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'''धर्म''' का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html धर्म] ,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को [[गुण]] भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण का अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं है। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है, यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है [[प्रकाश]], उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए [[पानी]], अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है।
 
वैदिक काल में "[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html धर्म]" शब्द एक प्रमुख विचार प्रतीत नहीं होता है। यह [[ऋग्वेद]] के 1,000 भजनों में एक सौ गुना से भी कम दिखाई देता है जो कि 3,000 साल से अधिक पुराना है।<ref>{{cite web|url=https://amp.scroll.in/article/905466/how-did-the-ramayana-and-mahabharata-come-to-be-and-what-has-dharma-got-to-do-with-it|title=How did the ‘Ramayana’ and ‘Mahabharata’ come to be (and what has ‘dharma’ got to do with it)?}}</ref> 2,300 साल पहले सम्राट [[अशोक]] ने अपने कार्यकाल में इस शब्द का इस्तेमाल करने के बाद, "धर्म" शब्द प्रमुखता प्राप्त की थी। पांच सौ वर्षों के बाद, ग्रंथों का समूह सामूहिक रूप से धर्म-[[शास्त्रों]] के रूप में जाना जाता था, जहां [[धर्म]] सामाजिक दायित्वों के साथ समान था, जो व्यवसाय (वर्णा धर्म), जीवन स्तर (आश्रम धर्म), व्यक्तित्व (सेवा धर्म) पर आधारित थे। , राजात्व (राज धर्म), स्री धर्म और मोक्ष धर्म।
 
हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म इंसान को अच्छाई के मार्ग पर लेकर जाता है।
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इन साम्रज्य नीति के कारण विश्व का आज वर्तमान का इतिहास है ।
 
==[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html हिन्दू समुदाय ]==
{{मुख्य|हिन्दू समुदाय}}
 
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* '' का अधर्म''' : हिंसा, अस्तेय, प्रतिसिद्ध मैथुन
* '''[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html शरीर का धर्म]''' : दान, परित्राbnण, परिचरण (दूसरों की सेवा करना)
* '''[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html बोले और लिखे गये शब्दों द्वारा अधर्म]''' : मिथ्या, परुष, सूचना, असम्बन्ध
* '''बोले और लिखे गये शब्दों द्वारा धर्म''' : सत्व, हितवचन, प्रियवचन, स्वाध्याय (self study)
* '''मन का अधर्म''' : परद्रोह, परद्रव्याभिप्सा (दूसरे का द्रव्य पा लेने की इच्छ), नास्तिक्य (denial of the existence of morals and religiosity)
* '''[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html मन का धर्म]''' : दया, स्पृहा (disinterestedness), और श्रद्धा
 
===[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html महाभारत]===
[[महाभारत]] के वनपर्व (३१३/१२८) में कहा है-
: ''धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
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==इन्हें भी देखें==
*[[ऋत]]
*[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html धर्म (पंथ)]]
*[[सम्प्रदाय]]
*[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html धर्मशास्त्र]]
*[[धर्मचक्र]]
*[[कर्म]]
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== बाहरी कड़ियाँ ==
*[http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1965/January/v2.5 धर्म-रक्षा से आत्म-रक्षा]
*[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Dharm-kya-hai.html धर्म क्या है, आखिर सारे धर्म एक जैसे होने चाहिए जानिए]
*[http://adhyatmikprakshbindu.blogspot.in/2016/04/blog-post.html धर्म : स्वरुप, परिभाषा और लक्षण]
*[https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/howtoStopRapes/hindu-is-not-the-religion/ धर्म और संप्रदाय भिन्न होते हैं।]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/धर्म" से प्राप्त