"कनिष्क": अवतरणों में अंतर
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|name =कनिष्क प्रथम
|title =[[कुषाण वंश]] सम्राट
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|royal house = कुषाण शाह
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कुषाण वंश के संस्थापक [[कुजुल कडफिसेस]] का ही एक वंशज, कनिष्क [[बख्त्रिया]] से इस साम्राज्य पर सत्तारूढ हुआ, जिसकी गणना एशिया के महानतम शासकों में की जाती है, क्योंकि इसका साम्राज्य [[तरीम बेसिन]] में तुर्फन से लेकर गांगेय मैदान में पाटलिपुत्र तक रहा था जिसमें मध्य एशिया के आधुनिक [[उजबेकिस्तान]] [[तजाकिस्तान]], चीन के आधुनिक [[सिक्यांग]] एवं [[कांसू]] प्रान्त से लेकर [[अफगानिस्तान]], [[पाकिस्तान]] और समस्त [[उत्तर भारत]] में [[बिहार]] एवं [[उड़ीसा]] तक आते हैं।<ref name="इन्स्टिजी">[http://instigy.com/tag/kushana इन्स्टिजी] पर कुषाण।अभिगमन तिथि: १५ फ़रवरी, २०१७</ref> इस साम्राज्य की मुख्य राजधानी पेशावर (वर्तमान में पाकिस्तान, तत्कालीन भारत के) गाँधार प्रान्त के नगर पुरुषपुर में थी। इसके अलावा दो अन्य बड़ी राजधानियां प्राचीन कपिशा में भी थीं।
उसकी विजय यात्राओं तथा [[बौद्ध धर्म]] के प्रति आस्था ने [[रेशम मार्ग]] के विकास तथा उस रास्ते गांधार से काराकोरम पर्वतमाला के पार होते हुए चीन तक [[महायान]] बौद्ध धर्म के विस्तार में विशेष भूमिका निभायी।
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==वंशावली==
[[File:Kanishka enhanced.jpg|left|thumb|कनिष्क प्रथम, द्वितीय शताब्दी की मूर्ति, मथुरा संग्रहालय]]
[[File:WimaKadphises.JPG|thumb|[[विम कडफिसेस]] कनिष्क के पिता थे। ([[ब्रिटिश संग्रहालय]])]]
कनिष्क [[युएझ़ी]] नस्ल का [[कुषाण]] था। उसकी स्थानीय भाषा अभी अज्ञात है। उसके [[रबातक शिलालेख|रबातक शिलालेखों]] में [[यूनानी लिपि]] का प्रयोग उस भाषा को लिखने के लिये किया गया है, जिसे [[आर्य]] ([[यूनानी भाषा|यूनानी]]:αρια) कहा गया है, जो कि [[एरियाना]] (आधुनिक [[अफ़गानिस्तान]], ईरान व उज़बेकिस्तान) की मूल भाषा बाख़्त्री का ही एक रूप है। यह एक [[मध्यकालीन]] पूर्वी ईरानियाई भाषा थी।<ref>Gnoli (2002), pp. 84–90.</ref> वैसे इस भाषा का प्रयोग कुषाणों द्वारा स्थानीय लोगों से सम्पर्क करने हेतु किया जाता होगा। कुषाण लोगों के कुलीन लोग किस भाषा विशेष का प्रयोग करते थे, ये अभी निश्चित नहीं है। यदि कुषाण एवं/या युएज़ी लोगों को [[तरीम बेसिन]] के अग्नि कुची (टॉर्चेरियाई) लोगों को जोड़ती विवादास्पद बातें सही हों, तो कनिष्क द्वारा टॉर्चेरियाई लोगों की भाषा – जो एक चेण्टम [[इण्डो-यूरोपियाई]] भाषा थी, बोली जाती रही होगी। (जहां अन्य ईरानियाई भाषाएं जैसे बैक्टीरियाई सेण्टम भाषाएं कहलाती हैं।)
कनिष्क विम कडफिसेस का उत्तराधिकारी था, जैसा [[रबातक शिलालेख|रबातक शिलालेखों]] में कुषाण राजाओं की प्रभावशाली वंशावली द्वारा दृश्य है।<ref>Sims-Williams and Cribb (1995/6), pp.75–142.</ref><ref>Sims-Williams (1998), pp. 79–83.</ref> कनिष्क का अन्य कुषाण राजाओं से संबन्ध राबातक शिलालेखों में बताया गया है, इसी से कनिष्क के समय तक की वंशावली ज्ञात होती है। उसके प्रपितामह [[कुजुल कडफिसेस]] थे, [[विमा ताक्तु]] उसके पितामह थे। कनिष्क के पिता [[विम कडफिसेस]] थे, तत्पश्चात स्वयं कनिष्क आया।<ref>Sims-Williams and Cribb (1995/6), p. 80.</ref>
