| name = शिव
| image = Shiva statue, Mauritius.jpg
| other_names = [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html नीलकंठ]]],[[महादेव]], [[शंकर]],[[पशुपतिनाथ]],[[गंगाधर]],[[नटराज]], [[त्रिनेत्र]],[[भोलेनाथ]],[[रुद्रशिव]],[[कैलाशी]]
| Tamil_script =
| affiliation = [[हिन्दू देवता]]
| children = [[कार्तिकेय]] ,[[गणेश]]
}}
'''[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html शिव]''' या '''महादेव'''आरण्य संस्कृति जो आगे चल कर सनातन [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html शिव] धर्म नाम से जाने जाती है में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, [[शिव|शंकर]], महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है।<ref>{{उद्धृत अंतर्जाल|title=तस्वीरों के जरिए जानें, भगवान शिव के ये आभूषण देते हैं किन बातों का संदेश|url=https://www.jagran.com/photogallery/religion-suvichar-significance-of-lord-shiva-ornaments-25392.html|date=13-11-2017|author=संजय पोखरियाल|Publisher=दैनिक जागरण}}</ref> [[हिन्दू शिव घर्म ]] शिव-धर्म के प्रमुख [[देवता]]ओं में से हैं। [[वेद]] में इनका नाम [[रुद्र]] है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी ([[शक्ति]]) का नाम [[पार्वती]] है। इनके पुत्र [[कार्तिकेय]] और [[गणेश]] हैं, तथा पुत्री [[अशोक सुंदरी]] हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में [[योगी]] के रूप में देखे जाते हैं और उनकी [[पूजा]] [[शिवलिंग|शिवलिंग]] तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में [[नाग]] देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और [[त्रिशूल]] लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है।<ref>{{उद्धृत अंतर्जाल|url=http://timesspeak.com/भगवान-शिव-के-इन-गुणों-को-अप/|title=भगवान शिव के इन गुणों को अपनाएंगे तो आपका जीवन सफल हो जाएगा।|date=13-02-2018|author=हिमान्शु जी शर्मा}}</ref>
भगवान शिव को [[संहार]] का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। [[रावण]], [[शनि]], [[कश्यप ऋषि]] आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात,शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति, काल भैरव, भूतनाथ आदि।
[[File:Shiv Pratima Gola Gokarnnath 2.jpg|thumb|200px|उत्तर प्रदेश के [[गोला गोकर्णनाथ]] में शिव प्रतिमा]]
=== शिव स्वरूप सूर्य ===
जिस प्रकार इस ब्रह्मण्ड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई सुरुआत, उसी प्रकार [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Bhagwan-shiv-Birth-AIBA.com.html शिव] अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे। [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Bhagwan-shiv-Birth-AIBA.com.html शिव को महाकाल] कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।
=== शिव स्वरूप शंकर जी ===
== पूजन ==
शिवरात्रि की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में करनी चाहिए। शिव को [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/08/Digital-Brahman-Samaj.com.html बिल्वपत्र],पुष्प,चंन्दन का स्नान प्रिय हैं। एवम् इनकी पूजा के लिये दूध, दही, घी, शकर, शहद इन पांच अमृत जिसे पञ्चामृत कहा जाता है।पूजन में इनका उपयोग करें। एवम् पञ्चामृत से स्नान करायें इसके बाद इत्र चढ़ा कर जनेऊ पहनायें। शिव का त्रिशूल और डमरू की ध्वनि मंगल, गुरु से संबंद्धित हैं। चंद्रमा उनके मस्तक पर विराजमान होकर अपनी कांति से अनंताकाश में जटाधारी महामृत्युंजय को प्रसन्न रखता है तो बुधादि ग्रह समभाव में सहायक बनते हैं। महामृत्युंजय मंत्र शिव आराधना का महामंत्र है।
{|class="wikitable"
|-
|'''[[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html ज्योतिर्लिंग]]] '''
| '''स्थान '''
|-
| [[ [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html पशुपतिनाथ] ]] || नेपाल की राजधानी काठमांडू
