"रायगढ़": अवतरणों में अंतर
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४. मदारमोर्चा या मशीदमोर्चा : चित् दरवाजे से जाने पर आगे रस्तेपर एक सपाटी लगती है। इस खुली जगह के उपर पुरानी टुटी फुटी इमारत दिखाई देती है। उसमें से एक पहरेदार की जगह तो दूसरी ओर अनाज की कोठियाँ है। यहाँ मदनशहा नाम के साधूके शरीर के अवशेष तो एक ओर तोफ भी दिखती है। तसेच पत्थर से खोदी तीन गुहा दिखाई देती है।
५. महादरवाजा : महादरवाजे के बाहर की दोनों बाजू दो सुंदर कमलकृती है।दरवाजे पर रखे इन दो कमलो का अर्थं किले के अंदर ‘श्री और सरस्वती’ रह रही है।‘श्री आणि सरस्वती’ मतलब ‘विद्या
६. चोरदिंडी : महादरवाजे से दाँए ओर टकमक सिरेतक जो तटबंदी जाती है उस पर से चल कर जाने पर जहाँ ये समाप्त होती है उस के पास बुरूज में यह चोरदिंडी बांधी है। बुरुज के अंदर दरवाजेतक आने के लिए सीढियॉ है।
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१५. नगारखाना : सिंहासन के सामने जो भव्य प्रवेशद्वार दिखाई देता है वही ये नगारखाना है। और यह बालेकिले का मुख्य प्रवेश द्वार है। नगारखाने से सीढियॉ चढकर ऊपर गया तो वह किले के सर्वाधिक उंचे स्थान पर पहुंचता है।
१६. बाजार : नगारखाने से बाई ओर उतरने पर सामने जो खुली जगह दिखाई देती है वह‘होळीचा माळ’है। वही पर शिवछत्रपतीं का भव्य पुतला बनाया गया है। पुतले के सामने जो दो
१७. शिरकाई मंदिर : महाराज के पुतले के बाई ओर जो छोटे मंदिर है वो शिरकाई के मंदिर है। शिरकाई यह किले की मुख्य देवता। शिर्के पाचवे शतक से रायगड के स्वामी थे। इनकी याद दिलाने के लिए किले की स्वामिनी शिरकाई का मंदिर किले पर है। लोकमान्य टिलक के जमाने में मावलकर नाम के इंजिनिअरने ये मंदिर बनाया था। वह शिरकाई का मुख्य मंदिर नही। मूर्ती लेकिन प्राचीन है। मुख्य शिरकाई मंदिर राजवाडे से लगकर दाँए ओर होली बादबमाला पर था। वहॉ मंदिर का चबुतरा आज भी है। ब्रिटिश काल में वहॉ शिरकाई का घरटा ये नामफलक था।
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१८. जगदीश्वर मंदिर : बाजारपेठे के निचले बाजू में पूर्व दिशा में उतार पर ब्राह्मणबस्ती, ब्राह्मणतालाब वगैरे अवशेष दिखते है। वहॉ से सामने जो भव्य मंदिर दिखता है वो ही महादेवजी का मतलब जगदीश्वर का मंदिर. मंदिर के सामने नंदी की भव्य ओर सुंदर मूर्ती है। पर वर्तमान में यह मूर्ती भग्रावस्था में है। भव्यमंदिर में प्रवेश किया कि भव्य सभामंडप लगता है। मंडप के मध्य भाग में भव्य कछुआ है। मंदिर के मुख्य भाग में हनुमानजी की भव्य मूर्ती दिखाई देती है। मंदिरा के प्रवेशद द्वार की सीढियें के नीचे एक छोटा सा शिलालेख दिखाई देता है। वो इस प्रकार है ‘सेवेचे ठायी तत्पर हिरोजी इदळकर’ इस दरवाजे के दाँए बाजू की ओर दिवार पर एक सुंदर शिलालेख दिखता है वो इस प्रकार है- श्री गणपतये नमः। प्रासादो जगदीश्वरस्य जगतामानंददोनुज्ञया श्रीमच्छत्रपतेः शिवस्यनृपतेः सिंहासने तिष्ठतः। शाके षण्णवबाणभूमिगणनादानन्दसंवत्सरे ज्योतीराजमुहूर्तकिर्तीमहिते शुक्लेशसापै तिथौ ॥१॥ वापीकूपडागराजिरुचिरं रम्यं वनं वीतिकौ स्तभेः कुंभिगृहे नरेन्द्रसदनैरभ्रंलिहे मीहिते । श्रीमद्रायगिरौ गिरामविषये हीराजिना निर्मितो यावच्चन्द्रदिवाकरौ विलसतस्तावत्समुज्जृंभते ॥२॥ इसकी संक्षिप्त में अर्थ इस प्रकार है-’सर्व जग को आनंददायी असा ये जगदीश्वरा का प्रासाद श्रीमद् छत्रपती शिवाजी राजा का आज्ञेने शके १५९६ में आनंदनाम संवत्सर चालू था सुमुहुर्त पर निर्माण किया इस रायगड पर हिरोजी नाम के शिल्पकार ने कुँए, सरोवर, बगीचे, रस्ते, स्तंभ, गजशाला, राजगृहे इत्यादी का निर्माण किया। वह चंद्रसूर्य है तब तक मजे से जिओ।
१९. महाराजांची समाधी : मंदिराचा पूर्वदरवाजापासून थोडा अंतरावर जो अष्टकोनी चौथरा दिसतो तीच महाराजांची समाधी. सभासद बखर म्हणते, ‘क्षत्रियकुलावतंस श्रीमन्महाराजाधिराज शिवाजी महाराज छत्रपती यांचा काल शके १६०२चैत्र (शुद्ध १५ (इसवी1680)या दिवशी रायगड येथे झ़ाला. देहाचे सार्थक त्याणी बांधिलेला जगदीश्वराचा जो प्रासाद त्याचा महाद्वाराचा बाहेर दक्षणभागी केले. तेथे काळ्या दगडाचा चिऱ्याचे सुमारे छातीभर ऊँचाई के अष्टकोनी जोते बांधे है और उपर से वरून फरसबंदी की है। फरसबंदी के नीचे महाराज के अवशिष्टांश रक्षामिश्र मृत्तिकारूप में मिलती है। दहनभूमी के दूसरी तरफ भग्न इमारत के अवशेषाे की एक पंक्ति है। वह शिबंदी का निवासस्थान हो सकता है। उसके दूसरी तरफ उस बस्ती से विलग एेसा एक घर का चौथरा दिखाई देता है। यह घर इ.स. १६७४ में
२०. कुशावर्त तलाव : होलीचा माल बॉेए हात छोड़कर दाईं ओर का रास्ता कुशावर्त तलाब की ओर जाता है। तलाब के पास महादेवजी का एक छोटा सा मंदिर दिखाई देता है। मंदिर के सामने टूटी अवस्था में नंदी दिखाई देता है।
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