"पृथ्वीराज रासो": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:rithvirajprithviraj Raso.jpg|thumb|right|300px|'''''' के प्रथम खंड का द्वितीय संस्करण]]
'''पृपृथ्वीराज रासो''' [[हिन्दी भाषा]] में लिखा एक [[महाकाव्य]] है जिसमें [[पृथ्वीराज चौहान]] के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके रचयिता [[राव चंदबरदाई|चंद बरदाई भट्ट]]पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय [[वीर रस]] की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे। ११६५ से ११९२ के बीच जब [[पृथ्वीराज चौहान]] का राज्य [[अजमेर]] से [[दिल्ली]] तक फैला हुआ था।
 
"पृपृथ्वीराज रासो ढाई हजार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है जिसमें ६९ समय (सर्ग या अध्याय) हैं। प्राचीन समय में प्रचलित प्रायः सभी छंदों का इसमें व्यवहार हुआ है। मुख्य [[छन्द]] हैं - [[कवित्त]] (छप्पय), [[दूहा]](दोहा), [[तोमर]], [[त्रोटक]], [[गाहा]] और [[आर्या]]। जैसे [[कादंबरी]] के संबंध में प्रसिद्ध है कि उसका पिछला भाग [[बाण भट्ट]] के पुत्र ने पूरा किया है, वैसे ही रासो के पिछले भाग का भी चंद के पुत्र [[जल्हण]] द्वारा पूर्ण किया गया है। रासो के अनुसार जब [[मोहम्मद ग़ौरी|शहाबुद्दीन गोरी]] पृथ्वीराज को कैद करके [[ग़ज़नी]] ले गया, तब कुछ दिनों पीछे चंद भी वहीं गए। जाते समय कवि ने अपने पुत्र जल्हण के हाथ में रासो की पुस्तक देकर उसे पूर्ण करने का संकेत किया। जल्हण के हाथ में रासो को सौंपे जाने और उसके पूरे किए जाने का उल्लेख रासो में है -
 
: ''पुस्तक जल्हण हत्थ दै चलि गज्जन नृपकाज।''