"स्वर": अवतरणों में अंतर

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==राग==
जब 12 स्वर खोज लिए गये होंगे तब उन्हें इस्तेमाल करने के तरीके ढूँढ़े गये। 12 स्वरों के मेल से ही कई '''राग''' बनाए गये। उनमें से कई रागों में समानता भी थी। कवि लोचन ने '''राग‘राग-तरंगिणी'''तरंगिणी’ ग्रंथ में 16 हजार रागों का उल्लेख किया है, लेकिन इतने सारे रागों में से चलन में केवल 16 राग ही थे। राग उस स्वर समूह को कहा गया जिसमें स्वरों के उतार-चढ़ाव और उनके मेल में बनने वाली रचना सुनने वाले को मुग्ध कर सके। यह जरूरी नहीं कि किसी भी राग में सातों स्वर लगें। यह तो बहुत पहले ही तय कर दिया गया था कि किसी भी राग में कम से कम पाँच स्वरों का होना जरूरी है। ऐसे और भी नियम बनाये गये थे जैसे षड्ज यानी ‘सा’ का हर राग में होना बहुत ही जरूरी है क्योंकि वही तो हर राग का आधार है। कुछ स्वर जो राग में बार-बार आते हैं उन्हें ‘वादी’ कहते हैं और ऐसे स्वर दो ‘वादी’ स्वर से कम लेकिन अन्य स्वरों से अधिक बार आएँ उन्हें ‘संवादी’ कहते हैं। लोचन कवि ने 16 हजार रागों में से कई रागों में समानता पाई तो उन्हें अलग-अलग वर्गों में रखा। उन्होंने 12 वर्ग तैयार किये जिनमें से हर वर्ग में कुछ-कुछ समान स्वर वाले राग शामिल थे। इन वर्गों को ‘मेल’ या ‘थाट’ कहा गया। ‘थाट’ में 7 स्वर अर्थात् ‘सा’, ‘रे,’ ‘ग’, ‘म’, ‘प’,‘ध’, ‘नि’, होने आवश्यक है। यह बात और है कि किसी ‘थाट’ में कोमल और किसी में तीव्र स्वर होंगे या मिले-जुले स्वर होंगे। इन ‘थाटों’ में वही राग रखे गये जिनके स्वर मिलते-जुलते थे। इसके बाद सत्रहवीं शताब्दी में दक्षिण के विद्वान [[पंडित श्रीनिवास]] ने सोचा कि रागों को उनके स्वरों की संख्या के सिहाब से ‘मेल’ में रखा जाये यानी जिन रागों में 5 स्वर हों वे एक ‘मेल’ में, छः स्वर वाले दूसरे और 7 स्वर वाले तीसरे ‘मेल’ में। कई विद्वानों में इस बात को लेकर चर्चा होती रही कि रागों का वर्गीकरण ‘मेलों’ में कैसे किया जाये। दक्षिण के ही एक अन्य विद्वान [[व्यंकटमखी]] ने गणित का सहारा लेकर कुल 72 ‘मेल’ बताए। उन्होंने दक्षिण के रागों के लिए इनमें से 19 ‘मेल’ चुने। इधर उत्तर भारत में विद्वानों ने सभी रागों के लिए 32 ‘मेल’ चुने। अन्ततः भातखण्डेजी ने यह तय किया कि उत्तर भारतीय संगीत के सभी राग 10 ‘मेलों’ में समा सकते हैं। ये ‘मेल’। कौन-कौन से हैं इन्हें याद रखने के लिए ‘चतुर पण्डित’ ने एक कविता बनाई। चतुर पण्डित कोई और नहीं स्वयं पण्डित भातखण्डे ही थे। इन्होंने कई रचनाएँ ‘मंजरीकार’ और ‘विष्णु शर्मा’ नाम से भी रची है।
 
: '''यमन, बिलावल और खमाजी, भैरव पूरवि मारव काफी।'''
"https://hi.wikipedia.org/wiki/स्वर" से प्राप्त