"काकोरी काण्ड": अवतरणों में अंतर

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सिर्फ़ मिट जाने की हसरत अब दिल-ए-'बिस्मिल' में है !</poem>
 
== पूरक मुकदमाप्रकरण और अपील ==
पाँच फरार क्रान्तिकारियों में अशफाक उल्ला खाँ को [[दिल्ली]] और शचीन्द्र नाथ बख्शी को [[भागलपुर]] से पुलिस ने उस समय गिरफ्तारअवरुद्ध किया जब काकोरी-काण्ड के मुख्य मुकदमेप्रकरण का फैसला सुनाया जा चुका था। स्पेशलविशेष जजन्यायाधीश जे० आर० डब्लू० बैनेट की अदालतन्यायालय में काकोरी षद्यन्त्र का पूरक मुकदमाप्रकरण दर्ज हुआ और १३ जुलाई १९२७ को इन दोनों पर भी सरकार के विरुद्ध साजिश रचने का संगीन आरोप लगाते हुए [[अशफाक उल्ला खाँ]] को फाँसी तथा [[शचीन्द्रनाथ बख्शी]] को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गयी।
=== सरकारी वकीलअधिवक्ता लेने से इनकार ===
सेशन जज के फैसले के खिलाफ १८ जुलाई १९२७ को अवध चीफ कोर्ट में अपील दायर की गयी। चीफ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर लुइस शर्ट और विशेष न्यायाधीश मोहम्मद रजा के सामने दोनों मामले पेश हुए। जगतनारायण 'मुल्ला' को सरकारी पक्ष रखने का काम सौंपा गया जबकि सजायाफ्ता क्रान्तिकारियों की ओर से के०सी० दत्त, जयकरणनाथ मिश्र व कृपाशंकर हजेला ने क्रमशः राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह व अशफाक उल्ला खाँ की पैरवी की। राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी पैरवी खुद की क्योंकि सरकारी खर्चे पर उन्हें लक्ष्मीशंकर मिश्र नाम का एक बड़ा साधारण-सा वकील दिया गया था जिसको लेने से उन्होंने साफ मना कर दिया।
=== सफाई की जोरदार बहस ===