"मौर्य राजवंश": अवतरणों में अंतर

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो Reverted edits by 2401:4900:404B:CA29:BD32:8AC5:3E64:18B1 (talk) to last version by AshokChakra
टैग: वापस लिया
पंक्ति 18:
== चन्द्रगुप्त मौर्य और मौर्यों का मूल ==
{{main|चन्द्रगुप्त मौर्य}}
325 ईसापूर्व में उत्तर पश्चिमी भारत (आज के [[पाकिस्तान]] का लगभग सम्पूर्ण इलाका) सिकन्दर के क्षत्रपों का शासन था। जब सिकन्दर [[पंजाब]] पर चढ़ाई कर रहा था तो कहाएक जाताब्राह्मण हैजिसका किनाम विष्णुगुप्त उनके बड़े पिताजी थे[[चाणक्य]] था ( जिन्हे आज कौटिल्य या चाणक्य के नाम से भी जाना जातागया हैतथा वास्तविक नाम विष्णुगुप्त) मगध को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने आये।आया। उस समय मगध अच्छा खासा शक्तिशाली था तथा उसके पड़ोसी राज्यों की आंखों का काँटाकाँटा। बना हुआ था उसी समय़पर तत्कालीन मगध के सम्राट घनानन्द कोने उनकेउसको सिकन्दरठुकरा आक्रमणदिया। केउसने रोकनेकहा केकि प्रस्तावतुम लेकरएक गयेपंडित थेहो जिसकोऔर उसनेअपनी ठुकराचोटी दियाका औरही विष्णुगुप्तध्यान कारखो अपमानित"युद्ध भीकरना कियाराजा ज्ञातका होकाम उनकेहै भाईतुम कोपंडित पहलेहो हीसिर्फ हत्यापंडिताई कर चुका थाकरो" तभी से विष्णुगुप्त (चाणक्य) ने प्रतिज्ञा लिया की धनानंद को सबक सिखा के रहेगा|{{cn}}
 
मौर्य प्राचीन क्षत्रिय कबीले के हिस्से रहे है।{{cn}} ब्राह्मण साहित्य,विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस व जस्टिन इत्यादि यूनानी स्रोतों के अनुसार मौर्य क्षत्रिय थे मौर्य के उत्पत्ति के विषय पर इतिहासकारो के एक मत नही है कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति उनकी माता मुरा से मिली है मुरा शब्द का संसोधित शब्द मौर्य है , वे ऐसे कबीले थे जो मोरों का पालन करते थे। परन्तु यह भी सटीक नही बैठता भारतीय इतिहास में यह पहली बार हुआ माता के नाम से पुत्र का वंश चला हो मौर्य एक शाक्तिशाली वंश था वह उनके पिता से विरासत में मिली थी पुत्र का नाम पिता से ही जुड़ा होता है , उनकी उत्पत्ति वृषल वंश से हुयी थी, लेकिन इसका कोई भी प्रमाण इतिहास में उपलब्ध नहीं है यह केवल तर्क है क्योंकि इतिहास में किसी ने भी अपने वंश का नाम माता के नाम से नहीं रखा , तो कुछ इतिहासकारो का यह सिर्फ अनुमान है। । <ref name="कुमार">{{cite book|author=डॉ. रवीन्द्र कुमार|title=भारत में दलित वर्ग और दलितोद्धार आंदोलन (१९०० ई. - १९५० ई. )|url=https://books.google.com/books?id=Wdy4CgAAQBAJ&pg=PT29|accessdate=10 August 2017|publisher=Lulu.com|isbn=978-1-329-44516-1|pages=29–}}</ref> चन्द्रगुप्त मौर्य उसी गण प्रमुख केका पुत्र था जो घनानन्दकी चन्द्रगुप्त के द्वाराबाल मारेअवस्था गयेमें थेही योद्धा क्योकिके वहरूप एकमें गणप्रमुखमारा के पुत्र थेगया। इसलिएचन्द्रगुप्त उनमेंमें राजा बनने के स्वभाविकस्वाभाविक गुण थे 'इसी योग्यता को देखते विष्णुगुप्तहुए चाणक्य ने उसे अपना शिक्षाशिष्य दिक्षाबना दियेलिया, एवं एक सबल राष्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है।{{cn}}
 
