"हिन्दी साहित्य कोश": अवतरणों में अंतर
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== प्रथम भाग (पारिभाषिक शब्दावली) ==
=== प्रकाशन-इतिहास ===
हिन्दी साहित्य कोश का प्रथम भाग पारिभाषिक शब्दावली पर केन्द्रित है और इसका प्रथम संस्करण विक्रम संवत् २०१५ (१९५८ ईस्वी) में ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी से प्रकाशित हुआ था। इसके प्रधान संपादक धीरेन्द्र वर्मा थे। ब्रजेश्वर वर्मा धर्मवीर भारती एवं रामस्वरूप चतुर्वेदी संपादक मंडल में थे एवं रघुवंश संयोजक थे। इस कोश की तैयारी में संपादकों का आदर्श था कि कोश की प्रत्येक टिप्पणी संबंधित विषय के विशेषज्ञ और अधिकारी विद्वान् के द्वारा प्रस्तुत करायी जाय। अतः इस कार्य हेतु जिन बहुसंख्यक विद्वानों को इस योजना में सहयोग देने के लिए आमंत्रित किया गया था उनमें से प्रायः सबने इसका स्वागत किया और अधिकांश ने अपनी व्यक्तिगत व्यस्तताओं और कठिनाइयों के होते हुए भी समय निकाल कर इस इसमें सहयोग दिया। हिन्दी भाषा और साहित्य के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के और विविध विषयों के अनेक हिन्दी-प्रेमी विद्वानों ने भी अपना बहुमूल्य योगदान इस कोश को प्रामाणिक बनाने में दिया। इस प्रकार प्रथम संस्करण में कुल ८३ विद्वानों, समीक्षकों तथा विचारकों की टिप्पणियाँ अथवा लघुलेख इस कोश की प्रविष्टि के रूप में प्रस्तुत हुए। इस कोश की योजना सन् १९५५ ईस्वी में अर्थात प्रकाशन से तीन वर्ष पहले बनी थी, परंतु वास्तविक कार्य केवल डेढ़ वर्ष की अवधि में समाप्त किया गया। दीर्घकाल तक चलने वाली योजनाओं में प्रायः शिथिलता आने की संभावना मानकर संपादकों ने इस कोश के कार्य में तत्परतापूर्वक अधिक विलंब नहीं होने दिया तथा गुरु गंभीर कार्य होने के बावजूद ससमय कोश का प्रकाशन संभव हो गया। इस कोश का संशोधित एवं परिवर्द्धित द्वितीय संस्करण विक्रम संवत् २०२० (सन् १९६३ ईस्वी) में प्रकाशित हुआ। सन् १९७० ईस्वी के आसपास इस कोश के संपादकों ने इसका नवीन संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण तैयार किया। इस संस्करण में 2 कार्य किये गये। एक तो पहले परिशिष्ट के रूप में दी गई प्रविष्टियों को कोश में यथास्थान समायोजित किया गया और दूसरा अनेक नवीन लेखकों से नवीन प्रविष्टियाँ लिखवायी गयीं जो कि पूर्व के संस्करण में आने से छूट गयी थीं। परंतु इस संस्करण का पहले की अपेक्षा अधिक अच्छे ऑफसेट रूप में आरंभ किया गया मुद्रण-कार्य इसके प्रकाशक की आंतरिक कठिनाई के कारण ५२८ पृष्ठों के बाद अचानक रुक गया। पूर्व के संस्करण के ६८४ पृष्ठों की सामग्री के अतिरिक्त परिशिष्ट एवं नवीन प्रविष्टियाँ भी नवीन मुद्रण में ५२८ पृष्ठों में समायोजित हो गयी थीं। बाद में जब प्रकाशक की आंतरिक स्थिति के कारण कोश की बाद की सामग्री को भी नवीन संशोधित एवं परिवर्द्धित रूप में मुद्रित करवा पाना संभव नहीं हो पाया तो पूर्व के संस्करण के पृष्ठ ६८५ से आरंभ होने वाले अंश को ज्यों का त्यों फोटोस्टेट कराकर जोड़ना पड़ा। इसलिए सन् १९८५ में प्रकाशित इसके तृतीय संस्करण में पृष्ठ संख्या ५२८ के बाद पृष्ठ संख्या ६८५ दी गयी थी। परंतु, मुद्रित और फोटोस्टेट किये गये अंशों में पृष्ठ-संख्या का यह अंतर उपेक्षणीय था, क्योंकि इसके कारण उभयनिष्ठ वाक्य का एक भी शब्द छूटने नहीं पाया था। इस संबंध में पृष्ठ ५२८ के बाद आवश्यक सूचना भी छाप कर दी गयी थी। बाद के संस्करणों में पृष्ठ संख्या के इस अंतर को हटाकर लगातार रूप में मुद्रित कर दिया गया। इस प्रकार पूर्व के संस्करण के ९९७ पृष्ठों की लिखित मुख्य सामग्री बाद के संस्करणों में ८४१ पृष्ठों में समायोजित हो गयी है और इसमें कुछ भी छूटा तो नहीं ही है, बल्कि संशोधन एवं परिवर्द्धन भी शामिल हैं।
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