"अर्थशास्त्र": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Aaj khushi life ko jina sab chahta hei Iss duniye kei sabhi log lekin aaj Iss pese ke karan koi mar kei bhi khushi nahi rah pate hei log aur aaj crime ka terirists etc ka karan pesa hei aur '' end of money in life of the world'' ke prati aapna sahmti request feedback to your waiting this response of support india of the world. टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन campaign-external-machine-translation |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1:
:''यह पृष्ठ अर्थशास्त्र (इकनॉमिक्स) विषय से
▲:''यह पृष्ठ अर्थशास्त्र विषय से संबन्धित है। कौटिल्य द्वारा रचित [[अर्थशास्त्र ग्रन्थ]] के लिये यहाँ देखें।''
----
Line 25 ⟶ 23:
==परिभाषा==
अर्थशास्त्र एक विज्ञान है, जो मानव व्यवहार का अध्ययन उसकी आवश्यकताओं(इच्छाओं) एवं उपलब्ध संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग के मध्य संबंध का अध्ययन करता
* [[अल्फ्रेड मार्शल|डॉ॰ मार्शल]] ने 1890 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के सिद्धान्त (Principles of Economics) में अर्थशास्त्र की कल्याण सम्बन्धी परिभाषा देकर इसको लोकप्रिय बना दिया।▼
▲अर्थशास्त्र एक विज्ञान है, जो मानव व्यवहार का अध्ययन उसकी आवश्यकताओं(इच्छाओं) एवं उपलब्ध संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग के मध्य संबंध का अध्ययन करता है।जिसमें धन सम्बंधित क्रियाओं का आध्ययन किया जाता है, अर्थशास्त्र कहलाता है। अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री का संकेत इसकी परिभाषा से मिलता है।
* ब्रिटेन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री [[लार्ड राबिन्स]] ने 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science’’ में अर्थशास्त्र को '''दुर्लभता का सिद्धान्त''' माना है। इस सम्बन्ध में उनका मत है कि मानवीय आवश्यकताएं असीमित है तथा उनको पूरा करने के साधन सीमित है।▼
▲* [[अल्फ्रेड मार्शल|डॉ॰ मार्शल]] ने 1890 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के सिद्धान्त (Principles of Economics) में अर्थशास्त्र की कल्याण सम्बन्धी परिभाषा देकर इसको लोकप्रिय बना दिया।
▲* ब्रिटेन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री [[लार्ड राबिन्स]] ने 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science’’ में अर्थशास्त्र को '''दुर्लभता का सिद्धान्त''' माना है। इस सम्बन्ध में उनका मत है कि मानवीय आवश्यकताएं असीमित है तथा उनको पूरा करने के साधन सीमित है।
* आधुनिक अर्थशास्त्री [[सैम्यूल्सन]] (Samuelson) ने अर्थशास्त्र को '''विकास का शास्त्र''' (Science of Growth ) कहा है।
*आधुनिक अर्थशास्त्री कपिल आर्य (Kapil Arya) ने अपनी पुस्तक "अर्थमेधा" में अर्थशास्त्र को '''सुख के साधनों''' का विज्ञान माना है |
==अर्थशास्त्र का महत्व==
अर्थशास्त्र का सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक महत्व
===सैद्धान्तिक महत्व===
Line 51 ⟶ 48:
* अन्य शास्त्रों से सम्बन्ध का ज्ञान
===व्यावहारिक महत्व===
Line 63 ⟶ 59:
* प्रबन्धकों को लाभ ,
* विद्यार्थियों को लाभ,
* देश के उत्थान में लाभ,
* वैज्ञानिकों को लाभ।
Line 73 ⟶ 69:
: ''सुखस्य मूलं धर्मः। '''धर्मस्य मूलं अर्थः'''। अर्थस्य मूलं राज्यं। राज्यस्य मूलं इन्द्रिय जयः। इन्द्रियजयस्य मूलं विनयः। विनयस्य मूलं वृद्धोपसेवा॥''
: (अर्थ : '' सुख का मूल है, धर्म। '''धर्म का मूल है, अर्थ'''। अर्थ का मूल है, राज्य। राज्य का मूल है, इन्द्रियों पर विजय। इन्द्रियजय का मूल है, विनय। विनय का मूल है, वृद्धों की सेवा।'')
=== पाश्चात्य अर्थशास्त्र ===
Line 141 ⟶ 137:
अर्थशास्त्र की विषय सामग्री के सम्बन्ध में आर्थिक क्रियाओं का वर्णन भी जरूरी है। पूर्व में [[उत्पादन]], [[उपभोग]], [[विनिमय]] तथा [[वितरण]] - अर्थशास्त्र के ये चार प्रधान अंग (या, आर्थिक क्रियायें) माने जाते थे। आधुनिक अर्थशास्त्र में इन क्रियाओं को पांच भागों में बांटा जा सकता है।
* '''[[उत्पादन]]''' (Production) : उत्पादन वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध वस्तुओं और सेवाओं की उपयोगिता अथवा मूल्य में वृद्धि करने से
* '''[[उपभोग]]''' (Consumption ) : व्यक्तिगत या सामूहिक आवश्यकता की संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओ की उपयोगिता का उपभोग किया
* '''[[विनिमय]]''' (Exchange) : किसी वस्तु या उत्पादन के साधन का क्रय-विक्रय किया जाता है और यह क्रय-विक्रय अधिकांशतः मुद्रा द्वारा किया जाता
* '''[[वितरण]]''' (Distribution) : वितरण से तात्पर्य उत्पादन के साधनों के वितरण से है, उत्पति के विभिन्न साधनों के सामूहिक सहयोग से जो उत्पादन होता है उसका विभिन्न साधनों में
* '''[[राजस्व]]''' (Public Finance) : राजस्व के अन्तर्गत लोक व्यय, लोक आय, लोक ऋण, वित्तीय प्रशासन आदि से सबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता
आर्थिक क्रियाओं के उद्देश्य के आधार पर 1933 में सर्वप्रथम रेगनर फ्र्रिश (Ragnor Frisch) ने अर्थशास्त्र को दो भागों में बांटा।
|