=== मगध पर विजय ===
इसके बाद भारत भर में जासूसों (गुप्तचर) का एक जाल सा बिछा दिया गया जिससे राजा के खिलाफ गद्दारी इत्यादि की गुप्त सूचना एकत्र करने में किया जाता था - यह भारत में शायद अभूतपूर्व था। एक बार ऐसा हो जाने के बाद उसने चन्द्रगुप्त मौर्य को यूनानी क्षत्रपों को मार भगाने के लिए तैयार किया। इस कार्य में उसे गुप्तचरों के विस्तृत जाल से मदद मिली। मगध के आक्रमण में विष्णुगुप्त (चाणक्य) ने मगध में गृहयुद्ध को उकसाया। उसके गुप्तचरों ने नन्द के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हे अपने पक्ष में कर लिया। इसके बाद नन्द शासक ने अपना पद छोड़ दिया और चाणक्य को विजयश्री प्राप्त हुई। नन्द को निर्वासित जीवन जीना पड़ा जिसके बाद उसका क्या हुआ ये अज्ञात है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास भी जीता और इसके साथ उसको सत्ता का अधिकार भी मिला।
 
== साम्राज्य विस्तार ==
उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था। मगध पर कब्जा होने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य सत्ता के केन्द्र पर काबिज़ हो चुकेचुका थे।था। चन्द्रगुप्त मौर ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ किया। इसकी जानकारी अप्रत्यक्ष साक्ष्यों से मिलती है। रूद्रदामन के [[जूनागढ़]] शिलालेख में लिखा है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बाँध पुष्पगुप्त केपुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था। पुष्यगुप्त उस समय अशोक का प्रांतीय राज्यपाल था। पश्चिमोत्तर भारत को यूनानी शासन से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया।{{cn}}
 
चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकन्दर (अलेक्ज़ेन्डर) के सेनापति [[सेल्यूकस]] को ३०५ ईसापूर्व के आसपास हराया था। ग्रीक विवरण इस विजय का उल्ले़ख नहीं करते हैं पर इतना कहते हैं कि चन्द्रगुप्त (यूनानी स्रोतों में ''सैंड्रोकोटस'' नाम से ) और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने [[कंधार ]], [[काबुल]], [[हेरात]] और [[बलूचिस्तान]] के प्रदेश चन्द्रगुप्त मौर्य को दे दिए थे। इसके साथ ही चन्द्रगुप्त ने उसे ५०० हाथी भेंट किए थे। इतना भी कहा जाता है चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस की बेटी से वैवाहिक संबंध स्थापित किया था। सेल्यूकस ने [[मेगास्थनीज़]] को चन्द्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा था। प्लूटार्क के अनुसार "सैंड्रोकोटस उस समय तक सिंहासनारूढ़ हो चुका था, उसने अपने ६,००,००० सैनिकों की सेना से सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और अपने अधीन कर लिया"। यह टिप्पणी थोड़ी अतिशयोक्ति कही जा सकती है क्योंकि इतना ज्ञात है कि [[कावेरी नदी]] और उसके दक्षिण के क्षेत्रों में उस समय [[चोल|चोलों]], [[पांड्य|पांड्यों]], सत्यपुत्रों तथा केरलपुत्रों का शासन था। अशोक महान के शिलालेख [[कर्नाटक]] में [[चित्तलदुर्ग]], [[येरागुडी]] तथा [[मास्की]] में पाए गए हैं। उसके शिलालिखित धर्मोपदेश प्रथम तथा त्रयोदश में उनके पड़ोसी चोल, पांड्य तथा अन्य राज्यों का वर्णन मिलता है। चुंकि ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि अशोक या उसके पिता [[बिंदुसार]] ने दक्षिण में कोई युद्ध लड़ा हो और उसमें विजय प्राप्त की हो अतः ऐसा माना जाता है उनपर चन्द्रगुप्त मौर्य ने ही विजय प्राप्त की थी। अपने जीवन के उत्तरार्ध में उसने [[जैन धर्म]] अपना लियेलिया थेथा और सिंहासन त्यागकर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में अपने गुरु जैनमुनि भद्रबाहु के साथ संन्यासी जीवन व्यतीत करने लगेलगा थे।था।{{cn}}
 
[[चित्र:Chandragupta mauryan empire.GIF|thumb|left|चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य]]
=== बिन्दुसार ===
{{main|बिंदुसार}}
चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद उसका पुत्र बिंदुसार सत्तारूढ़ हुएहुआ औरपर सबसेउसके ज्यादाबारे साम्राज्यमें विस्तारअधिक बिंदुसारज्ञात नेनहीं किया है ।है। दक्षिण की ओर साम्राज्य विस्तार का श्रेय यदा कदा बिंदुसार को दिया जाता है हँलांकि उसके विजय अभियान का कोई साक्ष्य नहीं है। जैन परम्परा के अनुसार उसकी माँ का नाम दुर्धर था और पुराणों में वर्णित बिंदुसार ने २५ वर्षों तक शासन किया था। उसे ''अमित्रघात'' (दुश्मनों का संहार करने वाला) की उपाधि भी दी जाती है जिसे यूनानी ग्रंथों में ''अमित्रोचटस'' का नाम दिया जाता है। बिन्दुसार आजिवक धरम को मानता था। उसने एक युनानी शासक एन् टियोकस प्रथम से सूखी अन्जीर, मीठी शराब व एक दार्शनिक की मांग की थी।{{cn}}
 
