियन पैट्रिआर्क उधम सिंह' (1998) में की,जिसमें उनकी पूरी भूमिका, भूमिका और योगदान एक पूर्व-प्रख्यात धारणा से ज्यादा जानकारी उसमें प्रदान की गई है।
पहले वाले आधार के तहत, इन सवालों के जवाब स्पष्ट नहीं हैं: पहला, अगर उधम सिंह को लेफ्टिनेंट गवर्नर सर फ्रांसिस माइकल अडवाईयर से बदला लेना था, तो उन्होंने लॉर्ड जेटलैंड, लॉर्ड लैमिंगटन और सर लुइस डेन पर गोली क्यों चलाई? दूसरा, उधम सिंह की गिरफ्तारी के बाद उसकी जेब से और कमरे से उसकी डायरियों (जो 1939 और 1940 के बीच) मेंं अड्वायर के अलावा जाटलैंड और लॉर्ड वेलिंगटन के पते क्यों मिले? तीसरा, अड्वायर को मारने के लिए उसने इतना लंबा इंतजार क्यों किया? जबकि वह 1933 के अंत से लगातार इंग्लैंड में थे और 1920 और 1927 के बीच इंग्लैंड जा सकते थे, जब वह लगातार विदेशों में घुम रहे थे। चौथा, जब वे जुलाई 1927 में हथियारों के साथ हिंदोस्तान में विद्रोह करने के लिए आए थे और अगस्त 1927 में गिरफ्तार किया गये थे, उस समय तक भी अड्वायर से बदला लेने की तरजीह नजर नहीं आई।
इन सवालों के अलावा, अधिकांश लेखकों ने कुछ तथ्यों और घटनाओं की गलत व्याख्या भी की है। अब तक प्रकाशित अधिकांश लेखन में न केवल बहुत भिन्नता है, बल्कि एक अंग्रेजी लेखक ने ब्रिटिश और जर्मन एजेंट के रूप में भी उनको प्रस्तुत किया है। इसलिए उनको एक अलग संदर्भ में समझा जाना जरूरी हो जाता है।
उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर, 1899 को सुनाम में एक गरीब परिवार में होता है। उनके बचपन का नाम शेर सिंह और उनके बड़े भाई का नाम साधु सिंह था। पिता टहिल सिंह छोटे-छोटे काम जैसे सब्जी बेचना, घरेलू नौकर या चौकीदार का काम करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे, कि उधम सिंह की माँ, हरनाम कौर, अचानक अपने पति और छोटे बच्चों को पीछे छोड़ कर चल बसी। कुछ समय बाद, टहिल सिंह ने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और अमृतसर में अपने किसी जानकार के पास बच्चों के लिए राग विद्या सिखाने का प्रबंध करने के लिए अमृतसर जाने के आ चल पड़े।
अमृतसर पहुँचने से पहले वह रास्ते में गंभीर रूप से बीमार हो गये और कुछ दिनों बाद अमृतसर में उसकी मृत्यु हो गई। उस समय दोनों भाई 8 और 6 साल के थे। एक परिचित ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें केंद्रीय सिख अनाथालय, पुतलीघर में भर्ती कराया। यहां रजिस्टर पर, उधम सिंह का नाम शेर सिंह है।
अनाथालय में, उधम सिंह और उनके भाई सिख धर्म और इतिहास से परिचित हुए। यह उन पर प्राथमिक प्रभाव था। उधम सिंह ने अनाथालय को कब छोड़ा, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि वे 1918 में मोबासा या मेसोपोटामिया में बढ़ई या मोटर मैकेनिक के रूप में काम कर रहे थे। वह जून, 1919 में भारत लौट आए और थोड़े समय रुकने के बाद वे युगांडा रेलवे वर्कशॉप में काम करने के लिए ब्रिटिश ईस्ट अफ्रीका लौट गए। वह 1922 में वापिस लौटे और अमृतसर में एक दुकान खोली। लगता है कि वह नैरोबी में ग़दर पार्टी के क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। दुकान क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गई। अफ्रीका जाने से पहले, वह राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों, सैफ-ए-दीन किचलू, अजीत सिंह, बसंत सिंह, बाबा भाग सिंह और मास्टर मोता सिंह से मिले थे। वह करतार सिंह सराभा की ग़दर पार्टी से पूरी तरह परिचित थे। जलियांवाला बाग कांड, जनरल डायर को सिरोपा और ननकाना साहिब त्रासदी उनको चुभती थी। 