"विद्यापति": अवतरणों में अंतर
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[[मिथिलांचल]] के लोकव्यवहार में प्रयोग किये जानेवाले गीतों में आज भी विद्यापति की [[शृंगार]] और भक्ति-रस में पगी रचनाएँ जीवित हैं। [[पदावली]] और [[कीर्तिलता]] इनकी अमर रचनाएँ हैं।
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हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ [[रामचन्द्र शुक्ल|शुक्ल जी]] ने सम्वत् 1050 से माना है। वे मानते हैं कि [[प्राकृत]] की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आरम्भ होना चाहिए इसे ही वे वीरगाथा काल मानते हैं। <ref>डॉ नगेन्द्र, हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ72</ref> उन्होंने इस सन्दर्भ में इस काल की जिन आरम्भिक रचनाओं का उल्लेख किया है उनमें विद्यापति एक प्रमुख रचनाकार हैं तथा उनकी प्रमुख रचनाओं का इस काल में बड़ा महत्व है। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं- कीर्तिलता कीर्तिपताका तथा पदावली। कीर्तिलता के बारे में यह स्पष्ट लिखा है कि-ऐसा जान पडता है कि कीर्ति लता बहुत कुछ उसी शैली में लिखी गई थी जिसमें [[चन्दबरदाई]] ने [[पृथ्वीराज रासो]] लिखा था। यह भृंग और भृंगी के संवाद-रूप में हैं इसमें संस्कृत ओर प्राकृत के छन्दों का प्रयोग हुआा है। संस्कृत और प्राकृत के छन्द रासो में बहुत आए हैं। रासो की भांति कीर्तिलता में भी [[गाथा छन्द]] का व्यवहार प्राकृत भाषा में हुआा है। <ref>डॉ नगेन्द्र, हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ72</ref>
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