===चक्रवर्ती सम्राट अशोक ===
पंक्ति 39:
[[चित्र:Mauryan Empire Map.gif|thumb|left|अशोक का राज्य]]
 
सम्राट अशोक महान, भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक हैं। साम्राज्य के विस्तार के अतिरिक्त प्रशासन तथा धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में उन का नाम अक़बर जैसे महान शासकों के साथ लिया जाता है। हालांकी वे [[अकबर]] से बहूत शक्तिशाली एवं महान सम्राट रहे है। कई विद्वान तो सम्राट अशोक को विश्व इतिहास के सबसे सफल शासक भी मानते हैं। अपने राजकुमार के दिनों में उन्होंने [[उज्जैन]] तथा [[तक्षशिला]] के विद्रोहों को दबा दिया था। पर [[कलिंग की लड़ाई]] उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई और उनका मन युद्ध में हुए नरसंहार से ग्लानि से भर गया। उन्होंने [[बौद्ध धर्म]] अपना लिया तथा उसके प्रचार के लिए बहूत कार्य किये। सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म मे उपगुप्त ने दीक्षित किया था। उन्होंने देवानांप्रिय, प्रियदर्शी, जैसी उपाधि धारण की। सम्राट अशोक के शिलालेख तथा शिलोत्कीर्ण उपदेश [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में जगह-जगह पाए गए हैं। उसने ''धम्म'' का प्रचार करने के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजे। जिन-जिन देशों में प्रचारक भेजे गए उनमें [[सीरिया]] तथा पश्चिम एशिया का एंटियोकस थियोस, [[मिस्र]] का टोलेमी फिलाडेलस, [[मकदूनिया]] का एंटीगोनस गोनातस, [[साईरीन]] का मेगास तथा [[एपाईरस]] का एलैक्जैंडर शामिल थे। अपने पुत्र [[महेंद्र]] को उन्होंने राजधानी पाटलिपुत्र से [[श्रीलंका]] जलमार्ग से रवाना किया। पटना (पाटलिपुत्र) का ऐतिहासिक महेन्द्रू घाट उसी के नाम पर नामकृत है। युद्ध से मन उब जाने के बाद भी सम्राट अशोक ने एक बड़ी सेना को बनाए रखा था। ऐसा विदेशी आक्रमण से साम्राज्य के पतन को रोकने के लिए आवश्यक था।{{cn}}
 
== प्रशासन ==
पंक्ति 169:
 
== मौर्य साम्राज्य का पतन ==
मौर्य सम्राट की मृत्यु (२३७-२३६ ई. पू.) के उपरान्त लगभग दो सदियों (३२२ - १८४ई.पू.) से चले आ रहे शक्‍तिशाली मौर्य साम्राज्य का विघटन होने लगा।
 
अन्तिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति [[पुष्यमित्र शुंग]] (गुरु पतंजलि) ने धोखे से पिछे से वार कर के कर दीया था ।दी। इससे मौर्य साम्राज्य समाप्त हो गया।
 
=== पतन के कारण ===
पंक्ति 235:
 
=== मौर्य राजवंश-एक झलक ===
३२२ ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू विष्णुगुप्त (चाणक्य) की सहायता से धनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी।{{cn}}
 
चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दों के अत्याचार व घृणित शासन से मुक्‍ति दिलाई और देश को एकता के सूत्र में बाँधा और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। यह साम्राज्य गणतन्त्र व्यवस्था पर राजतन्त्र व्यवस्था की जीत थी। इस कार्य में अर्थशास्त्र नामक पुस्तक द्वारा चाणक्य ने सहयोग किया। विष्णुगुप्त व कौटिल्य उनके अन्य नाम हैं। आर्यों के आगमन के बाद यह प्रथम स्थापित साम्राज्य था।{{cn}}
 