1923 में उन्होंने बब्बर अकाली आंदोलन में भी कुछ समय के लिए काम किया। वे गदर पार्टी का साहित्य अधिक दिलचस्पी से पढ़ते थे। 1924 की शुरुआत में, वह संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए और ग़दर पार्टी के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करने लगे। उन्होंने मैक्सिको से कैलिफोर्निया तक पहुंचने में पंजाबी प्रवासियों को अवैध रूप से मदद की, और इस तरह उन्हें ग़दर पार्टी के प्रभाव में लाए। ऐसा लगता है कि ग़दर पार्टी की मदद से वे हिंदुस्तान में भगत सिंह से जुड़े। संयुक्त राज्य अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को के अलावा, उन्होंने न्यूयॉर्क, शिकागो और डेट्रायट में काम किया। उन्होंने एक अलग 'आज़ाद पार्टी' भी बनाई, जो ग़दर पार्टी की शाखा थी।
कुछ समय बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका से उन्होंने फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, पोलैंड, लिथुआनिया, हंगरी और इटली की यात्रा की। उन्होंने ईरान, अफगानिस्तान, इटली, जर्मनी, पनामा, मैक्सिको, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, मलाया, बर्मा और सिंगापुर में ग़दर पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ संपर्क स्थापित किया। भगत सिंह उनके कार्यों से अवगत थे और उनसे बहुत प्रभावित थे। उन्होंने उधम सिंह को भारत वापस आने और उनके साथ काम करने के लिए कहा। जुलाई 1927 में, उधम सिंह भगत सिंह और ग़दर पार्टी के सदस्यों के लिए गोला-बारूद, पिस्तौल और मुद्रा लाए और फिर क्रांतिकारी गतिविधियों में लगे रहे। ऐसा लगता है कि उस समय ग़दर पार्टी के कार्यकर्ता भगत सिंह की विचारधारा से प्रभावित थे और दोनों एक साथ मिलकर काम कर रहे थे। किसी की मुखबिरी पर, पुलिस ने उसे अगस्त 1927 में अमृतसर से गिरफ्तार किया। उसके पास से दो पिस्टल बरामद हुए। गिरफ्तारी के समय, उन्होंने पुलिस को बताया था कि वह देश से अंग्रेजों को खदेड़ने में मदद करने के लिए अमेरिका से पिस्तौल और हथियार लाए थे। उन्होंने बोल्शेविकों के साथ भी सहानुभूति जताई। पुलिस में इस समय एफ.आई.आर. में उनका नाम शेर सिंह है। बगावत के जुर्म में उनको पांच साल कैद की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने जेल में अन्य कैदियों को प्रभावित करना जारी रखा, और ऐसा करने में उन्हें कई पुलिस अत्याचार झेलने पड़े। उसे बार-बार एक जेल से दूसरी जेल में स्थानांतरित किया गया।
शहीद उधम सिंह का ब्रिक्सटन जेल में लिखा गया पत्र
दिनांक 6-4-1940
प्रिय मित्रों, मुझे अभी भी आपकी किताबें जल्दी ही आने की उम्मीद है, डरो मत आपको जल्दी ही किताबें वापिस मिल जाएंगी, मैंने पढ ली हैं। यहाँ जेल में मेरी अच्छी स्थिति है, कढ़ी-चावल का खाना व अच्छा आराम है। मुझे लगता है कि यहाँ आने से मेरा वजन पाँच पाउंड बढ़ गया है। मुझे भारतीय पुस्तकों की कमी है, मैं नहीं जानता कि उन्हें पाने के लिए क्या करुं। मेरा मानना है कि मैं तकलीफ न दूं। मेरी खातिर प्रबंध करो।
आपका शुभचिंतक
मोहम्मद सिंह आजाद
बरिकसटन जेल लंदन।
