"रायगढ़": अवतरणों में अंतर

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१७. शिरकाई मंदिर : महाराज के पुतडाव्या बाजूस जे छोटे देऊळ दिसते ते शिरकाईचे देऊळ. शिरकाई ही गडावरील मुख्य देवता. शिर्के पाचव्या शतकापासून रायगडाचे स्वामी होते. याची आठवण देणारी गडस्वमिनी शिरकाई हिचे मंदिर गडावर आहे. लोकमान्य टिळकांचा काळात मावळकर नावाचा इंजिनिअराने हे मंदिर बांधले आहे. ते शिरकाईचे मूळ मंदिर नाही. मूर्ती मात्र प्राचीन आहे. मूळ शिरकाई मंदिर राजवाड्यास लागून डावीकडे होली बादबमाला पर था। वहॉ मंदिर का चबुतरा आज भी है। ब्रिटिश काल में वहॉ शिरकाई का घरटा ये नामफलक था।
 
१८. जगदीश्वर मंदिर : बाजारपेठे के निचले बाजू में पूर्व दिशा में उतार पर ब्राह्मणबस्ती, ब्राह्मणतालाब वगैरे अवशेष दिखते है। वहॉ से सामने जो भव्य मंदिर दिखता है वो ही महादेवजी का मतलब जगदीश्वर का मंदिर. मंदिर के सामने नंदी की भव्य ओर सुंदर मूर्ती है। पर वर्तमान में यह मूर्ती भग्रावस्था में है। मंदिरभव्यमंदिर में प्रवेश किया कि भव्य सभामंडप लगता है। मंडप के मध्य भाग में भव्य कछुआ है। मंदिर के मुख्य भाग में हनुमानजी की भव्य मूर्ती दिखाई देती है। मंदिरा के प्रवेशद द्वार की सीढियें के नीचे एक छोटा सा शिलालेख दिखाई देता है। वो इस प्रकार है ‘सेवेचे ठायी तत्पर हिरोजी इदळकर’ इस दरवाजे के दाँए बाजू की ओर दिवार पर एक सुंदर शिलालेख दिखता है वो इस प्रकार है- श्री गणपतये नमः। प्रासादो जगदीश्वरस्य जगतामानंददोनुज्ञया श्रीमच्छत्रपतेः शिवस्यनृपतेः सिंहासने तिष्ठतः। शाके षण्णवबाणभूमिगणनादानन्दसंवत्सरे ज्योतीराजमुहूर्तकिर्तीमहिते शुक्लेशसापै तिथौ ॥१॥ वापीकूपडागराजिरुचिरं रम्यं वनं वीतिकौ स्तभेः कुंभिगृहे नरेन्द्रसदनैरभ्रंलिहे मीहिते । श्रीमद्रायगिरौ गिरामविषये हीराजिना निर्मितो यावच्चन्द्रदिवाकरौ विलसतस्तावत्समुज्जृंभते ॥२॥ इसकी संक्षिप्त में अर्थ इस प्रकार है-’सर्व जग को आनंददायी असा ये जगदीश्वरा का प्रासाद श्रीमद् छत्रपती शिवाजी राजा का आज्ञेने शके १५९६ में आनंदनाम संवत्सर चालू था सुमुहुर्त पर निर्माण किया इस रायगड पर हिरोजी नाम के शिल्पकार ने कुँए, सरोवर, बगीचे, रस्ते, स्तंभ, गजशाला, राजगृहे इत्यादी का निर्माण किया। वह चंद्रसूर्य है तब तक मजे से जिओ।
 
१९. महाराजांची समाधी : मंदिराचा पूर्वदरवाजापासून थोडा अंतरावर जो अष्टकोनी चौथरा दिसतो तीच महाराजांची समाधी. सभासद बखर म्हणते, ‘क्षत्रियकुलावतंस श्रीमन्महाराजाधिराज शिवाजी महाराज छत्रपती यांचा काल शके १६०२चैत्र (शुद्ध १५ (इसवी1680)या दिवशी रायगड येथे झ़ाला. देहाचे सार्थक त्याणी बांधिलेला जगदीश्वराचा जो प्रासाद त्याचा महाद्वाराचा बाहेर दक्षणभागी केले. तेथे काळ्या दगडाचा चिऱ्याचे सुमारे छातीभर
 
राज्याभिषेक