चन्द्रगुप्त मौर्य (३२२ ई. पू. से २९८ ई. पू.)- चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म वंश के सम्बन्ध में विवाद है। ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है।
विविध प्रमाणों और आलोचनात्मक समीक्षा के बाद यह तर्क निर्धारित होता है कि चन्द्रगुप्त मोरिय वंश का क्षत्रिय था। चन्द्रगुप्त के पिता मोरिय नगर प्रमुख थे। जब वह गर्भ में ही था तब उसके पिता की मृत्यु युद्धभूमि में हो गयी थी। उसका पाटलिपुत्र में जन्म हुआ था तथा एक गोपालक द्वारा पोषित किया गया था। चरावाह तथा शिकारी रूप में ही राजा-गुण होने का पता चाणक्य ने कर लिया था तत्पश्‍चात्‌तक्षशिला लाकर सभी विद्या में निपुण बनाया। ३२३ ई. पू. में सिकन्दर की मृत्यु हो गयी तथा उत्तरी सिन्धु घाटी में प्रमुख यूनानी क्षत्रप फिलिप द्वितीय की हत्या हो गई।{{cn}}
 
विविध प्रमाणों और आलोचनात्मक समीक्षा के बाद यह तर्क निर्धारित होता है कि चन्द्रगुप्त मोरिय वंश का क्षत्रिय था। चन्द्रगुप्त के पिता मोरिय नगर प्रमुख थे। जब वह गर्भ में ही था तब उसके पिता की मृत्यु युद्धभूमि में हो गयी थी। उसका पाटलिपुत्र में जन्म हुआ था तथा एक गोपालक द्वारा पोषित किया गया था। चरावाह तथा शिकारी रूप में ही राजा-गुण होने का पता चाणक्य ने कर लिया था तथा उसे एक हजार में कषार्पण में खरीद लिया। तत्पश्‍चात्‌तक्षशिला लाकर सभी विद्या में निपुण बनाया। अध्ययन के दौरान ही सम्भवतः चन्द्रगुप्त सिकन्दर से मिला था। ३२३ ई. पू. में सिकन्दर की मृत्यु हो गयी तथा उत्तरी सिन्धु घाटी में प्रमुख यूनानी क्षत्रप फिलिप द्वितीय की हत्या हो गई।{{cn}}
जिस समय चन्द्रगुप्त राजा बने थे भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत खराब थी। उसने सबसे पहले एक सेना तैयार की और सिकन्दर के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ किये। ३१७ ई. पू. तक उसने सम्पूर्ण सिन्ध और पंजाब प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। अब चन्द्रगुप्त मौर्य सिन्ध तथा पंजाब का एकक्षत्र शासक हो गया। पंजाब और सिन्ध विजय के बाद चन्द्रगुप्त तथा विष्
 
विष्णुगुप्तजिस समय चन्द्रगुप्त राजा बना था भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत खराब थी। उसने सबसे पहले एक सेना तैयार की और सिकन्दर के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ किया। ३१७ ई. पू. तक उसने सम्पूर्ण सिन्ध और पंजाब प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। अब चन्द्रगुप्त मौर्य सिन्ध तथा पंजाब का एकक्षत्र शासक हो गया। पंजाब और सिन्ध विजय के बाद चन्द्रगुप्त तथा चाणक्य ने धनानन्द का नाश करने हेतु मगध पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में धनाननन्द मारा गया अब चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के एक विशाल साम्राज्य मगध का शासक बन गये।गया। सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस उसका उत्तराधिकारी बना। वह सिकन्दर द्वारा जीता हुआ भू-भाग प्राप्त करने के लिए उत्सुक था। इस उद्देश्य से ३०५ ई. पू. उसने भारत पर पुनः चढ़ाई की। चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्‍चिमोत्तर भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित कर एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (मकरान), पेरोपेनिसडाई (काबुल) के भू-भाग को अधिकृत कर विशाल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलना (कार्नेलिया) का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया। उसने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में नियुक्‍त किया।{{cn}}
 
चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्‍चिम भारत में सौराष्ट्र तक प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत शामिल किया। गिरनार अभिलेख (१५० ई. पू.) के अनुसार इस प्रदेश में पुष्यगुप्तपुण्यगुप्त वैश्य चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था। इसने सुदर्शन झील का निर्माण किया। दक्षिण में चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी कर्नाटक तक विजय प्राप्त की।
 
चन्द्रगुप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कन्धार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा-यमुना का मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात था तथा विन्ध्य और कश्मीर के भू-भाग सम्मिलित थे, लेकिन चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना साम्राज्य उत्तर-पश्‍चिम में ईरान से लेकर पूर्व में बंगाल तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक तक विस्तृत किया था। अन्तिम समय में चन्द्रगुप्त मौर्य जैन मुनि भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला चला गया था। २९८ ई. पू. में सलेखना उपवास द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना शरीर त्याग दिया।