23 मार्च, 1931 भगत सिंह फांसी दी गई। उस समय उधम सिंह बहुत उदास व गंभीर थे। वह अक्सर भगत सिंह की तस्वीर अपनी जेब में रखते थे। बाद में इंग्लैंड में जेल में लिखे अपने पत्रों में, उन्होंने उल्लेख किया है कि भगत सिंह की शहादत से उनके आंदोलन को एक गंभीर झटका लगा था। 1931 के अंत में जेल से रिहा होने के बाद, वह पहली बार उधम सिंह के नाम से लाहौर से पासपोर्ट जारी करवाकर इंग्लैंड पहुंचे। 1934 में पुलिस द्वारा तैयार की गई 'ग़दर' पार्टी की डायरेक्टरी में, उनका नाम अभी भी शेर सिंह है। 1937 में, पुलिस को पता चला कि ग़दर पार्टी के शेर सिंह अब उधम सिंह बन गए हैं। इंग्लैंड में वे पहली बार लंदन के एक गुरुद्वारे में कई पंजाबियों के संपर्क में आए, लेकिन सबसे ज्यादा नजदीकी शिव सिंह जोहल से हुई। अपनी घुमंतू प्रवृत्ति होने के कारण, उन्होंने 1934 से 1938 तक कई यूरोपीय देशों - फ्रांस, जर्मनी, रूस, बेल्जियम, पोलैंड, हॉलैंड, ऑस्ट्रिया, हंगरी, इटली, ग्रीस, चेकोस्लोवाकिया, नॉर्वे और स्वीडन की यात्रा की। इंग्लैंड में रहने के दौरान, उन्होंने कई तरह के कार्य किए। बेशक पुलिस उस पर नजर रख रही थी, लेकिन वे अब एक जगह रुक कर नहीं रह रहा थे।
वह अक्सर यूरोपीयन लोगों के घरों में कमरा किराए पर लेकर रहते थे।
दुसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया था और ग़दर पार्टी महसूस कर रही थी अब समय आ गया है कि हिंदुस्तान में बगावत करके अंग्रेजों को बाहर निकाला जाये। उधम सिंह ऐसे मौके की तलाश में थे। 13 मार्च, 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में गोरे साम्राज्यवादियों की बैठक थी, जो अंग्रेज सरकार को सलाह देते थे कि किस तरह से भारत व दुसरे देशों पर कब्जा करके रखा जा सकता है। जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को भारत और अन्य देशों पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने की सलाह दी। बैठक के खत्म होने पर, उधम सिंह ने गोली चलाकर पंजाब के पूर्व गवर्नर सर माइकल फ्रांसिस एडवायर को वहीं ढेर कर दिया और लॉर्ड जेटलैंड, लॉर्ड लैमिंगटन और सर जॉयस डान को भी घायल कर दिया। 1939 और 1940 की उसकी डायरियों में पाए गए एक पूर्व वायसराय लार्ड वैंलिगटन के पते से साबित होता है कि उधम सिंह का उसको भी मारने का इरादा था, क्योंकि 1931 में जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी, तब लार्ड वैंलिगटन ही भारत के वायसराय थे। दोनों डायरियों में जेटलैंड और एडवायर के पते भी सूचीबद्ध हैं। तब जैटलैंड भारत के राज्य सचिव थे और ग़दर पार्टी का मानना था कि उन्होंने भारतीयों की इच्छा के विरुद्ध द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को धकेल दिया था।
माइकल एड्वायर तो पिछले 20 वर्षों से उसकी निगाह में था। क्योंकि एड्वायर ने पंजाब का गवर्नर रहते समय गदर पार्टी के कई देशभक्तों को फांसी पर चढ़ाया था, काफी देशभक्तों को शारीरिक यातनाएं व उम्रकैद देकर काले पानी की जेल में डाला था। दूसरे, उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पंजाबियों की जबरदस्ती भर्ती की और ग्रामीण आबादी पर दमन का दौर शुरू किया। तीसरा, जलियांवाला बाग का हत्याकांड और फिर मार्शल लगातार लोगों का दमन करने के कारण एड्वायर उधम सिंह की नज़र में एक दरिंदा बन चुका था। यहीं नहीं वह लगातार भारतीयों के खिलाफ जहर उगलता रहता था, और इस बैठक में भी वह शेखी बघार रहा था भारतीय लोगों का मज़ाक उड़ा रहा था । डैन और लैमिंगटन भी भारत को सख्ती से दबाकर रखने के हिमायती थे। वास्तव में, उधम सिंह भारतीय मामलों से जुड़े लोगों को निशाना बनाना चाहते थे ताकि विद्रोह की चुनौती दी जा सके।
शहीद उधम सिंह द्वारा लिखे गए पत्र का हिंदी अनुवाद।
धन्यवाद सहित आओ
