"रविदास": अवतरणों में अंतर

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छोड़ि के बांभन आ संग मेरे , कह विद्रोहि अकेला रे ।
चित्तौड़ के कुम्भ श्याम के मंदिर में रविदास जी ने यह गीत पद गाया था , जिसका विस्तार से अर्थ है कि ब्राह्मणी लोग भारतीय बहुजनों को पाखण्ड के नाम पर खूब लूटते थे । उन्होंने लोगों को लूटने के लिए तरह तरह के पाखण्ड फैलाये हुए थे । संत शिरोमणि रविदास जी ने उनके पाखंडों का खंडन अपने इस गीत से किया था । उन्होंने कहा था कि मनुष्य का जीवन एक बुलबुले की तरह है । ब्राह्मणी लोग झूठे हैं , उनके वेद भी झूठे हैं और उनका ब्रह्मा भी झूठा है , जो मनुष्य की आत्मा को अजर अमर बताकर ठगता है । ब्राह्मण एक मूर्ति को अंदर बंद करके पटक देता है और उस मूर्ति की पूजा के नाम पर बाहर बैठकर लोगों को ठगता है । जनता तरह तरह की कीमती वस्तु लाकर उस भगवान के लिए भेंट करती है , लेकिन पुजारी उन वस्तुओं में से एक केला मूर्ति के पास रख देता है और शेष सभी कीमती सामान को अपने पास रख लेता है । पत्थर की मूर्ति जब उस केले तक नही खा पाती है , तो अन्य वस्तुओं को कैसे खा पाएगी । उस पत्थर की मूर्ति के नाम पर सभी कीमती सामान को ब्राह्मण चट कर जाते हैं । इस प्रकार ब्राह्मण भारत की सारी जनता को लूटते हैं । लेकिन जनता को उसका कोई भी प्रतिफल नही मिलता है । ब्राह्मण अपने इस खेल को मजबूती देने के लिए पुण्य , पाप , पुनर्जन्म का पाखण्ड रचता है । दान के आधार पर स्वर्ग , नरक , बैकुण्ड की कल्पना उनके द्वारा की जाती है । इस प्रकार ब्राह्मण लोग सभी को मूर्ख बनाते हैं । जहां पर भी एक ब्राह्मण निवास करता है , वह क्षेत्र उसी प्रकार गंदा हो जाता है , जिस प्रकार एक मछली की उपस्थिति से समुद्र गंदा हो जाता है । इसलिए ब्राह्मण के पास निवास नही करें । क्योंकि जिस गांव , कस्बे या शहर में ब्राह्मण निवास करता है , उस गांव , कस्बे या शहर का निवास जाति और धर्मवाद के आधार पर होता है । रविदास जी ने कहा था कि ब्राह्मण को अपने पास बसने से वर्जित करें और मेरे सम्यक मार्ग का अनुसरण करें । तभी इस देश की उन्नति शिरोधार्य होगी । कहाँ ब्राह्मणवादी यह शिक्षा कि वेद स्वर्ग का द्वार खोलते हैं और कहाँ रैदास जी की यह चेतावनी कि जो वेदों पर चलेगा , वह नरक में जायेगा ।
ऊपर दिया गया लेख के कुछ अंश बिल्कुल ही निराधार है पाठकगढ़ कृपया आपने विवेक का इस्तेमाल करे
अपने मन मे कुछ भी धारणा बनाने से पहले सत्यता की जाँच खुद करे
 
== सतगुरु रविदास जी के वंशज ==