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पठन कौशल (भाषा कौषल)

पठन या वाचन कौशल भाषा का मूल स्वरूप उच्चारित रूप है। लिखित भाषा के ध्वन्यात्मक पाठ को मौखिक पठन कहते हैं। बिना अर्थ ग्रहण किए गए पठन को पठन नहीं कहा जा सकता। पठन की क्रिया में अर्थ ग्रहण करना आवश्यक होता है।

महत्व (१) शिक्षा प्राप्ति में सहायक (२) ज्ञान उपार्जन का साधन (३) विशिष्टता और नवीनता (४) सामाजिक विकास (५) लोकतांत्रिक गुणों का विकास (६) मनोरंजन (७) राजनीतिक विकास (८) बौद्धिक विकास (९) साहित्यिक विकास (१०) सांस्कृतिक विकास

उद्देश्य १) आरोह अवरोह का अभ्यास २) उचित स्थान का ज्ञान ३) उच्चारण का ज्ञान ४) भाव समझना और समझाना ५) ध्वनि बल निर्गम स्वर आदि का सम्यक ज्ञान ६) शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारण ७) मधुरता तथा प्रभाव उत्पादकता

पठन कौशल विधियां १) शब्द तत्व पर आधारित विधियां १.१) वर्ण बोध विधि १.२) ध्वनि साम्य विधि २) स्वर उच्चारण विधि ३) देखो और कहो ४) वाक्य विधि ५) कहानी विधि ६) अनुकरण विधि ७) संपर्क विधि

पढ़ने में त्रुटि का ज्ञान १) अटक-अटक कर पढ़ना २) अनुचित मुद्रा ३) वाचन में गति का अभाव ४) अशुद्ध उच्चारण ५) दृष्टि दोष से वर्णन न दिखना ६) पाठ्य सामग्री का कठिन होना ७) संयुक्ताक्षर की छपाई में त्रुटि ८) भावानुकूल आरोह-अवरोह का अभाव ९) वचन संबंधित मार्गदर्शन का अभाव १०) अध्यापक का व्यवहार Ashish Dave (वार्ता) 07:11, 16