"दुर्वासा ऋषि": अवतरणों में अंतर

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जब से दुर्वासाजी अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे, तब से महाराज अम्बरीशने भोजन नहीं किया था। उन्होंने दुर्वासाजी के चरण पकड़ लिए और बडे़ प्रेम से भोजन कराया। दुर्वासाजी भोजन करके तृप्त हुए और आदर पूर्वक राजा से भोजन करने का आग्रह किया। दुर्वासाजी ने संतुष्ट होकर महाराज अम्बरीश के गुणों की प्रशंसा की और आश्रम लौट आए। महाराज अम्बरीश के संसर्ग से महर्षि दुर्वासा का चरित्र बदल गया। अब वे ब्रह्म ज्ञान और अष्टांग योग आदि की अपेक्षा शुद्ध भक्ति मार्ग की ओर झुक गए। महर्षि दुर्वासा जी शंकर जी के अवतार एवं प्रकाश हैं। शंकर जी के ईश्वर होने के कारण ही उनका निवास स्थान ईशापुर के नाम से प्रसिद्ध है। आश्रम का पुनर्निर्माण त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद्भक्ति वेदान्त गोस्वामी जी ने कराया। सम्प्रति व्यवस्था सन्त रास बिहारी दास आश्रम पर रह कर देख रहे हैं।
 
ब्रज मण्डल के अंतर्गत प्रमुख बारह वनों में से लोहवनके अंतर्गत यमुनामहर्षि केदुर्वाषा ने निजामाबाद तहसील में तमसा किनारे मथुराअपनी तपोस्थली त्रेता युग में दुर्वासाजीबनाया था जो आज भी जन आस्था का अत्यन्तप्रमुख प्राचीनकेंद्र आश्रमहै। तीन तहसील क्षेत्रों फूलपुर, निजामाबाद और अम्बेकर नगर के त्रिकोण पर तमसा किनारे स्थापित दुर्वाषा धाम पर भगवान शिव का पौराणिक काल का मंदिर स्थित है। यह महर्षि दुर्वासा की सिद्ध तपस्या स्थली एवं तीनों युगों का प्रसिद्ध आश्रम है। [[भारत]] के समस्त भागों से लोग इस आश्रम का दर्शन करने और तरह-तरह की लौकिक कामनाओं की पूर्ति करने के लिए आते हैं।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[हिन्दू धर्म]]
 
{{महाभारत}}