"नवधा भक्ति": अवतरणों में अंतर

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== [[रामचरितमानस]] (अरण्य काण्ड ) में नवधा भक्ति ==
भगवान् श्रीराम जब भक्तिमती शबरीजी के आश्रम में आते हैं तो भावमयी शबरीजी उनका स्वागत करती हैं, उनके श्रीचरणों को पखारती हैं, उन्हें आसन पर बैठाती हैं और उन्हें रसभरे कन्द-मूल-फल लाकर अर्पित करती हैं। प्रभु बार-बार उन फलों के स्वाद की सराहना करते हुए आनन्दपूर्वक उनका आस्वादन करते हैं। इसके पश्चात् भगवान राम शबरीजी के समक्ष नवधा भक्ति का स्वरूप प्रकट करते हुए उनसे कहते हैं कि-
 
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दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।<br /><br />
गुर पद पकंज सेवा तीसरि भगति अमान।<br />
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान। 3/( चौपाई - दोहा 35)<br /><br />
मन्त्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा।<br />
पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।<br /><br />
पंक्ति 81:
सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।।<br /><br />
नवम सरल सब सन छलहीना।<br />
मम भरोस हियँ हरष न दीना।। 3/35/(1-5 चौपाई दोहा 36 <br /><br />
 
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]