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सम्राट कनिष्क के सिक्के में सूर्यदेव बायीं और खड़े हैं। बांए हाथ में दण्ड है जो रश्ना सें बंधा है। कमर के चारों ओर तलवार लटकी है। सूर्य ईरानी राजसी वेशभूषा में एक लम्बे कोट पहने दाड़ी वाले दिखाये गए हैं, जिसके कन्धों से ज्वालाएं निकलती हैं। वह बड़े गोलाकार जूते पहनते है। उसे प्रायः वेदी पर आहूति या बलि देते हुए दिखाया जाता है। इसी विवरण से मिलती हुई कनिष्क की एक मूर्ति काबुल संग्रहालय में संरक्षित थी, किन्तु कालांतर में उसे तालिबान ने नष्ट कर दिया।<ref>वुड (२००२), illus. p. 39.</ref>
===यूनानी काल ===
कनिष्क के काल के आरम्भ के कुछ सिक्कों पर यूनानी भाषा एवं लिपि में लिखा है : ΒΑΣΙΛΕΥΣ ΒΑΣΙΛΕΩΝ ΚΑΝΗ''Ϸ''ΚΟΥ, ''बैसेलियस बॅसेलियॉन कनेश्कोऊ'' "कनिष्क के सिक्के, राजाओं का राजा" <br/>
इन आरम्भिक मुद्राओं में यूनानी नाम लिखे जाते थे:
* ΗΛΙΟΣ (''ēlios'', [[:w:Helios|हेलिओज़]]), ΗΦΑΗΣΤΟΣ (''ēphaēstos'', [[:w:Hephaistos|हेफास्टोज़]]), ΣΑΛΗΝΗ (''salēnē'', [[:w:Selene|सॅलीन]]), ΑΝΗΜΟΣ (''anēmos'', [[:w:Anemos|ऍनिमोस]])
===ईरानियाई/ इण्डिक काल ===
[[File:AdshoCarnelianSeal.jpg|thumb|250px|कुशान कार्नेलियाई मुहर, जिसमें ईरानियाई देवता आड्शो (ΑΘϷΟ यूनानी लिपि में मुद्रा लेख लिखे हैं) जिसमें बायीं ओर त्रिरत्न चिह्न एवं दायीं ओर कनिष्क का कुलचिह्न है। ये देवता एक प्याला लिये हुए हैं।
मुद्राओं पर बैक्ट्रियाई भाषा आने के साथ-साथ ही उन पर यूनानी देवताओं का स्थान ईरानियाई एवं इण्डिक(हिन्दू) देवताओं ने ले लिया:
* ΑΡΔΟΧ''Ϸ''Ο (''ardoxsho'', [[:w:Ashi Vanghuhi|आशी वनघुही]])
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इनके अलावा कुछ हिन्दू देवताओं के भी अंकन पाये जाते हैं:
* ΟΗ''Ϸ''Ο (''[[:w:oesho|oesho]]'', [[शिव]])। हाल की शोध से अनुमान लगाया जा रहा है कि ''oesho'' संभवतः [[अवस्ता|अवस्तन]] [[वायु देव|वायु]] होंगे, जिन्हें शिव से मिला लिया गया।<ref>Sims-Williams (online) ''Encyclopedia Iranica''.</ref><ref>H. Humbach, 1975, p.402-408. K. Tanabe, 1997, p.277, M. Carter, 1995, p. 152. J. Cribb, 1997, p. 40. References cited in ''De l'Indus à l'Oxus''.</ref>
==कनिष्क एवं बौद्ध धर्म ==
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==अन्य धार्मिक संबंध==
=== उपाधि===
कनिष्क ने देवपुत्र शाहने शाही की उपाधि धारण की थी। भारत आने से पहले कुषाण ‘बैक्ट्रिया’ में शासन करते थे, जो कि उत्तरी अफगानिस्तान एवं दक्षिणी उजबेगकिस्तान एवं दक्षिणी तजाकिस्तान में स्थित था और यूनानी एवं ईरानी संस्कृति का एक केन्द्र था।<ref name="इन्स्टिजी" /> कुषाण हिन्द-ईरानी समूह की भाषा बोलते थे और वे मुख्य रूप से मिहिर (सूर्य) के उपासक थे। सूर्य का एक पर्यायवाची ‘मिहिर’ है, जिसका अर्थ है, वह जो धरती को जल से सींचता है, समुद्रों से आर्द्रता खींचकर बादल बनाता है।
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| quote = }}</ref> पुरुषपुर (वर्तमान [[पेशावर]]) के पास शाह जी की ढेरी नामक स्थान है, जहां कनिष्क द्वारा निमित एक बौद्ध स्तूप के अवशेषों से एक सन्दूक मिला जिसे ''कनिष्कास कास्केट'' बताया गया है। इस पर सम्राट कनिष्क के साथ [[सूर्य]] एवं [[चन्द्र]] के चित्र का अंकन हुआ है। इस सन्दूक पर कनिष्क के द्वारा चलाये गए शक संवत्सर का संवत का प्रथम वर्ष अंकित है।
===प्रतिमाएं===
