"ब्रान्स्टेड तथा लॉरी का अम्ल-क्षार सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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'''ब्रोनस्टेड-लोरी सिद्धान्त''' (Brønsted–Lowry theory) एक [[अम्ल]]-[[क्षार]] [[अभिक्रिया]] सिद्धान्त है जिसे 1923 में जोहानस निकोलस ब्रोनस्टेड और थॉमस मार्टिन लॉरी द्वारा स्वतंत्र रूप से प्रस्तावित किया गया था। इस सिद्धान्त की मूल अवधारणा यह है कि जब कोई अम्ल और [[क्षार]] एक-दूसरे के साथ [[अभिक्रिया]] करते हैं, तो [[प्रोटॉन]] ( H<sup>+</sup>) के आदान-प्रदान के द्वारा अम्ल अपना संयुग्मी क्षार बनाता है, तथा क्षार अपना एक संयुग्मी अम्ल। यह सिद्धान्त [[अम्ल-क्षार अभिक्रिया|अरहेनियस सिद्धान्त]] का सामान्यीकरण है।
ब्रोनस्टेड-लोरी सिद्धान्त--
darat proton data hote he ve acid kahelate he
Jo padarat proton grahi hote he vo base kahelate he
.is sidant me proton upastith acid / base ka explain hota he
 
==सन्दर्भ==