"भगत सिंह": अवतरणों में अंतर
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[[File:BhagatSingh DeathCertificate.jpg|thumb|300px|भगत सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र]]
26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फांसी की माफी के लिए प्रिवी
23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-39352944|title=भगत सिंह की ज़िंदगी के वे आख़िरी 12 घंटे}}</ref> फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए।<ref>{{cite web|author=Chinmohan Sehanavis |url=http://www.mainstreamweekly.net/article351.html |title=Impact of Lenin on Bhagat Singh's Life |work=Mainstream Weekly |accessdate=28 October 2011}}</ref> कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके [[फाँसी]] का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो।"
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