"रानी दुर्गावती": अवतरणों में अंतर

अकबर
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अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।
 
रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतःइसके बाद रानी अपनीने कटारतलवार स्वयंअपने ही अपने सीने में भोंककरघोंप आत्मदी बलिदानऔर केइस पथतरह पररानी बढ़दुर्गावती गयीं।24 महारानीजून, दुर्गावती1564 नेमें वीरगति को प्राप्त हुईं। अकबरजबलपुर के सेनापतिपास आसफ़जहां खानयह सेऐतिहासिक लड़करयुद्ध अपनीहुआ जानथा, गंवानेउस सेस्थान पहलेका पंद्रहनाम मदन किला है, यह वह जगह है जहां पर रानी की शहादत हुई और वहीं रानी दुर्गावती वर्षोंकी तकसमाधि शासनबनी कियाहुई था।है।
 
रानी दुर्गावती के सम्मान में उनके नाम के पर विश्वविद्यालय के नाम रखा गया, डाक टिकट जारी किया गया और म्यूजियम भी बनाया गया। वहीं जिस तरह रानी दुर्गावती अपने राज्य की रक्षा के लिए आखिरी सांस तक साहस के साथ लड़ती रहीं और अपने प्राणों की आहूती दे दी। इससे हर परिस्थिति में साहस और धैर्य से काम लेने की प्रेरणा मिलती है। रानी दुर्गावती की वीरता की गाथा आज भी इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई है।
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम [[बरेला]] है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर में स्थित [[रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय]] भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।
 
==इन्हें भी देखें==