"यमुना नदी": अवतरणों में अंतर
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=== प्राचीन प्रवाह ===
मैदान में जहाँ इस समय यमुना का प्रवाह है, वहाँ वह सदा से प्रवाहित नहीं होती रही है। पौराणिक अनुश्रुतियों और ऐतिहासिक उल्लेखों से यह ज्ञात होता है, यद्यपि यमुना पिछले हजारों वर्षों से विधमान है, तथापि इसका प्रवाह समय-समय पर परिवर्तित होता रहा है। अपने
प्रागऐतिहासिक काल में यमुना [[मधुबन]] के समीप बहती थी, जहाँ उसके तट पर शत्रुध्न जी ने सर्वप्रथम मथुरा नगरी की स्थापना की थी। [[वाल्मीकि रामायण]] और [[विष्णु पुराण]] में इसका विवरण प्राप्त होता है। १ कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केशव देव के निकट था। सत्रहवीं शताबदी में भारत आने वाले यूरोपीय विद्वान टेवर्नियर ने [[कटरा]] के समीप की भूमि को देख कर यह अनुमान लगा लिया था कि वहाँ किसी समय यमुना की धारा थी। इस संदर्भ में ग्राउज़ का मत है कि ऐतिहासिक काल में कटरा के समीप यमुना के प्रवाहित होने की संभावना कम है, किन्तु अत्यन्त प्राचीन काल में वहाँ यमुना अवश्य थी। २ इससे भी यह सिद्ध होता है कि कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा के समीप ही था।
कनिधंम का अनुमान है,
* पुराणों से ज्ञात होता है, प्राचीन वृन्दावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थी। जबकि वर्तमान में वह गोवर्धन से लगभग ४ मील दूर हो गई है। गोवर्धन के निकटवर्ती दो छोटे ग्राम 'जमुनावती' और परसौली है। वहाँ किसी काल में यमुना के प्रवाहित होने उल्लेख मिलते हैं।
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[[वल्लभ सम्प्रदाय]] के [[वार्ता साहित्य]] से ज्ञात होता है कि [[सारस्वत कल्प]] में यमुना नदी जमुनावती ग्राम के समीप बहती थी। उस काल में यमुना नदी की दो धाराऐं थी, एक धारा नंदगाँव, वरसाना, संकेत के निकट बहती हुई गोवर्धन में जमुनावती पर आती थी और दूसरी धारा पीरघाट से होती हुई गोकुल की ओर चली जाती थी। आगे दानों धाराएँ एक होकर वर्तमान आगरा की ओर बढ़ जाती थी।
परासौली में यमुना को धारा प्रवाहित होने का प्रमाण स. १७१७ तक मिलता है। यद्यपि इस पर विश्वास होना कठिन है। श्री गंगाप्रसाद कमठान ने [[ब्रजभाषा]] के एक मुसलमान भक्त कवि कारबेग उपमान कारे का वृतांत प्रकाशित किया है। काबेग के कथनानुसार वह जमुना के तटवर्ती परासौली गाँव का निवासी था और उसने अपनी रचना सं १७१७ में सृजित की थी।
=== आधुनिक प्रवाह ===
वर्तमान समय में [[सहारनपुर]] जिले के [[फैजाबाद]] गाँव के निकट मैदान में आने पर यह आगे
इस भू-भाग में यमुना की धारा के दोनों ओर [[पंजाब]] और [[उत्तर प्रदेश]] के कई छोटे बड़े नगरों की सीमाएँ हैं, किन्तु इसके ठीक तट पर बसा हुआ सबसे प्राचीन और पहला नगर दिल्ली है, जो लम्बे समय से भारत की राजधानी है। दिल्ली के लाखों
=== तटवर्ती स्थान ===
ब्रज प्रदेश की सांस्कृतिक सीमा में यमुना नदी का प्रथम प्रवेश बुलंदशहर जिला की खुर्जा तहसील के 'जेबर' नामक कस्बा के निकट होता है। वहाँ से यह दक्षिण की ओर बहती हुई फरीदाबाद (हरियाणा) जिले की पलवल तहसील और अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की खैर तहसील की सीमा निर्मित करती है। इसके बाद यह छाता तहसील के शाहपुर ग्राम के निकट यह मथुरा जिले में प्रवेश करती है और मथुरा जिले की छाता और भाँट तहसीलों की सीमा निर्धारित करती है। जेबर से शेरगढ़ तक यह दक्षिणाभिमुख प्रवाहित होती है उसके बाद कुछ पूर्व की ओर मुड़ जाती है। ब्रज क्षेत्र में यमुना के तट पर बसा हुआ पहिला उल्लेखनीय स्थान शेरगढ़ है।
शेरगढ़ से कुछ दूर तक पूर्व की दिशा में बह कर फिर यह मथुरा तक दक्षिण दिशा में ही बहती है। मार्ग में इसके दोनों ओर पुराण प्रसिद्ध वन और उपवन तथा कृष्ण लीला स्थान विधमान हैं। यहाँ पर यह भाँट से वृन्दावन तक
वर्तमान काल में यमुना की एक ही धारा है और उसी के तट पर [[वृन्दावन]] बसा हुआ है। वहाँ मध्य काल में अनेक धर्माचार्यों और भक्त कवियों ने निवास कर कृष्णोपासना और कृष्ण भक्ति का प्रचार किया था। वृन्दावन में यमुना के किनारों पर बड़े सुन्दर घाट बने हुए हैं और उन पर अनेक मंदिर-देवालय, छतरियां और धर्मशालाएँ है। इनसे यमुना के तट की शोभा अधिक बढ़ जाती है। वृन्दावन से आगे दक्षिण की ओर बहती हुई यह नदी मथुरा नगर में प्रवेश करती है।
[[मथुरा]] यमुना के तट पर बसा हुआ एक
मथुरा से आगे यमुना के तट पर बायीं ओर गोकुल और महावन जैसे धार्मिक स्थल हैं तथा दायें तट पर पहले औरंगाबाद और उसके बाद फरह जैसे ग्राम हैं। यहाँ तक यमुना के किनारे रेतीले हैं, किन्तु आगे पथरीले और
सादाबाद तहसील के ग्राम अकोस के पास यमुना मथुरा जिले की सीमा से बाहर निकलती है और फिर कुछ दूर तक मथुरा और आगरा जिलों की सीमा निर्मित करती है। सादाबाद तहसील के मंदौर ग्राम के पास यह आगरा जिले में प्रवेश करती है। वहाँ इसमें करबन और गंभीर नामक नदियां आकर मिलती हैं।
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