"शिव": अवतरणों में अंतर

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== पूजन ==
शिवरात्रि की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में करनी चाहिए। शिव को बिल्वपत्र, पुष्प, चंन्दन का स्नान प्रिय हैं। एवम् इनकी पूजा के लिये दूध, दही, घी, शकर, शहद इन पांच अमृत जिसे पञ्चामृत कहा जाता है।पूजनहै। पूजन में इनका उपयोग करें। एवम् पञ्चामृत से स्नान करायेंकरायें। इसके बाद इत्र चढ़ा कर जनेऊ पहनायें। शिव का त्रिशूल और डमरू की ध्वनि मंगल, गुरु से संबंद्धित हैं। चंद्रमा उनके मस्तक पर विराजमान होकर अपनी कांति से अनंताकाश में जटाधारी महामृत्युंजय को प्रसन्न रखता है तो बुधादि ग्रह समभाव में सहायक बनते हैं। महामृत्युंजय मंत्र शिव आराधना का महामंत्र है।
 
 
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| '''स्थान '''
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| [[ पशुपतिनाथ ]] || नेपाल की राजधानी काठमांडू
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| [[सोमनाथ]]|| सोमनाथ मंदिर, सौराष्ट्र क्षेत्र, गुजरात
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| [[महाकालेश्वर]] || श्री [[महाकाल]], महाकालेश्वर, उज्जयिनी (उज्जैन)
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| [[ॐकारेश्वर]]|| [[ॐकारेश्वर]] अथवा ममलेश्वर, [[ॐकारेश्वर]],
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| [[केदारनाथ]] || केदारनाथ मन्दिर, रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड
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| [[श्रीशैल]] || श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीशैलम (श्री सैलम), आंध्र प्रदेश
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|<span style="color:#0000FF"> शरीकेदार </span>|| नेपाल कालान्जर बन खण्ड्वनखण्ड
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|<span style="color:#0000FF"> रौला केदार </span>|| नेपाल् कालान्जर बन खण्ड्वनखण्ड
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| <span style="color:#0000FF"> ध्वज केदार </span> || नेपाल् कालान्जर बन खण्ड्वनखण्ड
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|<span style="color:#0000FF"> अशिम केदार </span>|| नेपाल कालान्जर बन खण्ड्वनखण्ड
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| {{font color|blue|yellow| पुरी भुमी के रूप मे शिबशिव ज्योतिर्लिङज्योतिर्लिंग::कालान्जर}}|| {{font color|black| यद्दपीयद्यपि पुरा ब्रह्माण्ड भागवान शिबशिव का ज्योतिर्लिङज्योतिर्लिंग है फिर भिभी पुराणौनेपुराणों पृथिबीमें मेपृथ्वी में भागवान भागवानशिवशिव के दो ज्योतिरलिङज्योतिर्लिंग पुरी भुमी के रूप मेमें है (१) कैलाश पर्बत्पर्वत ( यह पुरा पर्बतपर्वत एक ज्योतिर्लिङज्योतिर्लिंग है ) (२) कालन्जर पर्बतपर्वत बनखण्डवनखण्ड ( यह पुरा पर्बतपर्वत बनखण्डवनखण्ड दुसरा भुमी ज्योतिर्लिङज्योतिर्लिंग है )}}
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| {{font color|blue|yellow|शिव शिबपुराण पुराणमेमें बर्णितवर्णित कालान्जर बनवनखण्ड, खण्ड् ,भुमीभूमि ज्योतिर्लिङज्योतिर्लिंग, का सन्क्षिप्त इतिहास }}|| {{font color|black| [[यह बनखण्डवनखण्ड कत्त्युरी राज्य का प्रमुख तिर्थस्थलतीर्थस्थल था इस बनखण्डकोव १३ १३वीवीं सदी तक कालान्जर कहते थे यहाँ भागवान का मन्दिर है , केदार के पुजारी यहाँ गौ को चराने भिभी ले जाया कर्तेकरते थेथे। इसिलिए १८ वीं सदी मेमें आकर इसका नाम गौलेक्गौलेक=गवाल्लेक भिभी पड्गयापड़ गया, यहाँ भागवान का मन्दिर है , आदीआदि शन्काराचार्यशंकराचार्य ने यहाँ आकर ७ दिन तक तपश्यातपस्या कि थिथी और उन्हौनेउन्होंने इस बनखण्डवनखण्ड को शिवपुराणमेशिवपुराण बर्णितमें वर्णित कालान्जर होनेकीहोने पुस्टीकी भिपुष्टि किभी की थिथी, तब से १२-१३ वीं सदी तक इसे कालान्जर कहा जाता था, बाद मे जब कत्युरी राजबन्शराजवंश कमजोर हुवाहुआ और यहइस भुभाग मेमें चन्द राजा आए, चन्दौचंदों ने सारे महत्वपुर्ण स्थलौकास्थलों का नाम परिवर्तन किया , जहाँ उन्हौनेउन्होंने राज्धानीराजधानी बनाइबनाई वो भिभी कालान्जर का हिही तल था, उस्कोउसको उन्हौनेउन्होंने बायोत्तर नामाकरण कर्दियकर दिया, बाद्मेबाद में १७ १७वीवीं सदी मे गुर्खौगुरखों ने इस का नाम बदलकर बैतडी कर्दियाकर दिया, और सारा इतिहास छिन्न भिन्न हो गया, कालान्जर मे पुजा कर्नाकरना निशेधनिषेध किया गया और वहाँ केबलकेवल गाय चराने वाले ग्वाले हिही जाने लगे, पुरे मन्दिर के रूप मे अवस्थित बनखण्डवनखण्ड को गौचरान मे परिणत कर्दियाकर दिया। पहले चन्द राजावौनेराजाओं ने और बादमेबाद में पुर्ण रुपसेरुप गुर्खौसे नेगुरखो ने, और बाद मे १८वी१८ सदीवीं सदी, अंरेज्अंग्रेज-नेपाल के युद्ध के समय तक इस्काइसका नाम कालोन्जर हो गया, अंरेजअंग्रेज नेपाल के युद्ध के बाद गुर्खौगुरखो के दबाबदवाब मेमें यिसकाइसका नाम गोल्लेक बनादियाबना दिया गया और आज इसे ग्वाल्लेक के नाम से जाना जाता है, यह शिबशिव पुराणौमेपुराणों बर्णितमें वर्णित कालन्जर पर्बतपर्वत हिही है, बहुत सारे अध्एताअध्येता और शोध कर्नेकरने वाले भिभी इस बात कि पुस्टीपुष्टि करचुकेकर हैचुके हैं]]}}
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|<span style="color:#0000FF"> कैलाश पर्बत् पर्वत</span>|| तिब्बत। यह कालान्जरकीकालान्जर की तरह एक भुमी ज्योतिर्लिङज्योतिर्लिंग हैहै।
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/शिव" से प्राप्त