और अगर आप कर सकते हैं तो 'हीर' 'वारिस वारिस शाह' नाम की एक पुस्तक भेजना । इस पुस्तक को शपथ के लिए साथ ले जाने का इरादा है क्योंकि मेरे जानकारों व किसी और ने भी हाउस ऑफ कॉमन्स में मेरा नाम नहीं बदला है। श्रीमती चेम्बरलेन ने मुझे उधम सिंह नाम दिया है। अब वह मेरे पुजारी हैं इसलिए उनकी किताब को ही मै कचहरी में लेकर जाना चाहता हूं।
सभी का अभिवादन।
आपका शुभचिंतक
(पता)
सचिव
खालसा जत्था
79, सिनक्लेयर रोड
लंदन वेस्ट
गिरफ्तारी के बाद वह मुस्कुरा रहे थे और ऐसा करने के बारे में पुलिस को अपना भी बयान दिया। शिव सिंह जोहल के नेतृत्व में अन्य पंजाबियों और कुछ अंग्रेजी हमदर्दों ने मुकदमे के दौरान उधम सिंह की काफी मदद की। अपने कारावास के दौरान, उधम सिंह ने शिव सिंह जौहल, संयुक्त राज्य अमेरिका में ग़दर पार्टी और कुछ अन्य लोगों को 14 पत्र लिखे। उन्होंने जेल में 42 दिन की लंबी भूख हड़ताल भी की ताकि वह देशवासियों को प्रेरित कर सके। 5 जून, 1940 को अपनी सजा सुनाए जाने के समय उन्होंने एक लिखित बयान भी पढ़ा, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्यवाद की लूट और हिंसक नीतियों की कड़ी निंदा की और कहा कि यह भारत में ही नहीं बल्कि अन्य उपनिवेशों में भी लोगों को भुखमरी, गरीबी व शोषण, अत्याचार व झूठे वादों का शिकार बनाया है, इसलिए उन्होंने इस कारवाई को अंजाम दिया है। उन्होंने कहा कि वह अंग्रेज लोगों से नहीं बल्कि अंग्रेजी साम्राज्यवादियों से नफरत करते हैं। लेकिन अंग्रेज साम्राज्यवाद ने 31 जुलाई 1940 को इनको फांसी देकर शहीद कर दिया।
असल में, उधम सिंह ग़दर पार्टी के एक सक्रिय सदस्य थे और ग़दर पार्टी की विचारधारा के समर्थक थे। इसकी पुष्टि खुफिया पुलिस रिपोर्ट, 1934 की ग़दर डायरेक्टरी, 1927 की पुलिस एफ आई आर और 1940 के दौरान की गई जांच से होती है।उनका अदालत का बयान भी ग़दर पार्टी की विचारधारा से प्रभावित था। खुफिया पुलिस और गृह मंत्रालय की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि वह किसी भी देश की गुप्त सेवा का सदस्य नहीं थे, बल्कि ग़दर पार्टी के एक सक्रिय कार्यकर्ता थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध से प्रभावित थे, उनका मानना था कि अब जंग की शुरूआत की जा सकती है। उनकी कार्रवाई एक बगावत की शुरुआत थी।
यहां यह बताना भी उचित है कि अपनी लंबी क्रांतिकारी गतिविधि के दौरान उन्होंने कई नाम बदले, जिनमें उदय सिंह, उदन सिंह, फ्रैंक ब्राज़ील, उधम सिंह, यूएस सिद्धू, हिज हाइनेस प्रिंस यू और मोहम्मद सिंह आजाद शामिल थे। लेकिन उनका नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद कभी नहीं रहा।
मोहम्मद सिंह आजाद उनकी एक बांह पर खुदा हुआ था। उनकी वारिस शाह की 'हीर' पढ़ने में रुचि थी। पर उन्होने मुकदमे के दौरान हीर की कसम नहीं खाई। वह जलियांवाला बाग नरसंहार के समय भी मौजूद नहीं थब और बदला लेने के लिए वहां मौजूद होना कोई जरुरी शर्त भी नहीं थी। बेशक, यह स्पष्ट है कि उन्होने जलियांवाला हत्याकांड का बदला लिया, लेकिन यह अन्य महत्वपूर्ण कारणों में से एक अति महत्वपूर्ण कारण था। उधम सिंह न केवल दासता, लूट और उत्पीड़न के विरोधी थे, बल्कि वे इस तरह की गैर-मानवीय गतिविधियों को ऐतिहासिक चुनौती देने में भी सक्षम थे। यही कारण है कि वे अंग्रेजी अदालत में हाथ उठाकर 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद' जैसे नारे लगाकर अमर हो गए।
इंग्लैंड में समाचार पत्र की एक खबर के अनुसार सर माइकल अड्वायर की गोली मारकर हत्या कर दी व लॉर्ड ज़ेटलैंड घायल हो गए,
