"भारत की पर्वतीय रेल": अवतरणों में अंतर

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कई रेलवे भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में कई जगह रेलवे व्यवस्था की गयी थी सामूहिक रूप से ये भारत की पर्वतीय रेलवे के रूप में जाना जाता है| इन रेलों में से चार अभी भी चल रही हैं एवं इन्हें युनेस्को विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
 
 
=दार्जिलिंग हिमालयी रेल=
 
* [[दार्जिलिंग हिमालयी रेल]]
 
19वीं सदी के प्रारंभ में दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे, हिल स्टेशनों की रानी के रूप में दार्जिलिंग के विकास और भारत के मुख्य चाय उगाने वाले क्षेत्रों के साथ घनिष्‍ठता के साथ जुड़ा हुआ है। दर्जिलिंग, जो अब घनी वृक्ष युक्‍त पर्वतीय क्षेत्र है पहले सिक्किम साम्राज्य का भाग था। इसको 1835 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अपने सैनिकों के लिए विश्राम स्‍थल और स्‍वास्‍थ्‍य लाभ केन्‍द्र के रूप में अपनाया गया था। जब इस क्षेत्र को सिक्किम से पट्टे पर लिया और हिल स्टेशन का निर्माण कार्य शुरू हुआ, तब सड़क मार्ग से मैदानी इलाकों को जोड़ा गया था। सन् 1878 में पूर्वी बंगाल रेलवे ने सिलीगुड़ी से स्टीम रेलवे के लिए एक विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो पहले से ही कलकत्‍ता से दार्जिलिंग तक जुड़ा हुआ था। इसे सरकारी अनुमोदन प्राप्त हुआ और तुरंत निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1881 तक यह पूरा हो गया था। सन् 1958 के बाद से सरकार के अधीन पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे द्वारा इसका प्रबंधन किया जा रहा है।
 
=नीलगिरि पर्वतीय रेल=
 
* [[नीलगिरि पर्वतीय रेल]]
 
नीलगिरि पर्वतीय रेल, भारत के राज्य तमिलनाडु में स्थित एक रेल प्रणाली है, जिसे 1908 में ब्रिटिश राज के दौरान बनाया गया था। शुरूआत में इसका संचालन मद्रास रेलवे द्वारा किया जाता था। इस रेलवे का परिचालन आज भी भाप इंजनों द्वारा किया जाता है। नीलगिरि पर्वतीय रेल, नवगठित सलेम मंडल के अधिकार क्षेत्र में आता है। जुलाई 2005 में यूनेस्को ने नीलगिरि पर्वतीय रेल को दार्जिलिंग हिमालयी रेल के विश्व धरोहर स्थल के एक विस्तार के रूप में मान्यता दी थी और तब से इन्हें संयुक्त रूप से "भारत की पर्वतीय रेल" के नाम से जाना जाता है। इसे यह मान्यता मिलने के बाद इसकी आधुनिकीकरण की योजना का परित्याग कर दिया गया। पिछले कई वर्षों से कुन्नूर और उदम मंडलम के बीच के खंड पर भाप के इंजनों के स्थान पर लिए डीजल इंजनों का प्रयोग किया जा रहा है। स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने इस खंड पर एक बार फिर से भाप इंजनों द्वारा रेलगाड़ी चलाने की मांग की है।
 
निलगिरी माउंटेन रेलवे एक सिंगल रेलवे ट्रैक है, 46 किलोमीटर (29 मील) लंबा मीटर एक सिंगल ट्रैक है जोकि मेट्टुपालयम शहर को उटकमंडलम (ओटाकामुंड) शहर से जोड़ता है। इस 46 किलोमीटर के सफ़र में 208 मोड़, 16टनल और 250 ब्रिज पड़ते हैं। इस मार्ग पर चढ़ाई की यात्रा लगभग 290 मिनट (4.8 घंटे) में पूरी होती है, जबकि डाउनहिल यात्रा में केवल 215 मिनट (3.6 घंटे) लगते हैं।
 
शाहरुख़ खान द्वारा अभिनीत हिंदी फिल्म "दिल से" के प्रसिद्ध हिंदी गीत छैंया छैंया का फिल्मांकन इसी रेलवे की रेलगाड़ी की छत पर किया गया है।
 
रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन:
 
0 किमी मेट्टुपालयम(कोयंबटूर)
8 किमी कालर
13 किमी एडर्ली
18 किमी हिलग्रोव
21 किमी रनीमीड
25 किमी कटेरी रोड
28 किमी कुन्नूर
29 किमी वेलिंग्टन
32 किमी अरुवंकाडु
38 किमी केत्ति
42 किमी लवडेल
46 किमी उदगमंडलम
 
 
=कालका शिमला रेलवे=
 
ब्रिटिश शासन की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को कालका से जोड़ने के लिए १८९६ में दिल्ली अंबाला कंपनी को इस रेलमार्ग के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। समुद्र तल से ६५६ मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालका (हरियाणा) रेलवे स्टेशन को छोड़ने के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्ते से गुजरते हुए २,०७६ मीटर ऊपर स्थित शिमला तक जाती है।
 
=रेलमार्ग=
दो फीट छह इंच की इस नैरो गेज लेन पर नौ नवंबर, १९०३ से आजतक रेल यातायात जारी है। कालका-शिमला रेलमार्ग में १०३ सुरंगें और ८६९ पुल बने हुए हैं। इस मार्ग पर ९१९ घुमाव आते हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर ट्रेन ४८ डिग्री के कोण पर घूमती है।
 
