"धन्वन्तरि": अवतरणों में अंतर

Books
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
जो किसी ने गलत लिखा था वही
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 13:
| mount = [[कमल]]
}}
'''धन्वन्तरि''' को [[हिन्दू धर्म]] में क्षत्रिय नाई(सम्राट कुकुलअशोक जिस कुल के [[वैद्युतथे बैलास्ट|वंंशज]]जिनके मानेचिन्ह जातेआज भी राष्ट्र ध्वज में एवम राष्ट्र के सभी प्रतीकों में हैं) नाई(सेन, श्रीवास आदि नाम से जाने जाने वाले समुदाय) कुल के है। वे महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] समझे जाते हैं। इनका [[पृथ्वी]] लोक में अवतरण [[समुद्र मंथन]] के समय हुआ था। [[शरद पूर्णिमा]] को [[चंद्रमा]], [[कार्तिक]] [[द्वादशी]] को कामधेनु गाय, [[त्रयोदशी]] को धन्वंतरी<ref>[http://uditbhargavajaipur.blogspot.com/2010/03/4_26.html विष्णु पुराण-४]। २६ मार्च २०१०। भार्गव</ref>, [[चतुर्दशी]] को [[काली]] माता और अमावस्या को भगवती [[लक्ष्मी]] जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये [[दीपावली]] के दो दिन पूर्व [[धनतेरस]] को भगवान धन्वंतरी का जन्म [[धनतेरस]] के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने [[आयुर्वेद]] का भी प्रादुर्भाव किया था।<ref name="">[http://express.ashram.org/?tag=hmedabad दीपावली – पूजन का शास्त्रोक्त विधान]। आश्रम.ऑर्ग। २८ अक्टूबर २००८</ref> इन्‍हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में [[शंख]] और [[चक्र]] धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत [[कलश]] लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु [[पीतल]] माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।<ref>[http://hindi.webdunia.com/religion/astrology/article/0810/24/1081024022_1.htm धनतेरस पर सोना नहीं पीतल खरीदें]। वेब दुनिया</ref> इन्‍हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य '''आरोग्य का देवता''' कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में [[दिवोदास]] हुए जिन्होंने '[[शल्य चिकित्सा]]' का विश्व का पहला विद्यालय [[काशी]] में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य [[सुश्रुत]] बनाये गए थे।<ref name="वैभव">[http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/kbhu_v02.htm काशी की विभूतियाँ]। वाराणसी वैभव</ref> सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही [[सुश्रुत संहिता]] लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन ([[शल्य चिकित्सक]]) थे। [[दीपावली]] के अवसर पर [[कार्तिक]] [[त्रयोदशी]]-[[धनतेरस]] को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।
 
== ==