"पंडिता रमाबाई": अवतरणों में अंतर

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उनके माता पिता को 1877 में अकाल मृत्यु हो गई, रमाबाई और उसके भाई को अपने पिता के काम को जारी रखने का फैसला किया। भाई बहन पूरे भारत में यात्रा की। प्राध्यापक के रूप में रमाबाई की प्रसिद्धि कलकत्ता पहुँची जहां पंडितों उन्हें भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। 1878 में [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] में इन्हें संस्कृत के क्षेत्र में इनके ज्ञान और कार्य को देखते हुये ''सरस्वती'' की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया।
 
1880 में भाई की मौत के बाद रमाबाई ने बंगाली वकील, बिपिन बिहारी दास से शादी कर ली। इनके पति एक बंगाली कायस्थ थे, और इसलिए शादी अंतर्जातीय, और अंतर-क्षेत्रीय थी। दोनों की एक पुत्री हुई जिसका नाम मनोरमा रखा। पति और पत्नी ने बाल विधवाओं के लिए एक स्कूल शुरू करने की योजना बनाई थी, 1882 में इनके पति की मृत्यु हो गई।
 
==सन्दर्भ==