वर्ष १९०३ में अंग्रेजों द्वारा कालका-शिमला रेल सेक्शन बनाया गया था। रेल विभाग ने ७ नवम्बर २००३ को धूमधाम से शताब्दी समारोह भी मनाया था, जिसमे पूर्व रेलमंत्री नितीश कुमार ने हिस्सा लिया था। इस अवसर पर नितीश कुमार ने इस रेल ट्रैक को हैरिटेज का दर्जा दिलाने के लिए मामला यूनेस्को से उठाने की घोषणा की थी।
 
=विश्व धरोहर स्थल=
यूनेस्को की टीम ने कालका-शिमला रेलमार्ग का दौरा करके हालात का जायजा लिया। टीम ने कहा था कि दार्जिलिंग रेल सेक्शन के बाद यह एक ऐसा सेक्शन है जो अपने आप में अनोखा है। यूनेस्को ने इस ट्रैक के ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए भरोसा दिलाया था कि इसे वल्र्ड हैरिटेज में शामिल करने के लिए वह पूरा प्रयास करेंगे। और अन्ततः २४ जुलाई २००८ को इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया।
 
६० के दशक में चलने वाले स्टीम इंजन ने इस स्टेशन की धरोहर को बरकरार रखा है और यह आज भी शिमला और कैथलीघाट के बीच चल रहा है। इसके बाद देश की हैरिटेज टीम ने इस सेक्शन को वल्र्ड हैरीटेज बनाने के लिए अपना दावा पेश किया था।
 
 
इस सेक्शन पर १०३ सुरंगों की के कारण शिमला में आखिरी सुरंग को १०३ नंबर सुरंग का नाम दिया गया है। इसी कारण से ठीक ऊपर बने बस स्टॉप को भी अंग्रेजों के जमाने से ही १०३ स्टेशन के नाम से जाना जाने लगा, जबकि इसका नाम १०२ स्टॉप होना चाहिए।
 
जगह-जगह दरकने लगा है यह रेल ट्रैक
भले ही इस ट्रैक को वल्र्ड हैरिटेज का दर्जा मिल गया है, लेकिन १०५ वर्ष पुराने इस ट्रैक पर कई खामियां भी हैं। इस ट्रैक पर बने कई पुल कई जगह इतने जर्जर हो चुके हैं कि स्वयं रेलवे को खतरा लिखकर चेतावनी देनी पड़ रही है। ऐसे असुरक्षित पुलों पर ट्रेन निर्धारित गति २५ किलोमीटर प्रतिघंटा की जगह २० किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चलती है।
 
प्रतिदिन लगभग डेढ़ हजार यात्री चलते हैं इस ट्रैक पर
कालका-शिमला रेलमार्ग पर सामान्य सीजन में लगभग डेढ़ हजार यात्री यात्रा करते हैं, जबकि पीक सीजन मे यह आंकड़ा दुगुना हो जाता है।
 
कल्पा में बना था प्लान: अंग्रेजों ने हिमाचल के किन्नौर जिले के कल्पा में इस रेल ट्रैक को बनाने का प्लान बनाया था। पहले यह रेल ट्रैक कालका से किन्नौर तक पहुंचाया जाना था, लेकिन बाद में इसे शिमला लाकर पूरा किया गया।
 
=कर्नल बड़ोग की आत्महत्या=
 
अंग्रेजों ने इस रेल ट्रैक पर जब काम शुरू किया तो बड़ोग में एक बड़ी पहाड़ी की वजह से ट्रैक को आगे ले जाने में दिक्कतें आने लगीं। एक बार तो हालात यह बन गए कि अंग्रेजों ने इस ट्रैक को शिमला तक पहुंचाने का काम बीच में ही छोड़ने का मन बना लिया। इस वजह से ट्रैक का काम देख रहे कर्नल बड़ोग ने आत्महत्या तक कर ली। उन्हीं के नाम पर आज बड़ोग स्टेशन का नाम रखा गया है।
 
=नए इंजनों के इंतजार में ३६ वर्ष बूढ़े इंजन=
 
इस ऐतिहासिक रेलमार्ग पर चलने वाले अधिकतर इंजन ३६ वर्षों की यात्रा के बाद भी सवारियों को कालका-शिमला की ओर ढो रहे हैं। इस रेलमार्ग पर वर्तमान मे लगभग १४ इंजन चल रहे हैं, इनमे १० इंजन ३६ वर्ष पूरे कर चुके हैं और शेष ४ इंजन भी २० से २५ वर्ष पुराने हो चुके हैं।
 
ज्ञात हो की पहाड़ों पर चलने वाले टॉय ट्रेन इंजन का जीवनकाल लगभग ३६ वर्ष का ही होता है। इस प्रकार इस रेलमार्ग पर चलन वाले १० इंजन अपनी यात्रा पूरी कर चुके हैं। इन सभी इंजनों की कालका स्थित नैरोगेज डीजल इंजन वर्कशॉप में मरम्मत और रख रखाव किया जाता है, लेकिन पुराने हो चुके इंजनों के स्पेयर पार्ट्स न मिलने के कारण इनके मेंटेनेंस में भी परेशानी होती है।
 
रेल विभाग इस सेक्शन के लिए मुंबई स्थित परेल वर्कशॉप से चार नए इंजन तैयार कराने की बात लगभग १० महीने से कर रहा है। रेल विभाग इन इंजन को यहां कभी मार्च, कभी अप्रैल तो जून में लाने की बात करता रहा है, लेकिन अभी तक ये इंजन यहां नहीं पहुंचे है।
 
 
 
 
* [[कालका शिमला रेलवे]]
 
* माथेरान हिल रेलवे
 
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[[श्रेणी:Rail transport in India]]
[[श्रेणी:World Heritage Sites in India]]
[[https://www.indiaculture.gov.in/hi/world-heritage]]