"ख़िलाफ़त": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=जून 2015}}
[[चित्र:Mohammad adil-Rashidun empire-slide.gif|right|thumb|400px|इस्लाम की विजय यात्रा]]
[[मुहम्मद साहब]] की मृत्यु के बाद [[इस्लाम]] के प्रमुख को [[खलीफ़ा]] कहते थे। इस विचारधारा को '''खिलाफ़त''' कहा जाता है। इस्लामी मान्यता के अनुसार, ख़लीफ़ा को जनता द्वारा चुना जाता है अर्थात ख़लीफ़ा जनता का प्रतिनिधि व सेवक होता है। प्रथम चार खलीफाओंख़लीफ़ा इस्लामी सिद्धांतो के अनुसार थे और इन चारों ख़लीफाओं को राशिदुन (अबूबक्र, उमर, उस्मान तथा अली) कहते हैं। इस के बाद बादशाहों ने स्वयं को ख़लीफ़ा कहना शुरू कर दिया। [[उम्मयद]], [[अब्बासी]] और [[फ़ातिमी]] खलीफा जो क्रमशः [[दमिश्क]], [[बग़दाद]] और [[काहिरा]] से शासन करते थे।थे, केवल नाममात्र के ख़लीफ़ा थे जबकि इनकी वास्तविकता राजतन्त्र था। इसी तरह इसके बाद [[उस्मानी साम्राज्य|उस्मानी]] (ऑटोमन तुर्क) खिलाफ़त आया।
 
मुहम्मद साहब के नेतृत्व में अरब बहुत शक्तिशाली हो गए थे। उन्होंने एक बड़े साम्राज्य पर अधिकार कर लिया था जो इससे पहले अरबी इतिहास में शायद ही किसी ने किया हो। खलीफ़ा बनने का अर्थ था - इतने बड़े साम्राज्य का मालिक। अतः इस पद को लेकर विवाद होना स्वाभाविक था।