"देवीमाहात्म्य": अवतरणों में अंतर

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सृष्टि की इन्ही तीन अवस्थाओं को सर्वसाधारण के लिए बोधगम्य रूप में प्रस्तुत किया गया है| पहली अवस्था में सृष्टि रचना के कर्ता ब्रम्हा को मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस मार लाना चाहते थे| क्रमश: तमोगुणी और रजोगुणी ये दोनों अतिवादी शक्तियाँ विकास के लिए संकट है| ब्रह्म ने महामाया से रक्षा की गुहार की| महामाया की प्रेरणा से विष्णु योग्निन्द्रा त्याग कर आए और राक्षसों को मार डाला| ब्रह्म की सृष्टि-रचना का कार्य आगे बढ़ जाता है। दूसरी अवस्था सभ्यता की प्रारंभिक अवस्था-गंगा सिन्धु के मैदान की तत्कालीन जंगली अवस्था का प्रतीकात्मक वर्णन है। जानवरों से शारीरिक बल में अपेक्षाकृत कमजोर मानव समूह -आर्यशक्ति को विना विकसित हथियार के केवल बुद्दि विवेक के बल पर जंगली भैंसे ([[महिषासुर]]) आदि भयानक जंगली जानवरों के बीच से अपनी सभ्यता की गाड़ी आगे निकलने की चुनोती थी, जिसमे वह सफल हुई। तीसरी अवस्था सभ्यता की विकसित अवस्था है, जहाँ आर्यशक्ति को [[शुंभ और निशुंभ]] के रूप में दो अतिवादी शक्तियों रजोगुण और तमोगुण अथवा प्रगतिवादी और प्रतक्रियावादी शक्तियों का सामना सदा करना पड़ता है।
 
== कुछ वहुप्रचलित स्तोत्र और उनका अर्थ ==
[[ब्रह्मा]] द्वारा की गयी देवीस्तुति (श्लोक ७२ - ८६) इस ग्रन्थ के अधिक प्रचलित श्लोकों में अन्यतम हैं। इन श्लोकों की काव्यिक सुषमा एवं दार्शनिकता अति सुन्दर है। नीचे संस्कृत श्लोक एवं उनका हिन्दी अनुवाद दिया गया है-