"कृष्ण": अवतरणों में अंतर

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 55:
{{cite web |url= http://www.britannica.com/eb/topic-357806/Mahabharata|title= Britannica: Mahabharata|accessdate=2008-10-13 |work = encyclopedia|publisher= Encyclopædia Britannica Online |year= 2008|author = Wendy Doniger}}</ref> , जिसमें कृष्ण को विष्णु के अवतार के रूप में दर्शाया गया है। महाकाव्य की मुख्य कहानियों में से कई कृष्ण केंद्रीय हैं श्री भगवत गीता का निर्माण करने वाले महाकाव्य के छठे पर्व ( भीष्म पर्व ) के अठारहवे अध्याय में युद्ध के मैदान में अर्जुन की ज्ञान देते हैं। महाभारत के बाद के परिशिष्ट में हरिवंश में कृष्ण के बचपन और युवावस्था का एक विस्तृत संस्करण है <ref>Maurice Winternitz (1981), History of Indian Literature, Vol. 1, Delhi, Motilal Banarsidass, {{ISBN|978-0836408010}}, pages 426–431</ref>
==श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर निर्माण का इतिहास==
प्रथम बार जन्मभूमि पर निर्माण अर्जुनायन शासक अरलिक वसु ने तोरण द्वार का निर्माण करवाया था लेकिन यहां प्रथम मंदिर का निर्माण यदुवंशी राजा ब्रजनाम (भरतपुर नरेश के पूर्वज) ने ईसा पूर्व 80 में कराया था। कालक्रम(हुन, कुषाण हमलो) में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के जाट सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन् 400 ई. में दूसरे वृहद् मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु इस मंदिर को महमूद गजनवी ने ध्वस्त कर दिया। तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव तोमर के शासन काल में जाट शासक जाजन सिंह ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया।यह मथुरा क्षेत्र में मगोर्रा के सामंत शासक थे इनका राज्य नील के व्यापार के लिए जाना जाता था।
 
शासक जाजन सिंह तोमर (कुंतल) ने 1150 ईस्वी में करवाया। इस जाजन सिंह को जण्ण और जज्ज नाम से भी सम्बोधित किया गया है। इनके वंशज आज जाजन पट्टी , नगला झींगा, नगला कटैलिया में निवास करते है।<ref>,पाण्डव गाथा पृष्ठ 230</ref>
 
खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से भी जाजन सिंह (जज्ज) के मंदिर बनाने का पता चलता है। शिलालेख के अनुसार मंदिर के व्यय के लिए दो मकान, छः दूकान और एक वाटिका भी दान दी गई दिल्ली के राजा के परामर्श से 14 व्यक्तियों का एक समूह बनाया गया जिसके प्रधान जाजन सिंह था।
 
यह मंदिर भी 16 वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। सम्राट जहांगीर के शासनकाल में एक बार पुनः मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस मंदिर को भी मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में नष्ट कर दिया। फिर पुनः इसका निर्माण यहां के जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया जिसका विस्तार महाराजा जवाहर सिंह ने किया।
 
बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। तब यह मंदिर ट्रस्ट में चला गया इस पहले इसकी जिम्मेदारी भरतपुर नरेशों के पास थी क़ानूनी मुकदमो में जीतने के बाद यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।
 
===इंडो-यूनानी मुद्रण ===
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कृष्ण" से प्राप्त