"महात्मा गांधी": अवतरणों में अंतर

कोई संदर्भ नहिं। विकि पर संदर्भ के बिना आलोचना करना मना हैं।
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
एक नहीं, हजारों लोगों ने गांधी जी की आलोचना की है। कुछ सन्दर्भ जोड़े गए हैं।
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 108:
--></ref> रखा हुआ है। इस परिवार को पता है कि इस पवित्र राख का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दुरूपयोग किया जा सकता है लेकिन उन्हें यहां से हटाना नहीं चाहती हैं क्योंकि इससे मंदिरों .<ref name="Guardian-2008-ashes" /> को तोड़ने का खतरा पैदा हो सकता है।
 
== गांधी के सिद्धांतसिद्धान्त ==
{{See also|गांधीवाद}}
{{गांधी के सिद्धांत}}
पंक्ति 250:
=== राज्य विरोधी ===
गाँधी [[राज्य विरोधी|राज विरोधी]] ([[:en:Antistatism|anti statist]]) उस रूप में थे जहाँ उनका दृष्टिकोण उस भारत का हैं जो कि किसी सरकार के अधीन न हो। <ref>जेसुदासन, ईग्नेसिअस आजादी के लिए गाँधी का धर्मग्रन्थ गुजरात साहित्य प्रकाशन: आनंद इंडिया, १९८७, पीपी २३६-२३७</ref> उनका विचार था कि एक देश में सच्चे [[स्वराज|स्वशासन]] ([[:en:Swaraj|self rule]]) का अर्थ है कि प्रत्यक व्यक्ति ख़ुद पर शासन करता हैं तथा कोई ऐसा राज्य नहीं जो लोगों पर कानून लागु कर सके। <ref>मूर्ती, श्रीनिवास महात्मा गाँधी और लियो टालस्टाय के पत्र लांग बीच प्रकाशन : लांग बीच, १९८७ पीपी १३</ref><ref>मूर्ति, श्रीनिवास .महात्मा गाँधी और लियो टालस्टाय के पत्र लांग बीच प्रकाशन : लांग बीच, १९८७, पीपी १८९.</ref> कुछ मौकों पर उन्होंने स्वयं को एक [[दार्शनिक अराजकतावाद|दार्शनिक अराजकतावादी कहा है]] ([[:en:Philosophical Anarchism|philosophical anarchist]]).<ref>[http://www.mkgandhi.org/articles/snow.htm गाँधी पर और उनके द्वारा आलेखों को], [[7 जून|७ जून]], [[२००८]] को पुनः समीक्षा किया गया</ref> उनके अर्थ में एक स्वतंत्र भारत का अस्तित्व उन हजारों छोटे छोटे आत्मनिर्भर समुदायों से है (संभवतः [[लेव तालस्तोय|टालस्टोय]] का विचार) जो बिना दूसरो के अड़चन बने ख़ुद पर राज्य करते हैं। इसका यह मतलब नहीं था कि ब्रिटिशों द्वारा स्थापित प्रशाशनिक ढांचे को भारतीयों को स्थानांतरित कर देना जिसके लिए उन्होंने कहा कि ''हिंदुस्तान को इंगलिस्तान बनाना है''.<ref>छठा अध्याय, ''हिंद स्वराज'', मोहनदास करमचंद द्वारा .गांधी</ref> ब्रिटिश ढंग के संसदीय तंत्र पर कोई विश्वास न होने के कारण वे भारत में आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग कर [[प्रत्यक्ष लोकतंत्र]] ([[:en:direct democracy|direct democracy]]) प्रणाली को<ref>भट्टाचार्य, बुधदेवगाँधी के राजनैतिक दर्शन का विकास कलकत्ता पुस्तक घर: कलकत्ता, १९६९, पीपी ४७९</ref> स्थापित करना चाहते थे।<ref>छठा अध्याय, ''हिंद स्वराज'', मोहनदास करमचंद द्वारागाँधी</ref>
 
== गांधी जी की आलोचना ==
गांधी के सिद्धान्तों और करनी को लेकर प्रयः उनकी आलोचना भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-
* दोनो विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना,
* [[खिलाफत आन्दोलन]] जैसे साम्प्रदायिक आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना,
* सशस्त्र क्रान्तिकारियों के अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यों की निन्दा करना,
* [[गांधी-इरविन समझौता]] - जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा,
* [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष पद पर [[सुभाष चन्द्र बोस]] के चुनाव पर नाखुश होना,
* [[चौरीचौरा काण्ड]] के बाद असहयोग आन्दोलन को सहसा रोक देना,<ref>[https://www.mkgandhi.org/articles/soul.htm Resistance to the Soul : Gandhi and his critics]</ref>
* भारत की स्वतंत्रता के बाद [[जवाहरलाल नेहरू|नेहरू]] को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना,
* स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना,
* [[भीमराव आम्बेडकर]], महात्मा गांधी को [[भारत में जातिवाद|जाति प्रथा]] का समर्थक समझते थे।<ref>[https://www.mkgandhi.org/articles/soul.htm Resistance to the Soul : Gandhi and his critics]</ref>
 
== इन्हें भी देखें==