"तात्या टोपे": अवतरणों में अंतर

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tatya tope amar rahe. (Satya Brat rajak jeora mora]
सन 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन में तात्या टोपे का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है जो अपने साहस और वीरता के लिए अमर हुए
उनका पूरा नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था पिता पांडुरंग भट्ट बाजीराव पेशवा के यहां बिठूर में नौकरी करते थे बाजीराव पेशवा ने नाना दुंदु पंत को अपना बेटा मानकर गोद लिया था तात्या टोपे और नाना साहब बचपन के अच्छे मित्र थे पेशवा और अंग्रेजो में रियासत को लेकर खींचतान हो रही थी अंग्रेज अपनी नीतियों के तहत पर पेशवा से समझौता करके पेशवा को ₹8 लाख सालाना पेंशन दे रहे थे उस समय तात्या टोपे एक मामूली कल के रूप में बिठूर में नौकरी करते थे सन 18 51 में बाजीराव पेशवा की मृत्यु हो गई उस समय नानासाहेब कानपुर में रहते थे अंग्रेजों ने साफ-साफ उन्हें उत्तर अधिकारी मानने से इंकार कर दिया अंग्रेजों की नियत साफ जाहिर हो रही थी कि वह बिठूर को हड़पना चाहते थे अंग्रेजों ने कानपुर पर हमला किया और नाना साहब के महल पर कब्जा कर लिया नाना साहब संकट में आ गए तात्या टोपे ने अब कलम छोड़कर तलवार उठा ली वे नाना साहब के सेनापति बने उन्होंने सेना तैयार की और बिठूर पर कब्जा किया 1857 के स्वतंत्रता संग्राम संग्राम की शुरुआत हो चुकी थी स्थान स्थान पर क्रांतिकारी सेना युद्ध कर रही थी अंग्रेज सेनापति हैवलॉक और तात्या के बीच घमासान युद्ध हुआ तात्या पहले तो जीत गए लेकिन जब अंग्रेजी सेना ने और मदद मांगी अपनी ताकत बढ़ा ली तो उन्हें हारकर पीछे हटना पड़ा साथिया चुपचाप ग्वालियर की ओर बढ़ गए ग्वालियर में बहुत बड़ी सेना थी तात्या ने उसे लिया और कालपी पहुंचे वहां किले पर कब्जा करके तात्या ने उसे अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया कटिया उचित समय देखते हुए अपनी बड़ी सेना लेकर जब कानपुर में पहुंचे तब कानपुर पर अंग्रेज जनरल विंडम का अधिकार था जनरल विंडम के पास सेना की कमी नहीं थी दोनों सेनाओं में जोरदार लड़ाई हुई तात्या ने बड़ी चालाकी से अपनी सेना की अगुवाई की जीत उनके पक्ष में ही थी कि वीडियो में लखनऊ और इलाहाबाद से मदद मांग ली उन्हें कानपुर फिर से छीन लिया और तात्या को वापस लौटना पड़ा तभी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेज सेनापति हयूरोज में लड़ाई छिड़ गई रानी नानासाहेब की मुंह बोली बहन की जब रानी ने तात्या से सहायता मांगी तो तुरंत तात्या अपने 14 हजार सैनिक लेकर झांसी आए युद्ध छिड़ गया किंतु सर हांयूरोज से हुए मुकाबलों में तात्या की सेना को बहुत नुकसान हुआ उनके कई सैनिक मारे गए उधर झांसी पर हयूरोज का कब्जा हो गया रानी हांयूरोज से बचते हुए कल्पी पहुंची तात्या सलाह करके रानी ने ग्वालियर चलने की बात मालिक तात्या चाहते थे कि ग्वालियर की सेना ने साथ मिल जाए सर हयूरोज रानी का तात्या और लक्ष्मी बाई ग्वालियर की ओर चले गए अभी भी पीछा कर रहा था ग्वालियर की प्रजा भी उनके साथ ऐसे कठिन परिस्थिति में ग्वालियर के लोग बिना राजा के थे इसलिए ग्वालियर के किले पर कब्जा करने अंग्रेजी सेना भारी तादाद में इकट्ठी हो चुकी ग्वालियर मैं उनकी अंग्रेजी सेना से घमासान लड़ाई हुई लक्ष्मीबाई इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त किया तात्या टोपे अब अकेले पड़ गए थे वे अपनी बची हुई सेना लेकर नागपुर की ओर चले जब तात्या टोपे अंग्रेजों के सारी कोशिशों के बाद भी नर्मदा कर गए तो अंग्रेज इतिहासकार मल सुनने लिखा,' जिस बहादुरी और हिम्मत के साथ तात्या ने अपनी इस योजना को पूरा किया उनकी प्रशंसा करने के लिए शब्द नहीं है तात्या टोपे जिस आशा से नर्मदा पार्क कर दक्षिण की ओर गए थे वह पूरी ना हुई अंग्रेजों का दबाव वहां भी बढ़ता गया आखिर वे लौट आए और मध्य भारत के जंगलों में पहुंचे यहां उन्होंने छापामार युद्ध शुरू किया उनकी सेनाएं चुप कर अंग्रेजी सेना पर वार करती और फिर जंगलों में गायब हो जाती उन्हें पकड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया जंगल में अंग्रेजी सेना भारी तादाद में तैनात कर दी गई सैनिकों की बड़ी संख्या थी फिर भी वे तात्या के सेना बेहद घबराते थे उन्हें डर रहता था कि ना जाने कब और किस तरफ से तात्या हमला कर दे आखिर अंग्रेजी सेना ने फिर अपनी पुरानी चाल चली उन्होंने साथिया के मित्र सरदार मानसिंह को और मिला लिया 1 दिन तात्या जब मानसिंह के साथ जंगलों में छिपा हुआ था तब मानसिंह ने तात्या को पकड़वा दिया तात्या टोपे पर अंग्रेजों ने फौजी अदालत में मुकदमा चलाया उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई 18 अप्रैल 18 59 को शिवपुरी में उन्हें फांसी दे दी गई उस समय चारों तरफ फौज का पहरा था उसके चारों तरफ पीलो पर खड़े हजारों गांव वाले तात्या को दूर से सदा के साथ नमस्कार कर रहे थे तात्या धैर्य और साहस के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़ गया तात्या ने हंसते हुए अपने हाथ से फांसी का फंदा डाल दिया