"कुमाऊँनी भाषा": अवतरणों में अंतर
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→कुमांऊँनी बोली का लुप्त होता स्वरूप: अनावश्यक |
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== कुमांऊँनी बोली का लुप्त होता स्वरूप ==
कुमांऊँनी बोली शनै-शनै लगभग लुप्त होने के कगार पर है। जिसके कई कारण है। पलायन, शहरीकरण, लिपिबद्ध न हो पाना इत्यादि। कुमांऊँनी जानने वाले लगभग सभी लोग हिन्दी समझ सकते हैं। हिन्दी भाषा के इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव के कारण यह भाषा तेजी़ से लुप्त होने की स्थिति में पहुँच चुकी है। नगरीय क्षेत्रों में बहुत कम लोग यह भाषा बोलते हैं और बहुत से मामलों में यदि माता पिता कुमांऊँनी या [[गढ़वाली भाषा|गढ़वाली]] जानते भी हैं तो उनके बच्चे इन भाषाओं को नहीं जानते हैं। बहुत से अन्य मामलों में बच्चे कुमांऊँनी समझ तो सकते हैं लेकिन बोल नहीं सकते। बहुत से
== कुमांऊँ के प्रमुख लेखक व साहित्यकार ==
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