सर लुई डेन का हाथ टूट गया, लॉर्ड लेमिंगटन घायल
*भारतीयों ने बदला लिया*
लंदन, 18 मार्च
आज रात यहां इंडिया एसोसिएशन की बैठक के दौरान, एक भारतीय बंदूकधारी ने पंजाब के पूर्व गवर्नर सर माइकल अड्वायर की गोली मारकर हत्या कर दी। उन्होंने भारत के विदेश मंत्री लॉर्ड ज़ेटलैंड को घायल कर दिया। लॉर्ड ज़ेटलैंड को गोली छुह कर निकल गई। पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर सर लुइस डेन भी घायल हो गए थे और उनकी बांह टूट गई। बॉम्बे के पूर्व गवर्नर लॉर्ड लैमिंगटन के हाथ पर भी चोट लगी है।
मध्य पूर्व मामलों के विशेषज्ञ, लॉर्ड ज़ेटलैंड के साथ खड़े ब्रिगेडियर-जनरल सर पर्सी साइक्स बाल बाल बच गए। गोलीबारी की यह घटना लंदन के खचाकच भरे कैक्सटन हॉल में एक बैठक के दौरान हुई।
*शहीद उधम सिंह के बारे में कुछ तथ्य*
उधम सिंह ग़दर पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे और उसी विचारधारा का समर्थन करते थे। इसकी पुष्टि खुफिया पुलिस रिपोर्ट, 1934 की ग़दर डायरेक्टरी , 1927 की पुलिस एफ आई आर और 1940 के दौरान की गई जांच से होती है। उनका अदालत का बयान भी ग़दर पार्टी की विचारधारा से प्रभावित था।
5 जून, 1940 को जब उनको सजा सुनाई गई उस समय उन्होंने एक लिखित बयान भी पढ़ा, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्यवाद की लूट और हिंसक नीतियों की कड़ी निंदा की थी और कहा था कि अंग्रेजी साम्राज्यवादीओं ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य उपनिवेशों में भी भुखमरी, गरीबी, बीमारी और अत्याचार दिये है, जिसके विरोध में उन्होंने यह काम किया है। उन्होंने कहा कि वे अंग्रेज लोगों से नहीं बल्कि अंग्रेजी साम्राज्यवादियों से नफरत करते हैं।
अफ्रीका रवाना होने से पहले, वह राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों, सैफ-ए-दीन किचलू, अजीत सिंह, बसंत सिंह, बाबा भाग सिंह और मास्टर मोता सिंह से मिले थे।
*1923 में उन्होंने बाबर अकाली आंदोलन में कुछ समय काम किया।*
*1924 की शुरुआत में, वह संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए और ग़दर पार्टी के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करने लगे। उन्होंने मैक्सिको से कैलिफोर्निया तक पंजाबी प्रवासियों को अवैध रूप से पहुंचने में मदद की, और इस तरह उन्हें ग़दर पार्टी के प्रभाव में ले आए।*
*जुलाई 1927 में, उधम सिंह भगत सिंह और ग़दर पार्टी के सदस्यों के लिए गोला-बारूद, पिस्तौल और मुद्रा लाए और फिर क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। ऐसा लगता है कि उस समय ग़दर पार्टी के कार्यकर्ता भगत सिंह की विचारधारा से प्रभावित थे और दोनों एक साथ मिलकर काम कर रहे थे। किसी की मुखबिरी पर, पुलिस ने उसे अगस्त 1927 में अमृतसर से गिरफ्तार कर लिया। उसके कब्जे से दो पिस्टल बरामद हुए। गिरफ्तारी के समय, उसने पुलिस को बताया था कि वह अमेरिका से पिस्तौल और हथियार लाया ताकि इनकी मदद से अंग्रेजों को भारत से बाहर किया जा सके। उसने बोल्शेविकों के साथ भी सहानुभूति जताई। इस समय पुलिस एफ आई आर में उसका नाम शेर सिंह ही है। तब उनको बगावत के प्रयास करने के जुर्म में पांच साल की कैद हुई थी।
डॉ नवतेज सिंह(प्रोफेसर और प्रमुख (सेवानिवृत्त), पंजाब इतिहास अध्ययन विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला)
== जीवन वृत्त ==
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