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पम्पा एक कन्नडिया जैन कवि थे, जिन्हे आदर्निय तोर से '''आदिकवि''' कह कर बुलाया जाता है। उन्होने अपनी रचनाओं में अपनी दार्शनिक मान्याताएँ दर्शाया है। पम्पा राजा अरिकेसरी II के दरबारी कवि थे, जो राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण III के सामंत थे। पम्पा को उनके महाकाव्य ''विक्रमर्जुना विजया या पम्पा भारता'' और ''आदि पुराना''के लिए जाना जाता है। दोनों काव्य c.939(यह काव्य लिखने का सही समय नही पता है।) के आसपास चंपू शैली में लिखि गयि है। ये काव्य कन्नड़ में भविष्य के सभी चम्पू काव्यॉ के लिए उद्दहरन के रूप में काम करते हैं।
जैन लेखक पंपा, श्री पोन्ना और रन्ना की रचनाओं को सामूहिक रूप से "कन्नड़ साहित्य के तीन रत्न" कहा जाता है. यह मध्यकालीन कन्नड़ साहित्य के दसवीं शताब्दी के युग की शुरुआत की।
==प्रारंभिक जीवन==