[[मथुरा]] के सग्रहांलय में लाल बलुआपत्थर की अनेक सूर्य प्रतिमांए सहेजी हुई है, जो कुषाण काल ([[प्रथम शताब्दी]] से तीसरी शताब्दी ई) की है। इनमें भगवान सूर्य चार घोड़ों के रथ पर आरूढ़ हैं। वे सिंहासन पर बैठने की मुद्रा में पैर लटकाये हुये हैं। उनके दोनों हाथों में [[कमल]] पुष्प है और उनके दोनों कन्धों पर पक्षी गरूड़ जैसे दो पंख लगे हुए हैं। इन्हीं पंखों को कुछ इतिहासवेत्ताओं द्वारा ज्वाला भी बताया गया है। सूर्यदेव ''औदिच्यवेश'' अर्थात् ईरानी पगड़ी, कामदानी के चोगें और सलवार के नीचे ऊंचे ईरानी जूते पहने हैं। उनकी वेशभूषा बहुत कुछ, मथुरा से ही प्राप्त, सम्राट कनिष्क की बिना सिर की प्रतिमा जैसी है। भारत में ये सूर्य की सबसे प्राचीन मूर्तियां है। कुषाण काल से पूर्व की सूर्य की कोई प्रतिमा नहीं मिली है, अतः ये माना जाता है कि भारत में उन्होंने ही सूर्य प्रतिमा की उपासना आरम्भ की और उन्होंने ही सूर्य की वेशभूषा भी वैसी दी थी जैसी वो स्वयं धारण करते थे।<ref name="जागरण" />
भारत में प्रथम सूर्य मन्दिर की स्थापना मूलस्थान (वर्तमान [[मुल्तान]]) में कुषाणों द्वारा की गयी थी।<ref>[http://dsal.uchicago.edu/reference/gazetteer/pager.html?volume=१८&objectid=DS405.1.I34_V18_041.gif मुल्तान सिटी - इम्पीरियल गैज़ेटियर ऑफ़ इम्पीरियल गॅज़ेटियर ऑफ़ इण्डिया, संस.१८, पृ.३५।]{{अंग्रेज़ी}}</ref><ref name="ReferenceA">अक्षय के मजूमदार, हिन्दू हिस्ट्री, पृ/५४। रूपा एण्ड कं.।{{अंग्रेज़ी}}</ref><ref name="पांचजन्य">
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| publisher =
| access-date = १६ फ़रवरी, २०१७
| quote = }}</ref> पुरातत्वेत्ता ए. कनिंघम का मानना है कि मुल्तान का सबसे पहला नाम कश्यपपुर (कासाप्पुर) था और उसका यह नाम कुषाणों से सम्बन्धित होने के कारण पड़ा। भविष्य पुराण, साम्व एवं वराह पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने मुल्तान में पहले सूर्य मन्दिर की स्थापना की थी। किन्तु भारतीय ब्राह्मणों ने वहाँ पुरोहित का कार्य करने से मना कर दिया, तब नारद मुनि की सलाह पर साम्ब ने संकलदीप (सिन्ध) से मग ब्राह्मणों को बुलवाया, जिन्होंने वहाँ पुरोहित का कार्य किया।<ref name="जागरण" /> भविष्य पुराण के अनुसार मग ब्राह्मण जरसस्त के वंशज है, जिसके पिता स्वयं सूर्य थे और माता नक्षुभा मिहिर गोत्र की थी। मग ब्राह्मणों के आदि पूर्वज जरसस्त का नाम, [[छठी शताब्दी]] ई.पू. में, ईरान में [[पारसी धर्म]] की स्थापना करने वाले जुरथुस्त से साम्य रखता है। प्रसिद्ध इतिहासकार डी.आर. भण्डारकर (1911 ई0) के अनुसार मग ब्राह्मणों ने सम्राट कनिष्क के समय में ही, सूर्य एवं अग्नि के उपासक पुरोहितों के रूप में, भारत में प्रवेश किया।<ref name="पांचजन्य" /> उसके बाद ही उन्होंने कासाप्पुर (मुल्तान) में पहली सूर्य प्रतिमा की स्थापना की। इतिहासकार वी. ए. स्मिथ के अनुसार कनिष्क ढीले-ढाले रूप के ज़र्थुस्थ धर्म को मानता था, वह मिहिर (सूर्य) और अतर (अग्नि) के अतरिक्त अन्य भारतीय एवं यूनानी देवताओ उपासक था। अपने जीवन काल के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म में कथित धर्मान्तरण के बाद भी वह अपने पुराने देवताओ का सम्मान करता रहा।
===भारतीय क्षेत्र===
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कनिष्क ने भारत में कार्तिकेय की पूजा को आरम्भ किया और उसे विशेष बढ़ावा दिया। उसने कार्तिकेय और उसके अन्य नामों-विशाख, महासेना, और स्कन्द का अंकन भी अपने सिक्कों पर करवाया। कनिष्क के बेटे सम्राट हुविष्क का चित्रण उसके सिक्को पर महासेन 'कार्तिकेय' के रूप में किया गया हैं। आधुनिक पंचाग में सूर्य षष्ठी एवं कार्तिकेय जयन्ती एक ही दिन पड़ती है।
==सन्दर्भ==
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