"रायगढ़": अवतरणों में अंतर

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१६. बाजार : नगारखाने से बाई ओर उतरने पर सामने जो खुली जगह दिखाई देती है वह‘होळीचा माळ’है। वही पर शिवछत्रपतीं का भव्य पुतला बनाया गया है। पुतले के सामने जो दो पंकि में भव्य अवशेष दिखाई देते हैं वही शिवाजी महाराज के जमाने का बाजार पेठ दो पंकि में प्रत्येकी २२ दुकाने है। दो पंकि में चालीस फूट चौडा रस्ता है। प्रत्येक बाजार पेठ आज भी हुबेहुब जैसी की वैसी है।
 
१७. शिरकाई मंदिर : महाराज के पुतले के बाई ओर जो छोटे मंदिर है वो शिरकाई के मंदिर है। शिरकाई यह किले की मुख्य देवता। शिर्के पाचवे शतक से रायगड के स्वामी थे। इनकी याद दिलाने के लिए किले की स्वामिनी शिरकाई का मंदिर किले पर है। लोकमान्य टिलकाटिलक के जमाने में मावलकर नाम के इंजिनिअरने ये मंदिर बनाया था। तेवह शिरकाईचेशिरकाई मूळका मुख्य मंदिर नाही.नही। मूर्ती मात्रलेकिन प्राचीन आहे.है। मूळमुख्य शिरकाई मंदिर राजवाड्यासराजवाडे से लगकर लागूनदाँए डावीकडेओर होली बादबमाला पर था। वहॉ मंदिर का चबुतरा आज भी है। ब्रिटिश काल में वहॉ शिरकाई का घरटा ये नामफलक था।
 
१८. जगदीश्वर मंदिर : बाजारपेठे के निचले बाजू में पूर्व दिशा में उतार पर ब्राह्मणबस्ती, ब्राह्मणतालाब वगैरे अवशेष दिखते है। वहॉ से सामने जो भव्य मंदिर दिखता है वो ही महादेवजी का मतलब जगदीश्वर का मंदिर. मंदिर के सामने नंदी की भव्य ओर सुंदर मूर्ती है। पर वर्तमान में यह मूर्ती भग्रावस्था में है। भव्यमंदिर में प्रवेश किया कि भव्य सभामंडप लगता है। मंडप के मध्य भाग में भव्य कछुआ है। मंदिर के मुख्य भाग में हनुमानजी की भव्य मूर्ती दिखाई देती है। मंदिरा के प्रवेशद द्वार की सीढियें के नीचे एक छोटा सा शिलालेख दिखाई देता है। वो इस प्रकार है ‘सेवेचे ठायी तत्पर हिरोजी इदळकर’ इस दरवाजे के दाँए बाजू की ओर दिवार पर एक सुंदर शिलालेख दिखता है वो इस प्रकार है- श्री गणपतये नमः। प्रासादो जगदीश्वरस्य जगतामानंददोनुज्ञया श्रीमच्छत्रपतेः शिवस्यनृपतेः सिंहासने तिष्ठतः। शाके षण्णवबाणभूमिगणनादानन्दसंवत्सरे ज्योतीराजमुहूर्तकिर्तीमहिते शुक्लेशसापै तिथौ ॥१॥ वापीकूपडागराजिरुचिरं रम्यं वनं वीतिकौ स्तभेः कुंभिगृहे नरेन्द्रसदनैरभ्रंलिहे मीहिते । श्रीमद्रायगिरौ गिरामविषये हीराजिना निर्मितो यावच्चन्द्रदिवाकरौ विलसतस्तावत्समुज्जृंभते ॥२॥ इसकी संक्षिप्त में अर्थ इस प्रकार है-’सर्व जग को आनंददायी असा ये जगदीश्वरा का प्रासाद श्रीमद् छत्रपती शिवाजी राजा का आज्ञेने शके १५९६ में आनंदनाम संवत्सर चालू था सुमुहुर्त पर निर्माण किया इस रायगड पर हिरोजी नाम के शिल्पकार ने कुँए, सरोवर, बगीचे, रस्ते, स्तंभ, गजशाला, राजगृहे इत्यादी का निर्माण किया। वह चंद्रसूर्य है तब तक मजे से जिओ।
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२३. हिरकणी टोक : गंगासागर के पश्चिम दिशा की ओर जो सँकरा मार्ग माहिरकणी सिरे तक जाता है। हिरकणी सिरेतक से संबंधित हिरकणी गवळणी की एक कथा बताया जाती है। इस बुरुज पर कुछ तोफ भी रखी हई दिखाई देती है। बुरुज पर खड़े हुए तो बाई हात की ओर गांधारी के खोरे, दॉई ओर काल नदीचके खोरे दिखाई देते है। पाचाड, खुबलढा बुरूज, मशीद मोर्चा ही ठिकाणे तोफेचा माऱ्यात आहेत. त्यामुळे युद्धशास्त्राचा तसेच लढाऊ दृष्टीने ही खूप महत्त्वाची आणि मोक्याची जागा आहे.
 
'''२४. वाघ्या कुत्र्याची समाधी : इतिहासातइतिहास असेमें म्हटलेऐसा जातेकहा कीजाता है कि शिवाजी महाराजांंचामहाराजा का अत्यसंस्कार चालू होताथा तेव्हातब शिवाजी महाराजांचामहाराज का वाघ्या नावाचानाम का कुत्र्यानेकुत्ता त्याआग आगीतमें उडीकूदा। घेतली.
 
शिवाजी का राज्याभिषेक रायगड में, 6 जून 1674 ई. को हुआ था। काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट इस समारोह के आचार्य थे। उपरान्त 1689-90 ई. में औरंगज़ेब ने इस पर अधिकार कर लिया।