"देवीमाहात्म्य": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=मई 2019}}
[[चित्र:Devimahatmya Sanskrit MS Nepal 11c.jpg|right|thumb|300px|[[ताड़पत्र]] पर [[भुजिमोल लिपि]] में लिखी देवीमाहात्म्य की सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि]]
'''देवीमाहात्म्यम्''' (अर्थ: ''देवी का महात्म्य'') हिन्दुओं का एक धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें [[देवी]]इसमें ७०० [[दुर्गाश्लोक]] कीहोने [[महिषासुर]]के नामककारण राक्षसइसे के'दुर्गा ऊपरसप्तशती' विजयभी काकहते वर्णन है।हैं। यह [[मार्कण्डेय पुराण]] का अंश है। इसमें ७०० [[श्लोक]] होने के कारण इसे 'दुर्गा सप्तशती' भी कहते हैं। इसमें [[सृष्टि]] की प्रतीकात्मक व्याख्या की गई है। जगत की सम्पूर्ण शक्तियों के दो रूप माने गये है - संचित और क्रियात्मक। [[नवरात्रि]] के दिनों में इसका पाठ किया जाता है।
 
जिसमें [[देवी]] [[दुर्गा]] की [[महिषासुर]] नामक राक्षस के ऊपर विजय का वर्णन है इस रचना का विशेष संदेश है कि विकास-विरोधी दुष्ट अतिवादी शक्तियों को सारे सभ्य लोगों की सम्मिलित शक्ति "सर्वदेवशरीजम" ही परास्त कर सकती है, जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। इस प्रकार आर्यशक्ति अजेय है। इसमे गमन (इसका भेदन) दुष्कर है। इसलिए यह 'दुर्गा' है। यह [[अतिवादी|अतिवादियों]] के ऊपर संतुलन-शक्ति (stogun) सभ्यता के विकास की सही पहचान है।
 
== परिचय ==