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html सोमनाथ]]]|| सोमनाथ मंदिर, सौराष्ट्र क्षेत्र, गुजरात
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html महाकालेश्वर]]] || श्री[[महाकाल]], महाकालेश्वर, उज्जयिनी (उज्जैन)
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html ॐकारेश्वर]]]|| [[ॐकारेश्वर]] अथवा ममलेश्वर, [[ॐकारेश्वर]],
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html केदारनाथ]]] || केदारनाथ मन्दिर, रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html भीमाशंकर]]] || भीमाशंकर मंदिर, निकट पुणे, महाराष्ट्र
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html विश्वनाथ]]] || काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर]]]||त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर, नासिक, महाराष्ट्र
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html रामेश्वरम]]]|| रामेश्वरम मंदिर, रामनाथपुरम, तमिल नाडु
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html घृष्णेश्वर]]] || घृष्णेश्वर मन्दिर, वेरुळ, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html बैद्यनाथ]]]|| परळी वैजनाथ बीड महाराष्ट्र एवम् देवघर झारखण्ड
|-
| [[[https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html नागेश्वर]]]|| औंढा नागनाथ महाराष्ट्र
नागेश्वर मन्दिर, द्वारका, गुजरात
|-
| [[श्रीशैल]] || [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html श्रीमल्लिकार्जुन], श्रीशैलम (श्री सैलम), आंध्र प्रदेश
|-
|<span style="color:#0000FF"> शरीकेदार </span>|| नेपाल कालान्जर बन खण्ड्
|<span style="color:#0000FF"> अशिम केदार </span>|| नेपाल कालान्जर बन खण्ड्
|-
| {{font color|blue|yellow| पुरी भुमी के रूप मे शिब ज्योतिर्लिङ::कालान्जर}}|| {{font color|black| यद्दपी पुरा ब्रह्माण्ड भागवान शिब का ज्योतिर्लिङ है फिर भि पुराणौने पृथिबी मे भागवानशिव के दो [https://gyanordharm.blogspot.com/2019/07/blog-post_30.html ज्योतिरलिङ] पुरी भुमी के रूप मे है (१) कैलाश पर्बत् ( यह पुरा पर्बत एक ज्योतिर्लिङ है (२) कालन्जर पर्बत बनखण्ड ( यह पुरा पर्बत बनखण्ड दुसरा भुमी ज्योतिर्लिङ है }}
|-
| {{font color|blue|yellow| शिब पुराणमे बर्णित कालान्जर बन खण्ड् ,भुमी ज्योतिर्लिङ, का सन्क्षिप्त इतिहास }}|| {{font color|black| [[यह बनखण्ड कत्त्युरी राज्य का प्रमुख तिर्थस्थल था इस बनखण्डको १३वी सदी तक कालान्जर कहते थे यहाँ भागवान का मन्दिर है , केदार के पुजारी यहाँ गौ को चराने भि ले जाया कर्ते थे इसिलिए १८ सदी मे आकर इसका नाम गौलेक्=गवाल्लेक भि पड्गया , यहाँ भागवान का मन्दिर है , आदी शन्काराचार्य ने यहाँ आकर ७ दिन तक तपश्या कि थि और उन्हौने इस बनखण्ड को शिवपुराणमे बर्णित कालान्जर होनेकी पुस्टी भि कि थि, तब से १२-१३ सदी तक इसे कालान्जर कहा जाता था, बाद मे जब कत्युरी राजबन्श कमजोर हुवा और यह भुभाग मे चन्द राजा आए, चन्दौ ने सारे महत्वपुर्ण स्थलौका नाम परिवर्तन किया , जहाँ उन्हौने राज्धानी बनाइ वो भि कालान्जर का हि तल था, उस्को उन्हौने बायोत्तर नामाकरण कर्दिय , बाद्मे १७वी सदी मे गुर्खौ ने इस का नाम बदलकर बैतडी कर्दिया, और सारा इतिहास छिन्न भिन्न हो गया, कालान्जर मे पुजा कर्ना निशेध किया गया और वहाँ केबल गाय चराने वाले ग्वाले हि जाने लगे, पुरे मन्दिर के रूप मे अवस्थित बनखण्ड को गौचरान मे परिणत कर्दिया पहले चन्द राजावौने और बादमे पुर्ण रुपसे गुर्खौ ने , और बाद मे १८वी सदी , अंरेज्-नेपाल के युद्ध के समय तक इस्का नाम कालोन्जर हो गया, अंरेज नेपाल के युद्ध के बाद गुर्खौ के दबाब मे यिसका नाम गोल्लेक बनादिया गया और आज इसे ग्वाल्लेक के नाम से जाना जाता है, यह शिब पुराणौमे बर्णित कालन्जर पर्बत हि है, बहुत सारे अध्एता और शोध कर्ने वाले भि इस बात कि पुस्टी करचुके है ]]}}
|