"चरखा": अवतरणों में अंतर
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थरपारकर, सिंध में चरखे पर काम करती हुई एक स्त्री |
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[[चित्र:Gandhi spinning.jpg|left|thumb|चरखे पर सूत कातते [[महात्मा गाँधी|गांधीजी]]]]
[[चित्र:Punjab village women 375044025.jpg|thumb|right| पंजाब में चरखे पर सूत कातती स्त्रियाँ]]
[[चित्र:Pakistani Weaver.JPG|पाठ=थरपारकर में चरखे पर काम करती हुई एक स्त्री|अंगूठाकार|[[थारपारकर जिला|थरपारकर]], [[सिंध]] में चरखे पर काम करती हुई एक स्त्री]]
'''चरखा''' एक हस्तचालित युक्ति है जिससे [[सूत]] तैयार किया जाता है। इसका उपयोग कुटीर उद्योग के रूप में सूत उत्पादन में किया जाता है। [[भारत]] के स्वतन्त्रता संग्राम में यह आर्थिक स्वावलम्बन का प्रतीक बन गया था। चरखा यंत्र का जन्म और विकास कब तथा कैसे हुआ, इस पर चरखा संघ की ओर से काफ़ी खोजबीन की गई थी। अंग्रेज़ों के भारत आने से पहले भारत भर में चरखे और करघे का प्रचलन था। 1500 ई. तक खादी और हस्तकला उद्योग पूरी तरह विकसित था। सन् 1702 में अकेले इंग्लैंड ने भारत से 10,53,725 पाउंड की खादी ख़रीदी थी। मार्कोपोलो और टेवर्नियर ने खादी पर अनेक सुंदर कविताएँ लिखी हैं। सन् 1960 में टैवर्नियर की डायरी में खादी की मृदुता, मज़बूती, बारीकी और पारदर्शिता की भूरि भूरि प्रशंसा की गई है।
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